“ये तो होना ही था,आखिर अति जो उतार रखी थी”
बड़ बड़ करती हुई मांजी अपने कमरे में चली गयी।पास ही बैठी मैं स्तब्ध थी ।सोच रही थी कि कितना फर्क होता है सोच में एक सास के मन मे बेटी और बहु के प्रति।
मेरे ससुर दो भाईयो में बड़े थे। चाचा जी का परिवार हमारे घर से कुछ ही दूरी पर था।उनके दो बेटे थे।बड़े भैया मेरे पति से बड़े थे लेकिन उनकी शादी हमारी शादी के बाद हुई ।भाभी आयी ।प्रीति नाम था उनका।साल भर सब सही रहा लेकिन चाची जी की भाभी से बनी नही।बनती भी कैसे ।भाभी थोड़ा नए विचारों की थी वह घर के कामकाज से अलग अपने लिए भी कुछ समय निकालना चाहती थी लेकिन चाची जी की वही पुरानी सोच।
भला बहुओ को कहाँ आजादी कि वो अपने बारे में कुछ सोच सके।उन्हें तो अपने ससुराल के लिए समर्पित होना ही पड़ता है।बस यही सोच सास बहू के रिश्तों मे खटास का कारण बनी।और साल भर में ही सास बहू की रसोई अलग हो गई।फिर 2 साल पहले ही छोटे भैया की शादी हुई।चाची जी के अरमान थे कि जो सुख उन्हें बड़ी नही दे पाई वो छोटी देगी।छोटी बहू निशा मेहनती तो थी लेकिन अपनी सास की उम्मीदों पर खरा नही उतर पाई।आखिर कितना अपने मन को मारती।थक गई और हार कर उसने भी अलग रसोई कर ली।
सुबह ही फोन आया तो पता चला कि बड़ी भाभी जी को डिस्क प्रॉब्लम हो गयी थी।डॉक्टर ने उन्हें बेड रेस्ट के लिए बोला।और फिजियोथेरेपी कराने की सलाह दी।बस इतना सुनते ही माजी के अंदर की सास भी जाग उठी और तभी से बड़बड़ाने लगी थी।
2 साल पहले की ही तो बात थी ।मेरी ननद नेहा बीमार हो गयी थी।थॉयराइड तो था ही।उस पर मोटापा बढ़ता ही जा रहा था जिसकी वजह से दिल पर असर होने लगा था।सांस लेने में परेशानी होने लगी थी।डॉक्टर ने उन्हें एडमिट होने के लिए बोला लेकिन घर की माली हालत इतनी अच्छी नही थी कि प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज करा सके और सरकारी अस्पताल में न जाने की दीदी ने ठान रखी थी।डॉक्टर ने घर पर ही ऑक्सिजन सिलिंडर लगाने की सलाह दी
लेकिन उसमें भी बहुत खर्च था।सास ससुर से उन्होंने पहले ही रिश्ता खत्म कर रखा था।जब एक बार उनकी सास बहुत बीमार हुई तो उन्होंने उनकी देखभाल करने को मना कर दिया था और अपने बच्चों को भी दादी के पास जाने से मना कर दिया था ।सास तो दीदी को देखने भी नही आई।खैर दवाइयों से ही दीदी सही तो हो गयी लेकिन मांजी अपनी बेटी की हालत की जिम्मेदार उनके ससुराल वालों को ही बताती थी।
लेकिन सच ये था कि सास ससुर तो गलत थे ही लेकिन दीदी भी अपनी हालत की कम जिम्मेदार नही थी।अपने मायके की हर समय बढ़ाई करना,ससुराल वालों को नीचा दिखाना,झूठ बोलना,घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए न चलना, सास ससुर की उपेक्षा करना और अपनी माँ के कहे पर चलना यही सब उनकी हालत के जिम्मेदार थे।लेकिन मांजी ने कभी अपनी बेटी की गलती नही मानी।न कभी उनको समझाया न कभी डांटा।
मांजी तब बहुत रोई थी उसको लगा था कि दीदी अब नही बचेगी ।वह बार बार कहती कि उसकी बेटी बीमार है तो सिर्फ अपने ससुराल वालों की वजह से।अगर वो उसकी सही देखभाल करते तो वो इस तरह बीमार न होती।
लेकिन आज, आज तो सब मायने बदल गए थे।आज एक बहू बीमार थी तो उसमें सिर्फ और सिर्फ बहु की ही गलती थी।सास ससुर अब सब सही थे।बहु बीमार थी क्योंकि उसने अति उतार रखी थी।वह अपने सास ससुर का ख्याल नही रखती थी।वह अपने लिए भी जीना चाहती थी।मैं जानती थी कि भाभी भी पूरी तरह से भली नही थी
लेकिन ताली एक हाथ से नही बजती।अगर उनकी गलती थी तो चाची जी भी कम गलत नही थी।वो भी कही समझौता करने को तैयार नही थी।अगर ऐसा होता तो उनकी दूसरी बहु से भी नही बिगड़ती।बहु बीमार थी क्योंकि उसने अति उतार रखी थी।लेकिन फिर तब क्या था जब कुछ महीने पहले चाची जी बीमार थी तो क्या उन्होंने भी अति उतार रखी थी।और सिर्फ चाची जी ही क्यों।मांजी भी तो अक्सर बीमार रहती थी तो क्या उन्होंने भी…।
मैं हैरान थी ऐसी सोच पर जो बहु और बेटी में इतना फर्क कर देती है।मैं हैरान थी ये सोचकर कि जब दीदी बीमार हुई थी तो मांजी ने क्यों नही कहा
ये तो होना ही था,आखिर अति जो उतार रखी थी।
स्वरचित (प्रथम प्रयास)
शिखा जैन