आखों में धूल झोंकना – डोली पाठक 

मशीन की गड़गड़ाहट के बीच एक मरियल सी आवाज सुन कर प्रताप ने जब नजरें उठा कर देखा तो सामने एक दुबला-पतला सा कोई बाईस तेईस साल का लड़का खड़ा था…

प्रताप ने मशीन बंद किया और उस लड़के की तरफ मुखातिब होकर बोला – हां बोलो क्या चाहिए??? 

जी मेरा नाम लखन है आपने बाहर बोर्ड लगाया है कि आपको एक मजदूर की जरूरत है तो मैं उसे हीं पढ़ कर आया हूं….

लखन ने अपनी पारिवारिक मजबूरियां बताई और बोला कि चाचाजी मुझे इस काम की सख्त जरूरत है…

आप जितना कहेंगे जैसे कहेंगे मैं काम करने को तैयार हूं…

प्रताप को आटा चक्की के लिए एक मजदूर की सख्त जरूरत थी इसलिए उसने लखन से कुछ जरुरी प्रश्न किए और काम पर रख लिया….

लखन एक गरीब परिवार से था.. 

उस पर दया कर के प्रताप ने उसे काम पर रख लिया।

आटा चक्की चलाने के साथ-साथ लखन किराना स्टोर भी संभालने लगा…

लखन को घर के सदस्य सा प्यार और अपनापन मिलने लगा..

धीरे धीरे प्रताप को उस पर भरोसा हो गया।

परन्तु अपनी आदत से मजबूर लखन प्रताप की आंखों में धूल झोंकने से बाज नहीं आता था… 

कभी दुकान से पैसे चुरा कर गांजा शराब पीना तो कभी दुकान से निकाल कर कोई कीमती वस्तु बाहर ले जाकर बेच देना…

आरंभ में तो प्रताप को कोई संदेह नहीं हुआ…

परंतु जब कभी वो पैसे गिन कर रखता और लखन उसमें से पैसे गायब कर देता तो उसका संदेह यकीन में बदल गया।

एक दिन तो हद हीं हो गई जब उसने प्रताप के कुर्ते की जेब से हीं पैसे गायब कर दिया…

उस दिन रंगे हाथों पकड़े जाने पर लखन प्रताप के पैरों में गिर पड़ा….

गिड़गिड़ाते हुए बोला – मुझे क्षमा कर दीजिए चाचा अब ऐसी गलती नहीं होगी… 

प्रताप ने कहा – तुम पर दया कर के मैंने तुम्हें काम दिया… 

अपनापन और प्यार दिया और बदले में तू मेरी आंखों में धूल झोंकने लगा.. तुझे जरा भी शर्म नहीं आई.. 

यहीं कारण है कि, आजकल लोग जरूरतमंदों की मदद से भी कतराने लगे हैं.. 

निकल जा यहां से…

डोली पाठक 

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