‘ एक मुलाकात ‘ – विभा गुप्ता

   दोस्तों, जीवन में हम जब भी किसी से मिलते हैं या यूँ कहे कि ईश्वर जब हमारी मुलाकात किसी भी व्यक्ति से कराता है तो उसका एक उद्देश्य होता है।वह व्यक्ति या तो हमें एक संदेश देता है या फिर एक सबक।किसी से हमें दुख मिलता है या कोई हमें एक मुस्कान दे जाता है।ऐसी ही एक मीठी-सी मुलाकात को मैंने लघुकथा का रूप देने का प्रयास किया है।

          दो दिन पहले की ही बात है।पतिदेव से अनबन हो गई और अच्छा-ख़ासा मूड ऑफ़ हो गया।सोचा, बाहर घूमकर मौसम का आनंद ले लिया जाये और मूड भी फ़्रेश हो जायेगा।जिस मानसून का इंतज़ार देश के कई शहर कर रहें हैं,मेरे शहर में तो वह जून में ही दस्तक दे चुका था।ऐसे में घर के बोरियत वाले माहोल में बैठे रहना तो बेवकूफ़ी होती है।सो मैं अपनी प्यारी स्कूटी पर सवार होकर निकल पड़ी।

               मुश्किल से दो कदम ही चले होंगे कि मैंने एक बुज़ुर्ग महिला को जाते देखा, जिन्होंने सिम्पल-सा सूट पहना था और हाथ में एक छोटा पर्स था।वैसे तो मैं भी सीनियर सिटीजन के बार्डर पर खड़ी हूँ पर वो तो सीनियर सिटीजन थीं। मैं आगे निकल गई, फिर न जाने क्या सोचकर रुक गई और उन्हें गरदन हिलाकर

अपने पास बुलाया।नाॅन हिन्दी शहरों में अंग्रेजी भाषा ही बातचीत का एकमात्र माध्यम होता है।मैंने पूछा,” May i drop you?” उन्होंने भी अंग्रेजी में ही जवाब दिया, ” I’ve never sat like this.” मैंने कहा, ” no problem” और दोनों तरफ़ के leg supporter खोल कर इशारे से बैठने को कहा।अब उन्होंने हिन्दी में कहा,

” आप मेरा weight carry कर लोगे?” उनके इस प्रश्न के दो मतलब थें।एक सिम्पल जिसका ज़वाब मैंने हँसकर दिया,” why not ma’am?” दूसरा मतलब शायद यह रहा होगा कि जहाँ बेटा अपनी माँ को बोझकर समझकर छोड़ देते हैं तो आप कैसे उस बोझ को उठा सकेंगी।मैंने मन में सोचा,हम तो भगवान के दिये हुए इस छोटे-से दिमाग में करोड़ों टन का तनाव लिये बरसों से घूम रहें हैं तो आपका भार तो कुछ भी नहीं हैं।


400;”>               खैर,वो धीरे से संभल कर बैठने लगी तो फिर पूछी,” May i hold you?” मुझे लगा, मेरे बेमानी जिंदगी को एक दिशा मिल गई।मैंने तपाक से कहा, ” sure ma’am.” फिर मैंने पूछा,” चलें? ” उन्होंने कहा,” yes, i am ok.” और मेरी स्कूटी अपनी मंजिल की ओर चल पड़ी।

         जहाँ उन्हें जाना था,मैं वो रास्ता नहीं जानती थी इसीलिए वो मुझे लेफ़्ट-राइट बताती जा रहीं थी और कुछ इधर-उधर की बातें भी।साथ चलते हुए हमारे सफर का बीस मिनट कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला।उन्होंने कहा, “यहीं रोक दो।” और फिर मेरे कंधे पर हाथ रखकर धीरे से उतरकर मुझे

‘ थैंक यू सो मच !” कहा और जाने लगी।लेकिन फिर मुड़कर मेरे पास आईं और पूछी,” वैसे आपको जाना कहाँ था?” मैंने हँसते हुए कहा, ” वहीं.. जहाँ आपको आना था।” फिर वो भी मुस्कुरा दीं और मुझे   उनकी मुस्कुराहट में पूरे ब्रह्मांड के दर्शन हो गये।उन्होंने हाथ के इशारे से God bless you! कहा और चली गईं।

                 उस एक मुलाकात ने मेरी सोच बदल दी।गुस्सा कब उड़न-छू हो गया,नहीं मालूम।क्या खोया याद नहीं,

पर जो मिला वो अनमोल था।उस मुलाकात की मीठी यादें और उनकी दुआएँ लेकर अपनी स्कूटी को मैंने घर की ओर मोड़ दिया।मन प्रफुल्लित था,एक आइसक्रीम पार्लर पर रुककर एक ‘काॅर्नेटो कोन’ खरीदा और घर आ गई।

                 ड्राइंग रूम के ईजीचेयर पर बैठकर मैंने टेबल पर अपने दोनों पैर पसारे और आराम से कोर्नेटो का मज़ा लेने लगी।पतिदेव कब बाज आने वाले थे,चुटकी लेते हुए बोले,” इस ठंडे मौसम में आइसक्रीम!” जवाब मेरे मुँह पर था।तपाक से बोली,” क्यों, आप इस ठंडे मौसम में आग लगा सकते हैं तो मैं ठंड में ठंडी आइसक्रीम भी नहीं खा सकती?” फिर क्या था,जिस घर में कुछ देर पहले सन्नाटा पसरा हुआ था,उस घर में ठहाकों के पटाखे फूटने लगे।

              —- विभा गुप्ता

                      मैंगलोर

          कभी-कभी अनजान लोग भी एक मुलाकात में वो सुख दे जाते हैं जिसकी तलाश में हम न जाने कहाँ-कहाँ भटकते रहते हैं।ये तो मेरे विचार हैं और आपके

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