बरसात की वो रात – सुषमा यादव

,, पता नहीं क्यों ये जालिम, निर्दयी, बेदर्द बरसात हमें बचपन से ही पसंद नहीं है,,, बेतहाशा, झमाझम बारिश,, गड़गड़ाते बादल, कानों को फाड़ती,, चिग्घाड़ती हुई बिजली की तड़तड़ ये धुआंधार बरसात हमें एक भी नहीं सुहाती,, पता नहीं कैसे लोग बरसात में झूम झूम कर

नाचते हुए भावविभोर हो जाते हैं,,हे भगवान, हमारे ऊपर तो पानी की चंद बूंदें भी टपक पड़े,तो हम गुस्सा और विक्षोभ के मारे तिलमिला उठते हैं,,,भई, अपनी अपनी पसंद है,,अब हम क्या करें,,

जब हम किशोर अवस्था में पहुंचे,तब से, रातों में जब भयंकर बरसात होने लगती थी, और ना तो तब हमारा कोई संगी साथी यानि कोई दोस्त, और ना ही हमारी सगाई,ना शादी,,पर फिर भी हम सारी रात डर के मारे उस समय के प्रचलित कुछ मशहूर गाने बरसात के गाते रहते और आज़ तक वो ही राग अलापते रहते हैं,,अभी भी हमें इस बरसात से बहुत ज्यादा डर लगता है,

,,वो गाना बतायें,, हमें थोड़ी शरम आ रही है,,

***तुम बिन सजन बरसे नयन

,जब जब बादल बरसे,

मजबूर तुम, मजबूर हम,

दिल मिलने को तरसे,***

,, और भी जाने कितने गाने बारिश के,

 

ये तो हुआ बरसात के बारे में हमारा नजरिया,,

अब चलते हैं,, बरसात की वो रात से मिलने,,

 

,, शर्तों के मुताबिक हमारी नौकरी लगने के बाद हमारी शादी तय हुई, और ये हमें देखने आए, हमने स्कूल से घर आकर अंदर जाते समय बस एक नज़र इनकी तरफ उछाला और एक नज़र इनकी हम पर उछली,, अंदर जाकर हमसे कहा गया,, चाय वगैरह लाने को, हमने कह दिया,, कोई जरूरत नहीं, हमें पसंद हैं,, पता नहीं, कितने जन्मों का नाता रहता है कि एक नज़र देखा नहीं,कि लगता है,इनको तो हम बरसों से जानते हैं,, और वो शाम तक चले गए,,,



,, एक रात ऐसे ही मूसलाधार बारिश हो रही थी,सावन भादों का ही महीना था, रात को दस बजे थे

अचानक ज़ोर ज़ोर से दरवाजा पीटने की आवाज आई,,हम आगे के कमरे में ही सो रहे थे, हमारे दोनों भाई भी वहीं सो रहे थे,,हम डर के मारे एक दूसरे का मुंह देख रहे थे,, बरसात से हम वैसे भी बहुत डरते थे, ऊपर से इतनी रात,, बाबू जी जल्दी से बाहर आए,, कौन हो भाई,इतने पानी में, और दरवाजा खोल दिया,, पूरी तरह से पानी से तरबतर,,हम हैं,

बाबू जी,, बोले ,,,पर हम आपको पहचानने नहीं,

, हमने आंगतुक को एक पल को देखा और झटके से उठकर अपनी चादर सिर से ओढ़ते हुए अंदर भागे,, अम्मा बोली, कौन है बिट्टी,,वो, वो हैं,,वो कौन, अरे अम्मा, वोही,, अम्मा हमको घूरती हुई बाहर आईं,, भैया हम पहचान नहीं पाये,, पैर पड़ते हुए बोले ,हम

राम, लालगंज से,, अच्छा, तो आप हैं,,बबुआ,इतने पानी में, और झट से तौलिया देकर पोंछने कपड़े बदलने के बाद अम्मा के हाथ से बनाई गई चाय की चुस्की लेते हुए बताने लगे,, और हम भी पीछे के दरवाजे से कान लगाये सुनने लगे,,

,ये बोले,, बाबू जी आपका तार मिला, आपने शादी करने से मना कर दिया है,, हमारी माई तो बहुत घबरा गई है,,कह रही हैं कि डॉक्टर साहब ऐसे कैसे कह रहे हैं,हमरे बेटवा के हाथें मा रुपया रख के सबके आगे बरीछा भई, अब कह रहे हैं कि शादी ना करब,

हमारी कितनी बेइज्जती होगी, समाज में,, दरअसल उस समय सगाई आदि का चलन नहीं था,

बस लड़के के हाथ में कुछ रूपए रख देते, उसे बरिक्छा कहते थे और शादी पक्की,,

बाबू जी बोले, आप लोग तो दहेज मांग रहे हैं,कि इतना रुपया तिलक में चढ़ाना है,, मैं और मेरी बेटी दहेज के सख्त खिलाफ हैं,

इसीलिए हमने ऐसा लिखा है,,

पर, बाबू जी,आप ऐसा ही लिख कर भेज देते,हम सबने तो सब तैयारी कर ली है,,आप कुछ मत दीजिए, हमें एक पैसा नहीं चाहिए, पर आप ये शादी मत तोड़िए, मेरी मां ने कुछ नहीं कहा है, जिसने भी कहा है,गलत संदेश दिया है आपको,कि वो लोग दहेज मांग रहे हैं,,

अम्मा, बाबू जी ने कहा, अच्छा, ठीक है, पर आप भी हमें चिट्ठी भेज देते, पर इतने भयंकर बरसात में आने की क्या जरूरत थी,, अम्मा जी,,माई नहीं मानी,हम भी घबरा गये, चिट्ठी पता नहीं कब मिलती, और हम मूसलाधार बारिश में ही चल पड़े

, इलाहाबाद से आगे चाकघाट के टमस नदी का पुल टूट गया है और हम नाव से नदी पार किए हैं,



मल्लाह तैयार ही नहीं हो रहा था,हम बोले, भैया, बहुत जरूरी है,हमारा पहुंचना, हमें पार करवा दो,बोला,इतने बरसात और तूफ़ान में,हम कोई खतरा नहीं लेंगे,पर आप को तैरना आता है,, हां, हां आता है,हम गंगा जी तैर लेते हैं,अब चलो जल्दी,इस पार या उस पार,, तुम्हारी कोई ज़बाबदारी नहीं, और हम इस तरह आपके पास आ गये,

हे भगवान,हम परदे के पीछे से सुनकर सन्न रह गए,,ये एक और मजनू की औलाद,, अगर कहीं सचमुच में नाव पलट जाती तो,,तो हम कहीं के ना रह जाते

सारी जिंदगी हम सब अपने को माफ़ कर पाते क्या,

 

अम्मा ने जल्दी से खाना बनाने के लिए चूल्हा जलाते हुए हमसे पूछा,ना बिट्टी,हम सब तो ना पहचान पाये, फिर तुमने बिना देखे कैसे जान लिया कि वो ही हैं,

हम शरमाते हुए भाग गए, उन्हें कैसे बताते, ये तो सात जन्मों का बंधन है, उनके खुशबू से जान गये थे कि ये तो वहीं हैं,

, शादी के बाद यही सवाल हमसे ये पूछते, और स्वयं ही ज़बाब भी देते ,, प्यार को चाहिए क्या,, एक नज़र, एक नज़र,, और हम कहते,, बरसात में हमसे मिले तुम सजन,, तुमसे मिले हम ,, बरसात में,ताक धिना धिन,

 

, आज सोमवार को विषय आधारित बरसात पर रचना लिखने को पढ़ने के बाद हमें इनकी वो‌ जूनून भरी बरसात की रात याद आ गई,,

ओह,बेहद जानलेवा वो तूफ़ानी बरसात की रात, इनके हिम्मत और साहस तथा हौसले की दाद देनी पड़ेगी,, 

 # बरसात

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ प्र

 

स्वरचित, मौलिक,

 

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