सोच” – ऋतु अग्रवाल

 अभी कुछ ही दिन बीते थे नियति की शादी को। पर न मालूम ऐसा क्या हुआ कि एक हँसता, खिलखिलाता चेहरा मायूस और उदास रहने लगा।  सास पूर्णिमा और जेठानी अनन्या चुपचाप नियति की दिनचर्या पर निगाह रखती। पहले तो उन्हें लगा कि मायके की याद आ रही होगी पर अगर ऐसा होता तो वह शुरुआती दिन में भी उदास रहती पर वह तो शुरू से ही एक हँसमुख,चंचल,शरारती लड़की रही थी।

      कुछ समझ नहीं आ रहा था। फिर लगा कि शायद पति-पत्नी में कुछ अनबन हो गई हो पर यहाँ भी शंका निर्मूल निकली। तरूण,नियति का पूरा ख्याल रखता और कभी-कभी उसे घुमाने भी ले जाता।  कुछ समझ नहीं आ रहा था। पूर्णिमा जी और अनन्या आपस में विचार विमर्श करते पर नियति की उदासी की वजह समझ नहीं आ रही थी।

     एक दिन अनन्या नियति से बोली,” नियति!मैंने तुम्हें कई बार फेसबुक पर सर्च किया पर तुम्हारी प्रोफाइल मुझे कहीं नजर नहीं आई और ना ही तुम इंस्टाग्राम पर कहीं हो। यहाँ तक कि तुम्हारा फोन नंबर व्हाट्सएप पर भी नहीं है। क्या तुम सोशल मीडिया पर कहीं नहीं हो?”

     “नहीं,भाभी! मैं सोशल मीडिया पर नहीं हूँ ।”नियति ने उत्तर दिया।

   “अच्छा !अच्छा ! तुम्हें पसंद नहीं होगा पर आजकल तो सभी सोशल मीडिया यूज करते हैं और अपने दोस्तों और परिचितों से संपर्क में रहने का यह अच्छा माध्यम है।” अनन्या ने कहा।

      नियति कुछ बोली नहीं पर उसकी आँखें भर आईं जिसे उसने धीरे से अपने दुपट्टे से पोंछ लिया ।उसकी इस गतिविधि  को पूर्णिमा जी की पारखी नजरों ने  परख लिया।

     उन्होंने नियति को पास बुलाकर बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ रखा। नियति अब खुद को रोक नहीं पाई। उसकी रुलाई फूट पड़ी।अनन्या नियति को चुप कराने के लिए आगे बढ़ी पर पूर्णिमा जी ने इशारे से उसे वहीं रोक दिया। पूर्णिमा जी धीरे-धीरे नियति की पीठ सहलाने लगीं।

   नियति ने पूर्णिमा जी की गोद में सिर रख दिया।        “अनन्या, एक गिलास पानी लाओ”, पूर्णिमा जी ने कहा।


    नियति पानी के कुछ घूँट भर कर खुद को संयत करने लगी।

     “नियति बेटा! तुम मुझे अपनी माँ मानो या ना मानो पर मैं तुम्हें अपनी बेटी ही मानती हूँ। मैं जबरदस्ती तो नहीं करूँगी पर अगर तुम मुझे अपनी तकलीफ बताओगी तो मुझे अच्छा लगेगा।” पूर्णिमा जी ने नियति का चेहरा ऊपर उठाते हुए कहा।

     “माँ…….” नियति हिचक गई।

     “नियति! जो भी बात है, माँ को खुल कर बताओ। माँ के पास हर समस्या का हल है।” अनन्या ने नियति का हाथ पकड़कर कहा।

   “माँ!तरुण बहुत अच्छे हैं पर पता नहीं क्यों उन्हें लगता है कि सोशल मीडिया पर एक्टिव होने की वजह से मैं अपने परिवार का पूरा ध्यान नहीं रख पाऊँगी इसलिए उन्होंने पहले ही दिन मेरा फेसबुक, इंस्टाग्राम और टि्वटर एकाउंट डिलीट करा दिया और व्हाट्सएप भी डिलीट करा दिया।

” नियति ने माँ को बताया,” अब मैं अपने किसी भी फ्रेंड से कांटेक्ट में नहीं हूँ और इसीलिए मैं अपने किसी भी फ्रेंड का कॉल पिक नहीं करती क्योंकि वह मुझसे सोशली इनेक्टिव होने की वजह पूछते हैं।” नियति ने सारी सच्चाई बयां कर दी।

        पूर्णिमा जी और अनन्या तरुण की छोटी सोच के बारे में जानकर हतप्रभ रह गए ।उन्हें अपने पढ़े-लिखे बेटे से इस दकियानूसी व्यवहार की उम्मीद नहीं थी।

      “तरूण! यहाँ मेरे पास आओ।” शाम को तरुण के ऑफिस से घर आने पर पूर्णिमा जी ने उसे अपने पास बुलाया।

  “जी, माँ,” तरुण ने माँ के पास बैठते हुए कहा।

    “तरुण,मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। इतना पढ़ा लिखा होने के बावजूद तुम इतनी छोटी सोच रखोगे। क्या जो लोग सोशल मीडिया पर एक्टिव होते हैं वह अपने पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों की अनदेखी करते हैं? तुम भी तो सोशली एक्टिव हो।मैं, तुम्हारे पापा और परिवार के अन्य सभी लोग सोशली एक्टिव हैं तो क्या हम अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते?

फिर तुमने नियति के सामने यह अजीबोगरीब पेशकश क्यों रखी? मैं मानती हूँ कि सोशल मीडिया का दुरूपयोग गलत है पर सीमा में रहकर हर चीज अच्छी होती है और सोशल मीडिया  के माध्यम से हम बहुत कुछ सीखते हैं, अपने परिचितों के संपर्क में रहते हैं । यहाँ कि घर बैठे अपने हुनर को हम लोगों के सामने एक्सप्लोर भी कर सकते हैं।” पूर्णिमा जी ने  तरुण को समझाया।

   “जी,माँ! मैं समझ गया नियति इधर आओ।”तरुण ने कहा।

    अगले ही पल नियति और तरुण साथ मिलकर नियति के नए अकाउंट्स बना रहे थे।

    नियति के चेहरे की मुस्कान पूर्णिमा जी और अनन्या को सुकून दे रही थी।

यह कहानी पूर्णतया मौलिक है।

स्वरचित

ऋतु अग्रवाल

मेरठ

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