सालों पुराने आम के पेड़ का नया पड़ोसी आया, एक नया खिला लाल गुलाब सुकुमार पर उदास।आकर थोड़ी देर इधर उधर नजर घुमा कर बोला आम बाबा! मेरे सारे दोस्त नर्सरी में छूट गए, बिल्कुल मन नहीं लग रहा, कोई कहानी सुनाओ न!
आम बाबा मुस्कुरा कर बोले, “बेटा!ये संसार स्वार्थी है। जहां रहो अपना कर्म करो, मन का क्या है ये तो बावरा है। चलो, तुम्हें मैं अपनी जीवनगाथा सुनाता हूं।
करीब सौ साल पहले, मेरी मां से कलम काटकर मुझे यहां रामदीन दादा ने रोपा था, वो अपने बेटे सरस और पत्नी के साथ यहां रहते थे। यहां सुंदर गेहूं के खेत लहलहाते थे। रामदीन दादा
हमेशा कहते थे के मेरे बेटे- पोते इस पेड़ के फल खायेंगे और अपने दादा को याद करेंगे। तब से मैं भी उन्हें अपना दादा ही समझता था, वो भी मेरा अपने बच्चों की तरह ख्याल रखते, मुझे खाद पानी देते ओर सुबह शाम मेरी कोपलों और पत्तियों को सहला कर लाड़ करते।उनका प्रेम ही तो था कि मैं 12 साल की उम्र में ही बौराने लगा।
रामदीन दादा कितना खुश हुए थे कि उसी साल उनके बेटे का ब्याह हुआ और पोता हुआ और अब मेरे फल जैसे उनके जीते जी वो अपने लगाए आम का स्वाद बेटे पोते को चखते देख पाएंगे।
ऐसा हुआ भी, गर्मियों में रामदीन दादा अपने पोते को मेरी छांव में खिलाते, मेरे फल का रस चटाते। अचानक एक दिन उनका बुलावा आया और वे भगवान को प्यारे हो गए, बहुत रोया था मैं उस दिन।उस साल ग़म में मेरे फल और फूल भी न आए। उनकी पत्नी ने जब ये देखा, तो वो मेरी देखभाल करने लगी और उनके लाड़ से मुझमें फ़िर से बौर आ गया।उस साल मेरे आस पास के खेत शहरीकरण में कटकर बिक गए।
पर सरस ने साफ कह दिया के ये पेड़ मेरे पिताजी की मेहनत और बेटे के बचपन की यादों से जुड़ा है, इस पेड़ के आसपास के हिस्से में मैं घर बनाकर रहूंगा। मैं खुशी से फूला न समाया। एक बार जब सरस की नौकरी चली गई तो मैंने हजारों की तादाद में फल दिए और उसका घर चलाने में मदद की।
अब मैं उनकी जीविका का साधन था, जिस से उन्हें फल, मधु, स्वच्छ वायु, छायां, लकड़ियां आदि मिलती थी, साथ ही मैं बहुत से पंछियों और मधुमक्खियों का घर था। अब वे सब कबूतर, बैयां, मक्खियां मेरे दोस्त थे। पड़ोसी और रिश्तेदार मेरे फल आने का इंतेज़ार करते थे। मैं अपनी किस्मत पर इतराता था कि मैं कितना महत्वपूर्ण हूँ।
समय बीतता गया अब जब सरस का बेटा सजल बड़ा होकर अच्छा बिजनेस करने लगा, मुझे लगा अच्छे दिन आ गए हैं। वो भी लौटकर मुझे सहलाया करेगा, मेरे फल खाकर बचपन की यादें ताज़ा करेगा पर अब वो अपनी ही दुनिया में मग्न है।
सरस भी बूढ़ा हो चला है, कम ही आता है मेरे पास, बेटे के बनाए आलीशान घर में ए.सी. वाले कमरे में सोता है। ये सोचकर मैं कभी कभी उदास होता हूं पर मेरे आस पास अब किचेन गार्डन है,अब मैं बाकी सभी पौधों का आम बाबा हूँ, ये सोचकर खुश भी होता हूं कि तीन पीढ़ियां देखी हैं मैने इस घर की, मैं रखवाला हूं इस घर का।
पिछले हफ्ते ही मेरे पास सजल आया था, मैं फिर इतराया था पर अपने साथ वो दो लकड़हारे लाया था, बोला मुझे किचेन गार्डन रूफ टॉप पर बनाना है और घर ज़रा और आधुनिक बनाना है
, इस आम के पेड़ को काट देना। उनने कुछ टहनियां ही काटी थी कि सभी पंछी और मक्खियां उड़कर अपना दूसरा घर तलाशने लगे। तबसे मैं रो था हूँ कि सच में ये संसार कितना स्वार्थी है, मैंने अपना सर्वस्व लुटा दिया पर मुझे उखाड़ फेंकने की बात पर ही सब मुझे छोड़ भाग खड़े हुए।”
गुलाब और आम दोनों की आंखो से झर झर आँसू बह रहे थे।
इसी बीच अचानक सजल पसीने से लथपथ उठ खड़ा हुआ। ओह ये तो सपना था!उसकी आंखो से नींद में भी आंसू बह रहे थे। वह उठकर आम के पेड़ के पास गया और उसके गले लग गया, मुझे माफ़ कर दो आम बाबा! मैने आपको बहुत दुःख दिया है। मैं आज ही आर्किटेक्ट को फोन करके कहूंगा कि कोई ऐसा तरीका निकले कि घर रिनोवेट हो जाए पर मेरे आम के पेड़ पर कोई आंच न आए।
ठंडी बयार बह रही थी, आम के पत्ते हिलकर सजल के पसीने सुखा रहे थे, चिड़िया चहचहा रही थी । जैसे सारी प्रकृति खुश हो गीत गा रही हो दादा पोते के मिलन पर।
लेखिका
ऋतु यादव
रेवाड़ी (हरियाणा)
#स्वार्थी संसार