Moral stories in hindi : बस सतीश अब बहुत हुआ , अब और नहीं , पाँच साल हो गऐ हमें अपने बच्चों से , अपने परिवार से बिछुड़े , मैं अपने बच्चो के बिना अब और नहीं रह सकती”
” नीलु तुम क्या समझती हो कि मैं बच्चों के बिना रह सकता हूँ या माँ – बाप के बिना रह सकता हूँ । कैसे भूल सकता हूँ मैं वो दिन जब पापा की डैथ हुई थी।
मैं अभागा पापा को मुखाग्नि भी नहीं दे पाया , जब चाचा के बेटे ने मुखाग्नि दी थी मोबाइल फोन पर सब देख-देख कर कैसे तड़प रहा था मैं, कैसे छटपटा रहा था वहां जाने को , लेकिन कुछ नहीं कर पाया , मैं मजबूर था।
इन लोगो के हाथों में मेरी डोर जो थी , नहीं जा सकता था अपने देश, अपने घर , अपने परिवार के पास”
“और मैं भी तो कितना तड़फी थी तब, जब मेरा छोटा भाई एक्सीडेंट में मारा गया था , पापा तो पहले से नहीं थे , कुदरत ने माँ का ये सहारा भी छीन लिया , कोई नहीं था माँ पास , कितनी अकेली पड़ गई थी माँ और मैं कुछ भी नहीं कर पाई”
और इस तरह बातें करते हुए दोनों खो जाते है उन ख़्यालो में। बीते दिनों को याद करते हैं, कि कैसे और कब दोनों ने अपना देश और परिवार छोड़ा था।
पाँच साल पहले ….. सतीश को कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल रही थी इंडिया में , किसी ने विदेश में अच्छी नौकरी का लालच दिया और वो तैयार हो गया विदेश जाने को।
नीलु ने और माँ-बाप ने बहुत मना किया ,लेकिन सतीश नहीं माना, उस समय उसे परिवार की कोई अहमियत नहीं लगी, उसकी आँखो पर नोटो का पर्दा पड़ा हुआ था , उसे तो बस नोट कमाने की धुन सवार थी , और चला गया विदेश, वहां जाकर अचानक बहुत बीमार हो गया देखभाल के लिए कोई नहीं था।
नीलु से रहा नहीं गया वो भी जिस ग़ैरकानूनी तरीके से सतीश गया था, उसी तरीके से चली गई सतीश के पास।
और जब सतीश ठीक है गया तो नीलू ने घर लौटने को कहा, मगर सतीश पैसा कमाना चाहता था। इसलिए उसने अभी वहां रूकने का फैसला कायम रखा। लेकिन आज परिवार की दूरियां उसे तड़पा रही हैं।
और अब दोनों इक दूजे का हाथ पकड़ कर कहते है …आ अब लौट चलें, अपने घर, अपने परिवार के पास।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी (यमुनानगर)