रीमा की सगी मां नहीं थी , उसकी सौतेली मां रेनू थी जिसके खुद के दो बच्चे थे !
एक बेटा मोहक और एक बेटी सुहानी !
रीमा रेनू को फूटी आंख ना सुहाती थी , रेनू सिर्फ अपने दोनों बच्चे मोहक और सुहानी से ही प्यार करती थी ।
रीमा सारा दिन घर का काम करती , फिर भी उसे खेलने , खाने या कहीं जाने की आजादी नहीं थी !
रीमा के पिताजी जो एक क्लर्क थे , वह इन सब बातों से अनजान थे । क्योंकि उनके सामने रेनू अपने दोनों बच्चों से ज्यादा रीमा को प्यार करती ।
रीमा जब अकेली होती तो मन में हमेशा यही सोचती कि ; कब मुझे मोहक और सुहानी की तरह आजादी मिलेगी !
रीमा अब बड़ी हो रही थी वह हाई स्कूल में पहुंच चुकी थी , रेनू उसे स्कूल भी नहीं जाने देती थी , फिर भी रीमा पढ़ाई में तेज होने के कारण बचे हुए समय में पढ़ाई करती , और जल्द ही उसे याद भी हो जाता ।
हाई स्कूल की परीक्षा का परिणाम आया तो रीमा को फर्स्ट आया देख रेनू आग बबूला हो गई , क्योंकि उसके दोनों बच्चे पढ़ाई में बिल्कुल भी अच्छे नहीं थे !
हाईस्कूल के बाद रेनू ने रीमा की पढ़ाई बंद करवा दी , और 2 साल बाद उसकी शादी हो गई !
कहा जाता है भगवान के घर देर है अंधेर नहीं और वही हुआ रीमा के साथ , वह हर काम में निपुण होने के साथ-साथ पढ़ाई में भी तेज थी ,
उसकी सासू मां ससुर जी और उसके पति उससे खूब प्यार करते थे!
और करते भी क्यों ना वह खूबसूरती के साथ-साथ हर कार्य में निपुण जो थी!
उसके पति राज ने उसे पढ़ाई के लिए प्रेरित किया , राज ने उसका एडमिशन इंटरमीडिएट में करा दिया, सासू मां ने भी उसका खूब साथ दिया!
धीरे-धीरे समय बीत रहा था और रीमा इंटरमीडिएट के साथ-साथ कई डिग्रियां ले चुकी थी !
आज वह जब प्रोफ़ेसर बनकर अपनी मां और सास से आशीर्वाद लेने आई तो , उसने अपनी मां से कहा मां अब मैं आजाद हूं!
और सासू मां के पैर छूकर आशीर्वाद लेने के बाद उनके गले लग कर बोली , “मां जी” आप तो मेरी मां से भी बढ़कर हैं !
मैंने अपनी मां को नहीं देखा लेकिन ,
शायद भगवान ने आपको मेरी मां के रूप में भेज दिया!
आज मैं जो कुछ भी हूं आपकी वजह से हूं,
मैं पिंजरे में कैद एक पंछी थी, जिसको आपने उड़ना सिखाया और आजादी क्या है यह भी बताया !
मैं आपका जितना भी धन्यवाद करूं उतना कम है!
कहते कहते उसकी आंख भर आई , सास बहू का ऐसा प्यार देखकर आज उसकी मां को अपनी गलती का एहसास था !
वह रीमा के गले लग कर बोली , मुझे माफ कर दे मेरी बच्ची जो प्यार मैंने तुझे मां होकर नहीं दिया वह प्यार तुझे तेरी सासू मां से मिला !
मैं माफी के काबिल तो नहीं लेकिन माफी मांग रही हूं!
इतना कहकर दोनों गले लग कर रोने लगी आज दोनों के सारे गिले-शिकवे मिट चुके थे !
दोस्तों आप लोगों को मेरी यह नई कहानी कैसी लगी यह कहानी मैंने आजादी पर लिखी है यह काल्पनिक कहानी है प्लीज कमेंट में मेरी गलती जरूर बताएं आपकी सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों कमेंट स्वीकार है
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स्वरचित
सरगम भट्ट
गोमतीनगर लखनऊ