“ बधाई हो, बेटा हुआ है” नर्स ने लेबर रूम से बाहर निकलते हुए कहा। यह सुनकर सुमेधा की सास, ससुर, पति ,जेठ, सबके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। सुमेधा की सास ने हाथ जोड़कर भगवान का धन्यवाद किया, सिरफ इसलिए नहीं कि बेटा हुआ है, बल्कि उससे भी पहले इसलिए कि सुमेधा ठीक है।
सुमेधा का केस नार्मल नहीं था, दो दिन से हस्पताल में दाखिल थी, परिवार की चिंता जायज थी। एक बार तो डाक्टर ने यह भी कह दिया था कि मां बच्चे में से शायद एक की जान ही बच पाए। बच्चे से पहले सबको सुमेधा की चिंता थी।
कांताप्रसाद के परिवार में नितिन और यतिन दो बेटे और ममता और सुमेधा के इलावा ममता की दो बेटियां मिनी, रिनी और सुमेधा का पांच साल का बेटा अनुभव भी था। अब अनुभव का छोटा भाई भी आ गया था।
इस समय बड़ी बहू ममता घर पर तीनों बच्चों के साथ थी। नितिन ने घर पर फोन करके सुमेधा के बेटा होने की सबसूचना दी और साथ में खाना वगैरह भेजने को भी कह दिया। खुश होने के बजाए ममता जलभुन कर खाक हो गई। मन ही मन इर्ष्या की ज्वाला धधक रही थी।
उसके दो बेटियां थी और सुमेधा के एक बेटा, उसे लगता था कि बेटे की मां होने के कारण सुमेधा की ज्यादा कद्र है, उपर से वह बैंक में नौकरी भी करती थी। चूंकि ममता घर की बड़ी बहू थी, पहली बहू से जहां उम्मीदें ज्यादा होती है, वहां लाड प्यार भी अधिक मिलता है। अब सुमेधा छोटी थी और नौकरी करती थी तो जो घर में रहता है, उसे घर वगैरह का काम कुछ ज्यादा ही देखना पड़ता है।
सास निर्मला और ससुर कातांप्रसाद का दोनों बेटों बहुओं पर बराबर का स्नेह था। अच्छा खाता पीता परिवार , अपना दोमंजिला घर , सब सही था। ममता भी स्वभाव की बुरी नहीं थी। यतिन सुमेधा की शादी के बाद भी सब खुशी खुशी रह रहे थे। सुमेधा नौकरी के साथ साथ घर की जिम्मेवारियों को भी बखूबी निभा रही थी।
अनुभव के पैदा होने पर वो उसकी देखभाल में लगी रहती और फिर काम पर जाना भी जरूरी था। बेटा हो या बेटी अच्छी परवरिश तो देनी ही होती है। न जाने ममता को क्यूं लगता कि सबका ध्यान सुमेधा और अनुभव की और ही रहता है।
उसे लगता कि अनुभव के जन्म के बाद सब ममता और अनुभव से ज्यादा प्यार करते है। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था। मिनी और रिनी तो सबकी लाडली थी। निर्मला जी की अपनी बेटी नहीं थी तो उनकी तो जैसे तमन्ना पूरी हो गई थी।
ममता के छोटे बेटे अनुज के नामकरण पर काफी बड़ी पार्टी का आयोजन किया गया।कुछ दिनों बाद ही राखी का त्यौहार था। अनुभव के साथ साथ नन्हें से अनुज की कलाई पर भी राखी बांधी गई। रिनी और मिनी को उपहार में पतली पतली बहुत ही प्यारी सी सोने की चेन उपहार में मिली।
दोनों बहनें जब भी समय मिलता अनुज से खेलती। दोनों पांचवीं और तीसरी में जबकि अनुभव को इसी साल स्कूल भेजना शुरू किया था। उपर से तो ममता प्यार का दिखावा करती लेकिन मन में इर्ष्या दबी रहती। काश कि उसके भी एक बेटा होता।
अपने दिल की बात भी किससे कहती। पति नितिन को कुछ कहती तो वो कहां सुनता। उसका तो मन था कि एक चांस और लिया जाए, क्या पता बेटा पैदा हो, मगर नितिन समझाता कि बेटी, बेटे में कोई अंतर नहीं, वो भी तो अपने ही है।
ऐसा नहीं, अपने ,अपने ही होते है, ममता का उत्तर होता। समय के साथ साथ सब बच्चे बड़े हो गए। किसी की पढ़ाई पूरी हो गई तो कोई पढ़ रहा था। नितिन और यतिन उपर नीचे अलग रहने लगे,ये भी ममता की जिद्द थी। रसोई भले अलग हो गई लेकिन परिवार में प्यार कम नहीं हुआ। हां, लेकिन ममता के मन में कहीं न कहीं अब भी इर्ष्या बनी रहती। पढ़ाई में सभी अव्वल, किसी के दो नंबर ज्यादा तो किसी के कम।
सुमेधा सब बच्चों को शुरू से ही पढ़ाती थी क्यूंकि वो खुद काफी पढ़ी लिखी थी। ममता भी ग्रेजुएट थी लेकिन साईंस मैथस उसके बस में नहीं था।
एक रात सीढ़िया उतरते न जाने कैसे ममता का पैर फिसला और वो उपर से नीचे तक लुढ़कती हुई आई। सिर फट गया और बहुत खून भी बह गया।
बेहोशी की हालत में हस्पताल पहुंचाया गया। डाक्टरों ने कहा कि तुरंत खून चढ़ाया गया, उसका खून कहीं नहीं मिला, उसके भाई भी आए लेकिन किसी का खून मैच नहीं किया।
इस समय अनुज बीस साल का था, उसका खून मैच कर गया।
घर के सब हिचकिचा रहे थे, इतनी कम उम्र में और पहली बार खून देना, लेकिन वो बिल्कुल नहीं डरा।” डाक्टर साहब, जितना चाहिए खून ले लो लेकिन मेरी बड़ी मां को बचा लो”। अनुज ममता को बड़ी मां ही कहता था।
ममता को खून चढ़ने के बाद भी अगले दिन जब जरा सा होश आया तो सारे परिवार की जान में जान आई। अनुज और अनुभव हस्पताल में ही मंडराते रहे। सबको घर भेज कर दोनों वहीं रहते। हफ्ते बाद ममता को छुट्टी मिली। घर वालों और अनुभव , अनुज के इस सेवा भाव से ममता के मन की बरसों से पल रही इर्ष्या धुल चुकी थी। उसकी अपनी बेटी मिनी जिसकी शादी हो चुकी थी, न्यूजीलैंड से किसी कारणवश नहीं पहुंच पाई, जबकि यहां सब दिलोजान से उसकी सेवा में जुटे थे। अकेले में जब नितिन ने उसका हाथ पकड़ कर सहलाया तो उसकी आंखों से पश्चाताप के आंसू बह निकले और सारी इर्ष्या धुल गई। मुंह से कुछ न कह कर भी आंखों ने सब कह दिया।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
विषय- इर्ष्या