मेरी पहचान है बेटियाँ  – विभा गुप्ता

  ” कैसे करेंगे तीन-तीन बेटियों की शादी विमल बाबू?दो बेटियाँ कम थीं जो एक और को ले आये।” पड़ोस के मिस्टर वर्मा व्यंग्य से बोले जब विमल बाबू ने उन्हें कन्या-जन्म की मिठाई खिलाई।जवाब में विमल बाबू ने हमेशा की तरह मुस्कुरा दिया।तीसरी पुत्री के जन्म पर उनके रिश्तेदारों ने भी उन्हें और उनकी पत्नी को बहुत ताने दिये थे परन्तु अपने स्वभावानुसार उन्होंने किसी की बात को दिल से नहीं लगाया।

          अपने नाम के अनुरूप निर्मल मन के धनी, विमल बाबू का मोटर-पार्ट्स का खुद का बिजनेस था।ईश्वर की कृपा से उनके घर में दुर्गा-सरस्वती का आगमन पहले ही हो चुका था, दो दिन पहले लक्ष्मी स्वरूप एक बिटिया और आ गई, जैसे अब उनका परिवार पूरा हो गया।उनकी पत्नी भी मृदुभाषी, मिलनसार और एक कुशल गृहिणी थी।बच्चों के लालन-पालन और घर की साज-सज्जा में उनका समय कैसे बीतता, उन्हें स्वयं नहीं मालूम।

              बड़ी बेटी पूजा और दूसरी बेटी आरती के लिए छोटी बहन दीक्षा मानों एक खिलौना थी।स्कूल से आकर दोनों ही उसे संभाल लेती ताकि माँ को थोड़ा आराम मिल जाए।समय बीतता गया और बेटियाँ बड़ी होने लगी।

         पूजा की बारहवीं परीक्षा का रिजल्ट आया तो विमल बाबू ने बेटी से पूछा कि अब आगे क्या करना चाहती हो? पूजा बोली, “पापा, मैं पुलिस में भर्ती होकर देश को अपराध-मुक्त करना चाहती हूँ।आप इजाजत देंगे?” विमल बाबू बोले, “तूने तो मेरे मन की बात कह दी बिटिया।देश की सेवा करना तो बड़े गर्व की बात है।तू आज ही जाकर फार्म ले आ, सारे कागज़ात अटैच करके मुझे बता देना,मैं हस्ताक्षर कर दूँगा।”  “सच पापा!” कहकर वह अपने पिता के गले लग गई।

              छह महीने की पुलिस- ट्रेनिंग के लिए पूजा सहारनपुर जा रही थी।पहली बार घर से इतनी दूर, सभी उदास थे।आरती पूजा के गले लगकर बोली, ” दीदी, मैं तो माँ को छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी।यहीं रहकर पढ़ूँगी और बच्चों को पढ़ाऊँगी।” सुनकर पूजा भाव-विह्वल हो उठी, आँखों के कोरों को पोंछते हुए उसने माँ-पिता के चरण-स्पर्श किये और बहनों को प्यार करके गाड़ी में बैठ गई।

         उधर पूजा की ट्रेनिंग पूरी हुई और इधर आरती का भी ग्रेजुएशन पूरा हो गया।शहर के ही बीएड काॅलेज़ में आरती ने दाखिला ले लिया।उसका अधिकांश समय काॅलेज़ और लाइब्रेरी में ही बीतता था।दीक्षा भी अपने बारहवीं कक्षा की परीक्षा के रिजल्ट का इंतज़ार कर रही थी।



              पूजा की फ़र्स्ट पोस्टिंग सहारनपुर के पास के एक गाँव में हुई थी।उसने अपने टीम के साथ एक बड़े क्रिमिनल को पकड़ा था जिसकी तस्वीर शहर के सभी अखबारों में छपी थी।पूजा की तस्वीर देखकर परिवार वाले और रिश्तेदारों ने जब विमल बाबू को बधाई दी तो उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया।मिस्टर वर्मा कब चूकने वाले थें, तस्वीर देखते हुए बोले, ” विमल बाबू, लड़की को इतना बड़ा अफ़सर तो बना दिया लेकिन अब इसके लायक दूल्हा कहाँ से लाएँगे?” हमेशा की तरह इस प्रश्न के  उत्तर में भी उन्होंने मुस्करा दिया। 

              दो दिन की छुट्टी लेकर पूजा घर आई थी।बहुत दिनों बाद पूरा परिवार एक साथ बैठकर खाना खा रहें थें।पूजा अपने किस्से बता-बताकर खाने का स्वाद बढ़ा रही दी।पूजा विमल बाबू से कहने लगी, ” पापा, हम दोनों बहनों ने तो अपने रास्ते चुन लिए हैं , अब दीक्षा के बारे में आपने क्या सोचा है?”

  ” सोचना क्या है,जैसे तुम दोनों अपनी राह चुनने के लिए स्वतंत्र थें, दीक्षा भी है।बोलो दीक्षा, तुम क्या चाहती हो? दो महीने बाद तुम्हारा रिजल्ट भी आ जाएगा।इसके बाद कहाँ एडमिशन लेना चाहती हो?” पिता की बात सुनकर दीक्षा ने अपनी दोनों बहनों की तरफ़ देखा, फिर अपनी माँ के गले में बाँहें डालते हुए धीरे-से बोली,

” पापा, मैं माँ का सपना पूरा करना चाहती हूँ।” “माँ का सपना!” विमल बाबू चकित हो गए। ” हाँ पापा, माँ लाॅ की पढ़ाई करके वकील बनना चाहती थीं।आपसे शादी हो गई न और फिर पूजा दीदी आ गई…।माँ का सपना तो रह ही गया।उनका वही सपना ही अब मेरी मंजिल है।कल जाकर मैं फार्म ले आऊँ?” 

” कल क्यों, आज क्यों नहीं?” पूजा और आरती एक स्वर में बोली तो ‘दीदी’ कहकर दीक्षा उनसे लिपट गई।बहनों का आपसी प्यार देखकर विमल बाबू और उनकी पत्नी की आँखें खुशी से छलक पड़ीं।

            आरती का बीएड पूरा होते ही उसे शहर के ही डीएवी स्कूल में अध्यापिका का जाॅब मिल गया।दीक्षा का भी लाॅ का फाइनल ईयर था,वह शहर के ही एक प्रतिष्ठित वकील के अंडर में इंटर्नशिप भी करने लगी थी।पूजा ने भी अपना तबादला होमटाउन में करा लिया।

            एक दिन विमल बाबू ने मिस्टर वर्मा के घर पर भीड़ देखी।अंदर जाने पर मालूम हुआ कि उनके इकलौते बेटे सुनील को पुलिस पकड़कर ले गई है।उन्होंने सारी बातें पूजा को बताई।पूजा ने तुरन्त एक्शन लिया।दरअसल पुलिस जुआ खेलते कुछ लड़कों को पकड़ी थी,सुनील भी वहीं खड़ा था, इसीलिए गलतफहमी में पुलिस उसे भी थाने ले गई थी।



              सुनील ने जब घर आकर पिता को बताया कि पूजा ने ही उसे पुलिस से छुड़ाया है तो मिस्टर वर्मा बहुत शर्मिंदा हुए।उन्होंने विमल बाबू से माफ़ी माँगना चाहा तो विमल बाबू बोले, “वर्मा जी, बेटा हो बेटी, शिक्षा और संस्कार तो दोनों के लिए ही आवश्यक है।बेटी है तो तभी तो हाॅस्पीटल में नर्स है,स्कूल में अध्यापिका और विमान में परिचारिका है।एक बेटे को जनम देने के लिये भी एक बेटी चाहिए और उस बेटे के विवाह के लिये भी एक बेटी ही चाहिये।वर्मा जी, अब तो बेटियाँ कार, बस, विमान और ट्रेन भी चला रहीं है।अंतरिक्ष तक की सैर कर आईं हैं

हमारी बेटियाँ।भारत रत्न और देश की शान ‘लता मंगेशकर जी’ भी तो तीन बहनें हैं और तीनों से ही भारत की पहचान होती है।इसलिए वर्मा जी, दृष्टि नहीं, दृष्टिकोण बदलिए।आज मैं और मेरी पत्नी जहाँ भी जाते हैं तो लोग हमारा परिचय “एक पुलिस अफ़सर ,एक अध्यापिका और एक वकील के माता-पिता के रूप में देते हैं। मेरी बेटियाँ ही मेरी पहचान,सम्मान और अभिमान हैं।” कहते हुए वे गर्वित थें।

           “आप शायद ठीक कहते हैं…।” वर्मा जी अपनी बात पूरी कर पाते,बीच में ही टोकते हुए विमल बाबू बोले, “अभी भी शायद..।”  ” नहीं-नहीं, भूल हो गई, क्षमा कीजिये।” हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुए वर्मा जी ने जब कहा तो विमल बाबू भी हँस पड़े।

            तभी दीक्षा अपने पापा को ढ़ूंढती हुई बाहर आई, ” क्या पापा, आप यहाँ हैं? भूल गयें क्या? आज मेरे काॅलेज में कन्वोकेशन है,मुझे लाॅ की डिग्री मिलने वाली है और आप हैं कि अभी तक….।”  “ऐसा सुअवसर मैं कैसे भूल सकता हूँ, अभी चलते हैं।अच्छा वर्मा जी, फिर मिलते हैं।” वर्माजी से विदा लेकर विमल बाबू दीक्षा के साथ ऑटो में बैठकर लाॅ काॅलेज के लिए रवाना हो गए।

                 —— विभा गुप्ता 

 

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