एक मुद्दत के बाद शंकर का अपने बचपन के मित्र रमेश से उसके फ्लैट में ही मिलना हो रहा था।असल मे मोबाइल ने दूरियां तो कम की है,पर प्रत्यक्ष मिल कर अपने दुःख सुख की अनुभूति कराना, छीन लिया है।दोनो मित्र मोबाइल पर बात चीत करते रहते थे,पर अपनी बातों को,अपने मनोभावों को कहां प्रकट कर पाते थे।आज मिले तो एक दूसरे को बाहों में जकड़ लिया।
शंकर बिना बताये, सरप्राइज़ देने के उद्देश्य से अचानक रमेश के यहां पहुंच गया था और उस समय उसका बेटा और बहू घर मे थे नही,वो निपट अकेला था।उसको झिझक हो रही थी,इतने दिनों बाद रमेश से मिलना हो रहा है तो कैसे उसकी आवभगत करे,उससे से चाय भी बनानी नही आती।शंकर रमेश के ओहपोह को समझकर बोला रमेश इतनी गर्मी ने चाय आदि पीने का औचित्य नही है,तू किसी फॉरमैलिटी मे मत पड़।अपना घर है,और मुझे रसोई का काम आता है,जब इच्छा होगी तो हम मिलकर मर्दानी रसोई बना लेंगे।इतना सुनने पर रमेश ने राहत की सांस ली।
दोनो मित्र अपनी पुरानी बातें शेयर करते रहे।शंकर ने इस बीच महसूस किया कि रमेश कुछ अनमना सा है।बीच बीच मे कही खो सा जाता।शंकर के पूछने पर टाल गया।शंकर ने स्पष्ट रूप से पूछा देख रमेश तुझे मेरी कसम सच बताना,मुन्ना तुझे सम्मान के साथ रखता है ना?रमेश एकदम अपने सर पर हाथ रख बोला, शंकर मुन्ना ही नही मेरी बहू भी मेरा खूब ध्यान भी रखते है और सम्मान भी देते है।मैं उनसे पूर्णतया संतुष्ट हूँ।
तो फिर तेरी क्या प्रॉब्लम है यार,कुछ बात तो है,बता ना क्या बात है?
अरे कुछ नही शंकर,बस ऐसे ही,कल मंदिर में कुछ विवाद हो गया,उससे मन खिन्न सा है।खैर छोड़ तू बता,कैसे चल रहा है?मेरा भी सब ठीक है रमेश।ये मंदिर वाला विवाद क्या है, बता तो।
शंकर, आजकल लड़के ही नही बड़े भी नास्तिक हो गये हैं, आस्था तो रह ही गयी है।बताओ अपनी सोसाइटी में मंदिर बन रहा है,अभी अस्थायी मंदिर में पूजा अर्चना शुरू हुई है, इस सबका विरोध शंकर, हिन्दू ही कर रहे है।कहते हैं, घंटे घड़ियाल बजेंगे, हमारी नींद खराब होगी ,हम डिस्टर्ब होंगे।कुछ तो हिन्दू ही कहने लगे कि फिर तो यहां मस्जिद भी बनवाओ।मंदिर बनेगा तो हम यहां नमाज पढवाएँगे।अब बताओ ये मंदिर बन रहा है तो इसमें नमाज कहाँ से आ गयी?
ये तो वास्तव में गलत है।रमेश ने कहा कि ऐसे विद्रोहियों से अलग से बात नही की गई क्या?
शंकर, असल मे यहां सोसाइटी के चुनाव होते है ना,वो विपक्ष के लोग जान बूझ कर मुद्दा बना रहे हैं।हमें उनकी राजनीति से क्या लेना देना, हमारा तो इतना कहना मात्र है, भई अपनी खूब राजनीति करो, पर मंदिर को बक्श दो।
जानते हो शंकर कल मैं जब पार्क में टहल रहा था तो मंदिर के पुजारी का फोन आया, जल्द आ जाओ।हम पहुंचे तो पंडित जी ने बताया कि सामने के फ्लैट से सुकेश नाम का रेसिडेंट आया और मंदिर के बैनर आदि फाड़ दिये, मुझे गालियां दी और धमकी दी कि यहां रात को न तो लाइट जलेगी क्योकि उससे उसे चौन्द लगती है और न ही घंटा बजेगा उससे उसकी नींद खराब होती है।
पंडित जी अपने को अपमानित महसूस कर रहे थे और हम सब आश्चर्य चकित हो क्रोध में थे।उस सुकेश की हिम्मत तो देखो वो सबको अपनी बाल्कनी से देखकर सबके बीच आकर कहने भी लगा कि यहां घंटा वगैरह नही बजेगा।उसके दुःसाहस पर सबने उसको काफी उल्टा सीधा तो कहा ही साथ ही उसकी थाने में रिपोर्ट भी करा दी।
रिपोर्ट होने पर और पुलिस के एटीट्यूड को देख सुकेश घबराया, और माफी मांगने लगा।इसी बीच उसके अन्य समर्थक आ गये।और रिपोर्ट वापस लेने का दवाब बनाने लगे।सिफारिश लाने लगे।
लेकिन मंदिर का मामला देखकर उनकी कोई सिफारिश नही चली।थाने वालो ने भी सुकेश को खूब हड़काया।अपने विपरीत वातावरण देख सुकेश ने लिखित माफी तो मांगी ही साथ ही आगे भी मंदिर की ओर जायेगा भी नही,ऐसा लिखित आश्वासन भी दिया।तब पुलिस ने सबकी सहमति से उसे चेतावनी देकर छोड़ दिया।
पर शंकर मैं जानता हूँ कि सुकेश तो घर बैठ जायेगा, पर बाकी षडयंत्र में लगे रहेंगे।मेरा क्रोध सुकेश पर इतना नही आता जितना आक्रोश उन पर आता है जो अपनी राजनीति में भगवान को भी भेंट चढ़ा देते हैं।
कल की घटना से शंकर मुझे लगने लगा है कि अपनी सोसाइटी में अब मंदिर जो भगवान का घर है उसके ही विरोध में राजनीतिजीवियों ने नफरत की आधारशिला रख दी है।
शंकर,रमेश को आश्वस्त कर रहा था रमेश वो ऊपर भगवान बैठा है ना वो इनके मंसूबे पूरे नही करने देगा तू बेफिक्र रह,सब ठीक ही होगा।
#आक्रोश
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
स्वरचित,अप्रकाशित, सत्य घटना पर आधारित।