Moral Stories in Hindi : ‘रिलैक्स क्लीनिक ‘ के परिसर में रखी कुर्सियों में से एक कुरसी पर बैठी आनंदी परेशान-सी सोच रही थी कि पता नहीं डाॅक्टर क्या कहेंगे? नेहा कब तक ठीक होगी? नहीं हुई तो…।तभी उसकी नज़र साथ बैठी महिला पर पड़ी।उसने पूछ लिया,” आपकी भी बेटी यहाँ ट्रीटमेंट…।”
” नहीं..मेरी बेटी ही यहाँ की डाक्टरनी है।मरीज को देख लेगी तब हमसे मिलने आयेगी।”महिला ने मुस्कुराते हुए कहा।
” ओह!…” आनंदी फिर से अपने विचारों में खो गई।महिला आनंदी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए बोली,” दूसरों की देखादेखी में अपने बच्चों का भविष्य खराब नहीं करना चाहिए।हम ऐसी गलती करके भुगत चुके हैं।जानती हैं, बिटिया की इच्छा के बिना हमने जबरदस्ती उसे पुलिस की ट्रेनिंग में भेज दिया तो उसने … ,मरते-मरते बची है हमारी बेटी..।
” कहते हुए वो रोने लगी।फिर अपने आँसू पोंछकर बोली,” उसी दिन हमने सोच लिया कि बेटी डाक्टर बनना चाहती है तो हम उसको वही बनायेंगे और देखिये..आज कितनी बड़ी डाक्टर है।सबका इलाज करती है,मरीज ठीक होकर यहाँ से जाते हैं तो हमको बड़ी खुशी…।”
तभी एक अधेड़ महिला आई और बोली,” आनंदी…, कैसी है नेहा?”
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आनंदी ध्यान-से उस महिला की बातें सुन रही थी, अचानक अपना नाम सुनकर चौंकी और सामने खड़ी अधेड़ महिला के गले लगकर रोने लगी, “भाभी…मैंने आपके और नेहा के साथ बहुत बुरा किया है..।” महिला जो उसकी सुनयना भाभी थी,धीरे-से बुदबुदाई, रो ले…तेरा जी हल्का हो जायेगा।
आनंदी जब बारह बरस की रही होगी, तभी उसकी माँ का स्वर्गवास हो गया था।घर में उसकी दादी थी जिनसे वह अपनी हर ज़िद पूरी करवा लिया करती थी।उससे दस साल बड़े सत्यप्रकाश भईया थें जो अपनी बहन को जी-जान से चाहते थें।आनंदी भी अपने भाई से चाहे जितना झगड़ ले लेकिन उसके भाई को कोई कुछ कह दे तो वह उसका मुँह नोंच लेने को तैयार हो जाती थी।उसके पिता कपड़े के थोक विक्रेता थे।ग्रेजुएशन के बाद उसके भईया पिता के कारोबार में हाथ बँटाने लगे।
सत्यप्रकाश को कारोबार में तल्लीन होते देख दादी ने अपनी रिश्तेदारी के ही एक परिवार की लड़की सुनयना के साथ उसका विवाह करा दिया।सुनयना देखने में जितनी सुंदर थी,स्वभाव की वह उतनी ही सुशील और मिलनसार थी।कुछ ही दिनों में आनंदी भी अपनी भाभी से घुल-मिल गई।स्कूल की बातें हो या सहेलियों की कहानियाँ…,अपनी भाभी से वह सब कह देती थी।
आनंदी इंटर में थी तब दादी ने उसे बताया कि वह बुआ बनने वाली है।अपनी भतीजी ईशा को जब उसने पहली बार गोद में लिया तो वह खुशी-से फूली नहीं समाई थी।काॅलेज़ से आने के बाद उसका समय ईशा के साथ ही बीतता था।सत्यप्रकाश पर अब अपने परिवार की ज़िम्मेदारी बढ़ गई थी।इसलिये वह आनंदी के कई काम करना भूल जाता था।आनंदी भी अब सयानी हो गई थी,तो वह कह देता,” तुम खुद-से कर लो।” भाई की यही अनदेखी उसे खलने लगी।
भाई का भाभी के साथ बैठना या बातें करना.. उसकी आँख को चुभने लगा।न जाने क्यों…मन ही मन उसे अपनी भाभी से जलन होने लगी।अक्सर वह दादी से भाभी की शिकायत करती कि भाभी जली हुई सब्ज़ी मेरे लंचबाॅक्स में देती हैं अथवा ईशा को मेरे पास आने नहीं देती।दादी ने पहले सोचा कि ये उसका बचपना है, धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं।एक दिन तो उसने अपने पिता से यहाँ तक कह दिया कि भाभी ने कुछ जादू-टोना करके भईया को अपने वश में कर लिया है।उन्होंने भाई को मुझसे दूर कर दिया है, आपको भी कर देगी।
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आनंदी के पिता-दादी ने उसे बहुत समझाया कि सुनयना तेरी भाभी है और तेरा कितना ख्याल रखती है।फिर तू उससे हमेशा चिढ़ी हुई क्यों रहती है? इतना तो सोच, वो तेरे से उम्र में बड़ी है, उसका आदर करने की बजाय तू उससे डाह करके अपने ही स्वभाव में ज़हर क्यों घोल रही है?
लेकिन कहते हैं ना…, इंसान के मस्तिष्क में जब एक बार किसी से ईर्ष्या करने की दुर्भावना घर कर लेती है तब उस पर किसी समझाइश का कोई असर नहीं होता।आनंदी ने भी अपने बड़ों की बातों पर कान नहीं दिया।वह सुनयना को नीचा दिखाने अथवा उसे दूसरों की नज़र में गिराने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देती थी।सुनयना को भी इस बात आभास होने लगा था कि आनंदी उससे ईर्ष्या करने लगी है लेकिन क्यों॔?, वह समझ नहीं पा रही थी।
समय गुजरता गया लेकिन ननद- भाभी के बीच की दूरी कम नहीं हुई।बीए के इम्तिहान खत्म होते ही आनंदी के पिता ने अपने ही एक परिचित के बेटे अनिकेत से उसका विवाह करा दिया।अनिकेत उसी शहर के एक बैंक के एंप्लाइ थे।उनके पिता का देहांत हो चुका था।माँ और एक छोटा भाई था जिनके साथ आनंदी की अच्छी निभती थी।
आनंदी को ससुराल में खुश देखकर उसके मायके वाले बहुत खुश थें।एक दिन अनिकेत ने सत्यप्रकाश को बताया कि आप मामा बनने वाले हैं तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।दादी तो नाचने ही लगी थी।गोदभराई का सामान और उपहार लेकर जब सत्यप्रकाश पत्नी और बेटी संग बहन के ससुराल पहुँचे तो आनंदी ने भाई को प्रणाम किया, भतीजी को प्यार किया लेकिन भाभी से उसने बात नहीं की।
उसे खुश करने के लिये सत्यप्रकाश ने पैकेट खोलकर आनंदी को दिखाते हुए बोला कि ये देख, प्योर सिल्क की साड़ी…., तेरी भाभी ने तेरा फेवरिट ब्लू कलर पसंद किया है।भाभी का सुनते ही उसने साड़ी फेंक दी और बोली, ” ऐसा घटिया रंग तो मेरे घर की नौकरानी भी नहीं पहने।” सत्यप्रकाश कुछ कहता लेकिन सुनयना ने कंधे पर हाथ रखकर उसे चुप रहने का इशारा कर दिया।
बीमार दादी आनंदी के इस व्यवहार को सह न सकी और कुछ दिनों बाद ही उन्होंने अपनी सदा के लिये अपनी आँखें मूँद ली।कुछ महीनों बाद आनंदी ने एक बेटी को जन्म दिया।सुनयना जाना चाहती थी लेकिन उसके ससुर ने मना कर दिया और बेटी-नातिन से मिलने अकेले ही गये।यद्यपि उपहारों की पूरी खरीदारी सुनयना ने ही की थी लेकिन उन्होंने इस बारे में आनंदी को कुछ नहीं बताया।
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समय के साथ दोनों परिवारों की बच्चियाँ भी बड़ी होने लगीं थीं।सुनयना की बेटी ईशा स्कूल की पढ़ाई पूरी करके काॅलेज़ जाने लगी थी, उधर आनंदी की बेटी नेहा भी आठवीं कक्षा की परीक्षा की तैयारी कर रही थी।पढ़ाई के साथ-साथ ईशा की रुचि नृत्यकला में भी थी।वह शहर के नृत्यकला अकादमी में भरतनाट्यम नृत्य सीख रही थी।स्कूल में भी उसके कई प्रोग्राम हो चुके थें जिसे लोगों ने बहुत सराहा था।अब वह उसी में अपना कैरियर बनाना चाहती थी।
ईशा के नृत्य की प्रशंसा जब आनंदी के कानों तक पहुँची तो उसे सहन न हुआ।भाभी से द्वेष वाली उसकी दुर्भावना फिर से जागृत हो उठी और उसने ठान लिया कि वह अपनी नेहा को ईशा से भी बड़ी नृत्यांगना बनायेगी।उसने अनिकेत से कहा कि एक अच्छे नृत्यालय में नेहा का एडमिशन करा दीजिये।नेहा की नृत्य में तनिक भी रुचि नहीं थी।
उसे पेंटिंग करना बहुत अच्छा लगता था।पेंसिल से बनाये उसके स्कैचेस की सभी प्रशंसा करते थें।लेकिन आनंदी की ज़िद के आगे उसे झुकना ही पड़ा और वह भी भरतनाट्यम नृत्य सीखने लगी।बेमन से किया गया हर कार्य इंसान को बोझ लगता है।कुछ ही दिनों में नेहा को भी नृत्य क्लास जाना एक बोझ-सा लगने लगा।
अक्सर उसके पैरों में दर्द रहने लगा।वह क्लास जाने को मना करती तो आनंदी उसपर दबाव डालती।दरअसल आनंदी को पता ही नहीं था कि वह अपनी भाभी के प्रति जलन-भावना का गुबार अपनी बेटी पर निकाल रही है।उसके इस रवैये से नेहा का पढ़ाई से भी मन उचाट होने लगा।स्कूल से शिकायत आई तब अनिकेत ने आनंदी को डाँटा कि ये क्या पागलपंती है, नेहा जब डांस क्लास नहीं जाना चाहती तो तुम क्यों उसे फ़ोर्स कर रही हो? तुम्हारे इस ज़िद के कारण वह अपनी पढ़ाई में भी पिछड़ गई है।
” अरे आप नहीं जानते..मैं इसे ईशा से भी अच्छा नृत्यांगना बनाकर भाभी को दिखाऊँगी।” आनंदी चिल्लाई।
” नेहा हमारी बेटी है, इसमें भाभी-ईशा कहाँ से आ गई..” अनिकेत चकित थे।दोनों के बीच बहस चलने लगी और उसी बीच नेहा ने अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया।अनिकेत के पहुँचने तक नेहा ने दरवाज़ा अंदर से लाॅक कर लिया था।अनिकेत को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी, उसने नेहा-नेहा कहते हुए ज़ोर-से दरवाज़ा पीटना शुरु कर दिया।तब तक में आनंदी और अनिकेत का भाई भी आकर खिड़की खोलने का प्रयास करने लगे।तब अनिकेत की माँ ने दरवाज़ा तोड़ देने को कहा।दरवाज़ा तोड़ने पर बेटी को बेहोश देखकर आनंदी के मुँह से चीख निकल गई।पास रखी शीशी देखकर अनिकेत समझ गया कि नेहा ने नींद की गोलियाँ खा ली है।
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नेहा को लेकर सभी ‘प्रसाद क्लीनिक’ पहुँचे जो अनिकेत के मित्र का था।त्वरित इलाज से नेहा की जान तो बच गयी लेकिन अभी भी वह मानसिक तनाव से गुजर रही थी।खबर सुनते ही सत्यप्रकाश और उसके पिता क्लीनिक पहुँचे।ये सब कैसे हुआ? पूछने पर अनिकेत ने उन्हें पूरी बात बताई तो सुनकर आनंदी के पिता चकित रह गये।उनकी बेटी इतने सालों एक काल्पनिक ईर्ष्या की शिकार थी और उन्हें पता ही नहीं चला।
नेहा को लेकर सभी घर पहुँचे, तब आनंदी के पिता ने प्यार-से बेटी को समझाया,” देख बेटी…एक छोटी-सी गलतफ़हमी के कारण तू अपनी भाभी से जलन करने लगी।जब तेरी गोद में नेहा आई तो अनिकेत भी तेरे और नेहा के साथ समय बिताता था ना.., तब क्या उसके भाई या माँ को तुमसे जलन होती थी।” आनंदी ने गरदन हिलाते हुए ना कहा।उसके पिता बोले, ” उस समय कई ऐसे काम अनिकेत के भाई को खुद ही करने पड़े जो हमेशा अनिकेत करते थें।”
” हाँ पापा..”
” तो क्या वह तुमसे नाराज़ रहता था।”
” नहीं पापा…।”
” तो बस बेटा.., अब बताओ..क्या तुम्हारी भाभी गलत है?”
” नहीं पापा…., मुझे माफ़ कर दीजिए।” कहकर आनंदी फूट-फूटकर रोने लगी।सत्यप्रकाश और अनिकेत ने उसे चुप कराया।आनंदी बोली,” लेकिन भाभी…वो तो मुझे कभी माफ़ नहीं करेगी।इसीलिए तो नेहा को देखने भी नहीं आई।”
” फिर गलत सोचने लगी।तुम्हें तो मालुम है ना कि आज ईशा का प्रोग्राम है।मैंने डाॅक्टर से अपाॅइंटमेंट ले लिया है।तेरी भाभी कल ‘ रिलैक्स नर्सिंग होम’ पर ही तुझसे मिल लेगी।” सत्यप्रकाश ने मुस्कुराते हुए आनंदी से कहा।
नेहा पहले से काफ़ी बेहतर थी।आनंदी को देखते ही वह रोने लगी।बोली,” माँ.., मुझे माफ़ कर दो..मेरी वज़ह से आपको…।”
” नहीं बेटा..तुम अपनी माँ को माफ़ कर दो..।” बेटी को गले लगाकर आनंदी रोने लगी।दोनों की आँखों से बहते आँसुओं में सारा गुस्सा, द्वेष और कलुषता बह गया था।दुख के बादल छँट चुके थें।
अगले दिन आनंदी नेहा को लेकर ‘रिलैक्स क्लीनिक’ आई, नेहा डाॅक्टर के पास थी और आनंदी बाहर बैठी थी।तभी सुनयना आई।बरसों बाद भाभी के गले लगकर आनंदी जी भर के रोई।उसकी आँखों से बहते आँसुओं की एक-एक बूँद कह रही थी, भाभी..,मुझे माफ़ कर दो। आनंदी के आँसुओं को अपने आँचल से पोंछते हुए सुनयना बोली,” देख आनंदी.., रात गई, बात गई।इस गला काट प्रतियोगिता के युग में विकल्प बहुत हैं और अवसर भी।किसी दूसरे से बेहतर नहीं, हमें खुद को बेहतर बनाना है।ईशा को नृत्य में रुचि थी, उसने वही किया।नेहा को पेंटिंग में…।”
” हाँ भाभी…।” आनंदी बोली,” अब मेरी आँखें खुल गईं हैं भाभी।अब नेहा…।” तभी चेम्बर से डाॅक्टर साहिबा निकलीं तो दोनों दौड़ पड़ी,” नेहा…”
” ठीक है।पंद्रह दिनों के बाद एक बार फिर से आकर मिल लीजियेगा।जस्ट ए रूटीन चेकअप…।” मुस्कुराते हुए डाॅक्टर बोली और अपनी माँ के पास बाहर चली गई।
नेहा मुस्कुराते हुए आई तो आनंदी की आँखें खुशी-से छलक पड़ी।नेहा बोली,” माँ.., अब…।”
” अब हमारी लाडली नेहा पेंटिंग क्लास ज्वाइन करेगी, ये रहा एडमिशन फ़ार्म…।” आनंदी के देवर ने फ़ाॅर्म नेहा को थमाया तो नेहा उछल पड़ी,” थैंक्यू चाचू…।”
सभी घर जाने लगे तो आनंदी बोली,” भाभी..मैं भी ना कितनी…।”
” अरे..तो मैं कौन-सी कम थी।मैं भी तो…।”
” मतलब कि आपको भी जलन…।” और फिर दोनों ननद-भाभी हा-हा करके हँसने लगीं।
विभा गुप्ता
# जलन स्वरचित
हम जिससे बहुत प्यार करते हैं,वो अगर हमें अनदेखा करने लगे तो स्वभाव में स्वतः ही नकारात्मकता आ जाती है और हमें बेवज़ह ही किसी से ईर्ष्या होने लगती है।आनंदी भी उसी की शिकार हो गई थी।फिर अपनों के प्यार का स्पर्श मिलता है तो उस दुर्भावना का अंत भी हो जाता है।