शाम का धुंधलका धीरे-धीरे गहराता जा रहा था। गांव के किनारे बहती नदी की लहरों पर सूरज की अंतिम किरणें ठिठक कर बिखर रही थीं। इसी नदी के किनारे बैठी थी राधा—चुपचाप, अपने विचारों में खोई हुई। उसकी आँखों में आँसू थे, जो मोती की तरह चमक रहे थे।
राधा इस गाँव की सबसे सुंदर और गुणवान लड़की थी। उसका विवाह पांच वर्ष पूर्व रोहित से हुआ था, जो शहर में नौकरी करता था। शादी के कुछ महीनों तक सब कुछ ठीक चला, लेकिन धीरे-धीरे परिस्थितियाँ बदलने लगीं। रोहित का स्वभाव रूखा और कठोर होता गया। छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना, ताने देना और अपमानित करना उसकी आदत बन गई। राधा ने कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन हर बार उसे ही दोषी ठहराया गया।
वह दिन-रात यही सोचती रहती कि उसने क्या गलत किया है? लेकिन जवाब कोई नहीं था, केवल आँसू थे जो उसकी आँखों से बहते रहते। उसके अपने भी उसे समझ नहीं पा रहे थे। समाज ने उसे यही सिखाया था कि एक स्त्री को सहनशील होना चाहिए, उसे सब कुछ चुपचाप सह लेना चाहिए।
परंतु एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने राधा की सोच को पूरी तरह बदल दिया। उसकी सहेली सुमन, जो बचपन से ही उसकी हमराज़ थी, शहर से वापस गाँव आई थी। जब सुमन ने राधा की हालत देखी, तो वह चौंक गई। उसने कहा, “राधा, तुम इतनी कमजोर क्यों पड़ गई हो? तुम हमेशा से हिम्मत वाली रही हो। तुम कब तक इस दर्द को सहती रहोगी? आँसू बहाने से कुछ नहीं होगा, तुम्हें खुद को साबित करना होगा।”
राधा ने सुमन की बातें सुनीं और पहली बार उसने अपने अंदर एक नई शक्ति महसूस की। उसने निर्णय लिया कि अब वह खुद को किसी के अत्याचार का शिकार नहीं बनने देगी। अगले ही दिन वह अपने माता-पिता के पास गई और अपने दिल की सारी बात कह डाली। पहले तो माता-पिता चुप रहे, पर जब उन्होंने बेटी के आँसूओं की पीड़ा को महसूस किया, तो उन्होंने उसे पूरा समर्थन देने का वादा किया।
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राधा ने अपनी शिक्षा पूरी करने का निश्चय किया। वह सिलाई-कढ़ाई का अच्छा ज्ञान रखती थी, इसलिए उसने गाँव में एक सिलाई केंद्र खोलने का निर्णय लिया। शुरुआत में लोगों ने उसकी हिम्मत को सराहा नहीं, बल्कि उसका मजाक उड़ाया। लेकिन उसने हार नहीं मानी। धीरे-धीरे गाँव की दूसरी महिलाएँ भी उससे जुड़ने लगीं और उसका काम बढ़ने लगा।
कुछ ही वर्षों में राधा ने अपने पैरों पर खड़े होने की ठान ली। अब वह सिर्फ एक पत्नी नहीं, बल्कि गाँव की सशक्त महिला बन चुकी थी। उसने अपनी तकलीफों को अपनी ताकत में बदल दिया था।
एक दिन जब वह अपने सिलाई केंद्र में काम कर रही थी, तभी उसके पास एक पत्र आया। यह रोहित का पत्र था, जिसमें लिखा था, “राधा, मुझे माफ कर दो। मैं समझ नहीं सका कि तुम क्या चाहती थी। तुम्हारी ताकत और साहस को देखकर मुझे एहसास हुआ कि मैं कितना गलत था। अगर मुझसे हो सके तो मुझे माफ कर देना।”
राधा ने पत्र पढ़ा और एक गहरी सांस ली। उसने उस पत्र को मोड़ा और एक तरफ रख दिया। अब उसकी आँखों में आँसू नहीं थे, बल्कि आत्मविश्वास की चमक थी। उसने अपने आँसूओं को मोती बना लिया था—ऐसे मोती, जो उसकी ताकत के प्रतीक थे।
उस दिन नदी के किनारे, जहाँ कभी उसके आँसू गिरे थे, वहाँ अब मुस्कान बिखरी हुई थी। उसने सिद्ध कर दिया था कि आँसू केवल दुख का प्रतीक नहीं होते, वे मोती भी बन सकते हैं—बस ज़रूरत होती है उन्हें सही राह देने की।
मीरा सजवान ‘मानवी’
स्वरचित मौलिक