ईर्ष्या -हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

जब से विशंभर दयाल  जी ने घर में यह ऐलान किया है कि उनकी संपत्ति में दोनों बेटों के अलावा छोटी बेटी का भी हिस्सा जाएगा तभी से छोटे बेटे पराग का दिमाग चकरा गया है अनचाहे ही वह अपनी छोटी बहन विधि से ईर्ष्या करने लगा, दो बेटों के बाद जब बेटी का जन्म हुआ पूरे परिवार  में दिवाली का सा उत्सव मनाया गया था, दोनों भाइयों और पूरे परिवार की जान उसमें बस्ती थी पराग की तो खास तौर से, घर में सबकी लाडली  थी विधि, पराग उसके लिए कुछ भी करने को हर समय

तैयार रहता खुद से ज्यादा उसे अपनी बहन की खुशी की चिंता होती अधिकांश बार अपना हिस्सा अपनी बहन को दे देता था चाहे पॉकेट मनी हो या घर में कोई मिठाई आई हो और छोटी बहन जब खुश होकर इतराती और नाचती तब उस  का मन प्रसन्नता से भर जाता किंतु आज उसे समझ नहीं आ रहा पिताजी के निर्णय पर उसे अपनी बहन से ईर्ष्या क्यों हो रही है? वैसे भी पैसा तो पिताजी का था वह अपनी इच्छा से उसे किसी को भी दे! तीनों भाई बहनों में बचपन से ही असीम स्नेह और प्यार था,

तीनों बहन भाइयों को पिताजी ने एक जैसी शिक्षा दिलाने की कोशिश की किंतु बड़ा भाई विजय पढ़ाई में कुछ खास नहीं कर पाया अतः उसे पिताजी ने लाखों  रुपए लगाकर साड़ियों का शोरूम खुला दिया जो कि अच्छा खासा चल रहा था! पराग  पढ़ाई में अब्बल होने के कारण सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन गया और छोटी बहन विधि सी. ए. बन गई और उसकी शादी भी अच्छे खाते पीते खानदान में सी.ए. लड़के से हो गई, विशंभर दयाल जी खुद एक रिटायर्ड तहसीलदार थे पैसों की घर

में शुरू से कोई कमी नहीं थी किंतु आज पराग को पता नहीं क्या हो रहा था जब उसने अपने मन की बात अपने बड़े भाई को बताई तब वह ज्यादा तो कुछ नहीं कह पाया किंतु दबी जवान में इतना ही कहा पाया कि… हां इस जायदाद पर हम दोनों भाइयों का ही हक होना चाहिए था किंतु पिताजी के समक्ष अपनी बात कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी! इन सब बातों से बेखबर विशंभर दयाल जी ने 10 दिन बाद अपनी बेटी विधि का जन्मदिन अपने यहां मनाने के लिए उसके ससुराल में बोल दिया,

विशंभर दयाल जी अपनी बेटी को सरप्राइज देना चाहते थे और सरप्राइज में अपनी जायदाद का तीसरा हिस्सा  उपहार में देना चाहते थे किंतु हिस्से वाली बात उन्होंने विधि के ससुराल में या विधि को नहीं बताई! दोनों भाई मन ही मन में सोचते थे विधि को तो अब तक हमसे ज्यादा सुख सुविधा मिली है पढ़ाई में तो हमारे बराबर ही पैसा लगा था और शादी में भी पिताजी ने दिल खोलकर खर्च किया था, कम से कम 20 से 25 लाख उन्होंने खर्च किए थे और अभी भी त्यौहार के नाम पर विधि के ससुराल में

बहुत कुछ पहुंच जाता है तो देखी जाए तो विधि का हिस्सा तो अपने आप ही उसके यहां पहुंच गया अब उसका कौन सा हक बनता है! अगर विधि अपना हिस्सा ले लेती है तो आगे से हमसे कोई उम्मीद नहीं करेगी, दोनों भाई सोच रहे थे वैसे तो विधि इतनी अच्छी बनती है किंतु देखना संपत्ति ऐसी चीज है जिसे कोई मना ही नहीं कर पाता,  और यह तो  पिताजी अपनी स्वेच्छा से उसे दे रहे हैं तो कुछ कहने का मतलब ही नहीं बनता! 10 दिन बाद नियत समय पर विधि और उसके ससुराल वाले जन्मदिन के

उपलक्ष्म में एकत्रित हुए! पराग और विजय भीऊपर से तो खुश हो रहे थे किंतु मन ही मन अपनी बहन से ईर्ष्या का भाव लेकर बैठे थे, बस दोनों भाई पिताजी के बोलने का इंतजार कर रहे थे! कुछ देर बाद पिताजी ने कहा… आओ विधि बेटा अपनाकेक  कट करो  और पिताजी ने विधि को केक काटने के बाद दो तोले की चेन उपहार में दी और यथासंभव उसके ससुराल वालों को भी उपहार प्रदान किया, जब सारे मेहमान चले गए और घर के सदस्य रह गए तब दोनों भाई एक दूसरे की ओर आश्चर्यचकित

होकर देखने लगे, विधि उनकी मंशा समझ गई थी और बोली… मेरे प्यारे दोनों भाइयों, मुझे पिताजी की संपत्ति में से ₹1 भी नहीं चाहिए क्या मैं नहीं जानती पिताजी की संपत्ति में से लेने का मेरा कोई हक नहीं बनता क्योंकि मैं खुद इतने अच्छे घर में  बहू बनकर गई हूं, मैं और मेरे पति दोनों खूब अच्छा कमाते हैं ससुराल में भी भगवान की दया से कोई कमी नहीं है मुझे तो कहीं से यह खबर मिली थी की

पिताजी संपत्ति में तीसरा हिस्सा मेरे नाम करने जा रहे हैं तब मैंने पिताजी को पहले ही बोल दिया कि आप ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे जिससे हम बहन भाइयों के रिश्ते में दरार आए, भैया भौतिक संपत्ति के पीछे क्या मैं अपने अनमोल भाइयों को खो दूं,…? कभी नहीं..! मेरे ससुराल वालों ने भी मुझसे यही कहा था की विधि बेटा अपने मायके से किसी तरह का कोई हिस्सा मत लेना बल्कि हिस्सा अगर

मांगना हो तो उनके प्यार में हिस्सा मांगना संपत्ति तो एक न एक दिन खत्म हो ही जाएगी एक रिश्ते ही तो है यह जिंदगी भर साथ निभाएंगे और भैया यकीन मानो मुझे संपत्ति का बिल्कुल भी लालच नहीं है मैं तो अपने परिवार को हंसता खेलता देखकर खुश रहती हूं और यही मेरी सबसे बड़ी संपत्ति है! तो

प्लीज भैया आप अपनी बहन से ईर्ष्या का भाव मन में मत आने दीजिए, हम जैसे बचपन से अब तक रहते आए हैं हमारा रिश्ता आगे भी ऐसा ही रहना चाहिए हमारे बीच में ईर्षा या नफरत की कोई जगह नहीं है जगह है तो केवल उस प्यार की जिसमें मैं हिस्सा लेकर रहूंगी और उसमें आप कोई दखलंदाजी नहीं करेंगे और विधि की बात सुनकर वहां मौजूद घर के सभी सदस्यों की आंखों में आंसू आने लगे! तभी विधि के दोनों भाई बोले… विधि तू हमारी सबसे लाडली बहन है हमने यह कैसे सोच लिया कि तू ऐसा कोई भी काम करेगी जिससे हमारे संबंधों में दरार आए क्या हम नहीं जानते एक बेटी

के लिए अपने मायके की खुशी से बढ़कर कुछ नहीं होता हमारे मन में जो  गलत विचार आए उसके लिए हमें माफ कर दे अगर पिताजी तेरा हिस्सा तुझे दे भी  देते तब भी हमें खुश होना चाहिए था, आज से हम तुझ से वादा करते हैं हम हर दुख में हमेशा तेरे साथ खड़े रहेंगे, कोई भी बेटी अपने मायके से कभी हिस्सा नहीं चाहती वह तो वह हमेशा अपने मायके में आदर सम्मान और प्यार की अपेक्षा रखती है बस जिंदगी भर वही उसे मिलता रहे इसके अलावा उसे और कुछ नहीं चाहिए होता है! बहन बेटियों से कभी भी ईर्षा का भाव मत रखिए वहहमारी खुशियों को दुगना करने की कोशिश में ही लगी रहती हैं !

  हेमलता गुप्ता स्वरचित 

  कहानी प्रतियोगिता ( ईर्ष्या )

      # ईर्ष्या

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