ग़लती – नीलम सौरभ

अपनी बड़ी-सी गाड़ी में लम्बे सफ़र से ऊब कर वे दोनों पति-पत्नी, बेटी के साथ रोड साइड की उस चाय की टपरी को देख रुक गये थे, चलो, चाय ही पी ली जाये। बेहद शरारती दोनों नाती भी साथ थे, अपनी गेंद लेकर वे भी उतर पड़े थे।

छनाकsss!

गेंद आकर लगी और तेज आवाज़ के साथ काँच के 3-4 गिलास नीचे गिर कर चकनाचूर हो गये।

पीछे कहीं टेबल पोंछ रहा लड़का दौड़ कर आया।

“अरे, ये क्या हो गया?… पैर ऊपर कर लीजिए, साफ कर देते हैं!…किसी को चुभ न जाये!”

टपरी का मालिक केतली लेकर बाहर चाय का इंतज़ार कर रहे लोगों की ओर बढ़ रहा था, देख कर रुक गया। एकाएक उन लोगों के चेहरे ध्यान से पढ़ने लगा, जैसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो। न जाने क्यों, उस चाय वाले का चेहरा उन्हें भी जाना पहचाना सा लग रहा था। “अरे! ये तो लड़का भी पहचान का है। ये…ये तो…वही बच्चा है…सुम्मी का बेटा!!”

छनाकsss!

एक बार फिर से काँच टूटने की जोर की आवाज़ हुई मगर सिर्फ उन्हें सुनाई दी। मस्तिष्क की स्मृति-कन्दराओं में बिजली सी कौंधी। अकस्मात कुछ धुँधले दृश्य स्पष्ट होने लगे।

दीवाली से पहले पूरे घर की अच्छे से सफाई के उद्देश्य से उन्होंने किसी को लाने के लिए कामवाली सुम्मी से कह रखा था। 3-4 दिनों तक ढंग का कोई मिला ही नहीं। त्यौहार सिर पर थे, कोई भी खाली नहीं था। आखिरकार चौथे दिन सुम्मी अपने पति और 12-13 साल के बेटे को लेकर आयी थी।

उन्होंने मिलकर तीन-चार दिन में घर को अन्दर-बाहर सभी तरफ से एकदम चमका डाला था। आखिरी दिन ड्राइंग रूम में सामानों को पोंछते हुए बच्चे के हाथ से फिसल कर काँच का एक फूलदान टूट गया था। तत्काल उनकी पत्नी का एक भरपूर हाथ पड़ा था बच्चे के गाल पर। उन्होंने भी अपने गुस्से को ज़ब्त करते हुए उनके मेहनताने से रूपये काटे तो दोनों पति-पत्नी बहस करने लगे थे।

“साहब ये 600 कम क्यों दे रहे?” सुम्मी का पति शंकाग्रस्त हो पूछ रहा था।

“हमने तो एक दिन भी नागा नहीं किया…जितने की भी बात हुई थी, सारा काम किया है!” सुम्मी भी असमंजस में थी।


“फूलदान तोड़ा था लड़के ने… 1200 का था… शुक्र मनाओ, हमने तो आधे पैसे ही काटे हैं!”

“बच्चे ने जान-बूझ कर नहीं तोड़ा साहब, वह तो गलती से टूट गया…फिसल गया था हाथ से!” सुम्मी सहमे हुए बच्चे को आँचल में छुपाती बोल रही थी।

“इसीलिए तो आधे पैसे ही काटे….देखना अब अगली बार ध्यान से करेगा, कोई गलती नहीं होगी।”  इम्पोर्टेड फूलदान के टूटने का दर्द क्रोधित स्वर में था।

“यह तो बच्चा है साहब, अगर गलती से आपके ही हाथ से टूट जाता तो क्या कर लेते?” सुम्मी के पति की आवाज़ में भी दुःख के साथ क्रोध झलक उठा था।

“हमारे घर में कोई भी इतना लापरवाह नहीं है, समझे!!…आज तक घर का कोई सामान टूटा नहीं है कभी…!”

“…..साहब, चाय का बिल!”

आवाज़ सुन वे चौंक कर वर्तमान में लौटे।

“बिल में टूटे गिलासों के पैसे जोड़ कर काट लेना।” कोई तो बात थी, उनकी आवाज़ में एक दरकन थी आज।

“नहीं साहब! गिलास तो गलती से टूटे हैं, अगर हमारे हाथ से ही टूट जाते तो हम क्या कर लेते?…. हम केवल चाय के ही पैसे लेंगे और कुछ भी नहीं।” और उसने हाथ जोड़ दिये।

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नीलम सौरभ

(स्वरचित, मौलिक)

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