अरे ओ जग्गू पार्वती गुड़िया कहां हो तुम सब?? कहीं दिखाई नहीं दे रहे हो। अभी तो खाना पकाने का समय है, तो चूल्हे में आग क्यों नहीं है?? यह चूल्हा ठंडा क्यों पड़ा है?? जेठानी लीला की आवाज सुनकर घर के पिछवाड़े का आंगन बुहारना छोड़ कर पार्वती जेठानी लीला के पास आकर कहने लगी।
दीदी आप कब आई कहते हुए जेठानी को पीढ़ा दिया और खुद भी बैठ गई। मैं तो अभी-अभी आई, मगर इस वक्त तेरा चूल्हा नहीं जलते देखा, तो मुझे फिक्र हो गई। अपनी जेठानी लीला की बात सुनकर पार्वती शांत मन से बोल उठी । वह क्या है ना दीदी, आज हमने जरा जल्दी खा लिया,क्योंकि गुड़िया को भूख लग गई थी और गुड़िया के बापू को भी बाहर जाना था ।इसीलिए काम थोड़ी जल्दी निपट गया।
जेठानी लीला पार्वती की बातें सुन तो रही थी, मगर उसका ध्यान बस चूल्हे की ओर ही था। अब वो इतनी छोटी भी न थी, की चूल्हे की गर्माहट और ठंडक को न जान सके। पार्वती का कहना कि खाना जल्दी निपट गया मगर उसका चूल्हा तो रह रह कर सुबह से ही नहीं जलने की गवाही दे रहा था।
आखिर क्यों उसके नहीं जलने की क्या वजह हो सकती है। क्या इस बार खेत में फसल अच्छी नहीं हुई, या फिर कोई और बात, जो पार्वती मुझसे कहना नहीं चाह रही है। लीला का मन ये सब सोचकर बेचैन हो उठा। उसे पार्वती और गुड़िया को इस तरह देखकर अच्छा नहीं लगा और वह निराश होकर घर आकर बिस्तर पर लेट गई ।
वह बिस्तर पर लेटे-लेटे साथ रहे हुए दिनों के बारे में सोचने लगी। जयदेव और जग्गू कहने को दोनों सगे भाई थे मगर दोनों भाइयों का स्वभाव एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत था। देवर जग्गू जहां दयावान ईमानदार परोपकारी था । वही लीला का पति जयदेव चतुर बेईमान कुटिल स्वभाव वाला था। उसकी कुटिलता ऐसी कि वह अपने खुद के छोटे भाई जग्गू के साथ भी बेईमानी करने में तनिक भी नहीं शर्माता था।
यहां तक की जिस खेत में दोनों भाई का आधा-आधा हिस्सा था । उसके खुद के पास बहुत होते हुए भी वो अपने छोटे भाई के खेत के हिस्से वाले खेत से फसल चुरा के अपने खेत में रखवा लेता । शुरुआती दिनों में तो लीला को पता नहीं चला, मगर धीरे-धीरे उसे इस बात का पता चल गया, तो उसने अपने पति जयदेव को समझाना चाहा, मगर कुछ नहीं हो सका क्योंकि जिसके मन में ईर्ष्या की आग जल रही होती है। उसे बुझाना इतना आसान तो नहीं होता। देवर जग्गू तो ऐसा सरल की वह तो आंख मूंद कर अपने भैया पर विश्वास करता था।
अचानक मोहन लीला से आकर कहने लगा। मां चाची और गुड़िया ने आज सुबह से कुछ भी नहीं खाया है, और चाचा तो कल रात से ही खेत पर ही है। घर आए ही नहीं। मोहन की बात सुनते ही लीला चौंक पड़ी, और तुरंत एक थाली में खाना परोसा और नंगे पांव ही पार्वती के घर चल दी क्योंकि दोनों भाइयों के घर के बीच बस सिर्फ एक दीवार ही थी।
लीला को देखते ही पार्वती शांत मन से बोल उठी। क्या बात है दीदी ?? अभी तो आप आई थी?? और आप यह क्या लेकर आई हैं??पार्वती की बात सुनकर जेठानी लीला बोल उठी। वही जो एक बहन को दूसरी बहन के घर लाना चाहिए।
तूने तो मुझसे कुछ नहीं कहा । अरे बावरी क्या मैं अब इतनी पराई हो गई हूं, कहते हुए थाली में परोसी हुई दाल और रोटी चूर-चूर कर अपने हाथों से कभी पार्वती तो कभी गुड़िया को खिलाने लगी।
रोटी खिलाते खिलाते ही लीला फिर अपनी देवरानी पार्वती से पूछ बैठी । क्या बात है बहन अब तो बता दे । मुझे मोहन ने बताया। कल रात से ही जग्गू खेत पर है, और तुमने भी आज सुबह से चूल्हा नहीं जलाया है।
जेठानी लीला की इतनी प्यार भरी बातें सुनकर पार्वती से रहा नहीं गया, और वह रोते हुए कहने लगी। दीदी कैसे कहूं आप जितनी अच्छी हैं। जेठ जी उतने अच्छे कभी अपने भाई और भाई के परिवार के प्रति रहे ही नहीं।
यूं तो गुड़िया के बापू को कई बार खेत में फसल कम होने पर शक होता था, मगर कल तो गुड़िया के बापू ने अपनी आंखों से जेठ जी को एक खेत से दूसरे खेत पर फसल ले जाकर रखते हुए देख लिया ।
तब से इनको फसल से ज्यादा अपने बड़े भाई की ईर्ष्या को देख कर अपने भैया पर विश्वास ही नहीं हो रहा है। और फिर दीदी इस बार फसल भी तो इतनी अच्छी नहीं हुई । जो कुछ बची खुची थी। साहूकार के पैसे चुकाने में बेच दी ,तो अब हमारे पास खाने को बचा ही क्या है, इसीलिए बस आज सुबह से चूल्हा नहीं जला।
देवरानी पार्वती की बात सुनकर लीला के पैरों तले जमीन खिसक गई । वह फिर गुस्से में कहने लगी। हद होती है पार्वती इंसान के ईर्ष्या की लालच की, आज तो मोहन के बापू को सीख देनी ही पड़ेगी। तू फिकर मत कर । मैं हूं ना कहकर पार्वती को गले से लगाया, और तुरंत वहां से निकल पड़ी ।
रात को जयदेव को घर आते देखकर लीला रोने का नाटक करते हुए कहने लगी। अरे मोहन के बापू घर पर आप ने जितने भी गहने और नगद इकट्ठे किए थे। सब चोरी हो गए। हम तो कंगाल हो गए।
मैंने दो दिन पहले जग्गू को अपने घर के अंदर से जाते हुए देखा था। मैं तो सौ प्रतिशत कह सकती हूं । हमारे गहने और नगद उसने ही अपने घर ले जाकर रख लिए है। पत्नी लीला की बात सुनते ही जयदेव गुस्से में लाल पिला होकर कहने लगा। जग्गू भाई होकर ऐसा कैसे कर सकता है। अरे अपने ही बड़े भाई के घर पर डाका। उसे मेरे कमाई से इतनी इर्ष्या।। उसकी इतनी हिम्मत कैसे हो गई।
पति जयदेव की बात सुनते ही पत्नी लीला बोल उठी। ठीक वैसे ही जैसे आप अपने छोटे भाई के खेत की फसल ईर्ष्या वश अपने खेत में आधी रात को रख लेते हो।
यह सुनते ही जयदेव को सारी बात समझ आ गई और मन में ग्लानि भरकर कहने लगा। लीला सच सच दे । ये बात और कौन जानता है। लीला बिना लाग लपेट के साफ शब्दों में बोल उठी।जग्गू, पार्वती और मैं। सोचिए आपका भाई और उसकी पत्नी पार्वती, जिसे आप ही अपने भाई के पिछे ब्याह लाए थे। आप ने उसका भी लिहाज नहीं किया, मगर जग्गू और पार्वती सब कुछ जानते हुए भी आपका सम्मान करते हुए आपसे कुछ नहीं कहा। आपका भाई जग्गू आपके गहने और नगद क्या लेगा बल्कि कल रात उसके खेत से उसकी ही फसल जब आप अपने खेत में रख रहे थे, तो अपनी खुली आंखों से आपकी काली करतूत देखकर वह सच्चा इंसान टूट गया।
मगर आपसे कुछ नहीं कहा क्योंकि उसके खून में आज भी इस परिवार का लिहाज वाला खून बहता है, मगर लगता है,आपके खून में इस परिवार के लिहाज वाला खून अब रहा ही नहीं।
सच कहूं तो आप बड़े भाई होकर भी आज छोटे हो गए और आपका छोटा भाई आज आपसे छोटा होकर भी बहुत बड़ा हो गया और हां गहने और नगद सब यही है मेरे पास।
वह तो मैंने आपको अपनी भूल जताने के लिए ऐसा कहा । आज एक बात आपसे और कहना चाहती हूं ,अगर अब भी आप नहीं सुधरे, तो मैं आज के बाद आपके इन गहनों और नगद को कभी हाथ नहीं लगाऊंगी। पत्नी लीला की बात सुनते ही जय देव की नजरे शर्म से झुक गई और बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। उसने फिर पत्नी लीला से क्षमा मांगते हुए कहा। लीला मुझे क्षमा कर दे। मैं तुम्हारा और जग्गू का दोनों का ही गुनहगार हूं मगर हां वादा करता हूं । मैं आने वाले जीवन में ऐसी गलतियां अब कभी नहीं करूंगा क्योंकि आज मुझे ये अहसास हो गया है और फिर जयदेव ने पत्नी लीला का हाथ पकड़ा और जग्गू के घर पहुंच गया। वहां पहुंचते ही जग्गू को अपने गले लगाते हुए कहने लगा। मेरे भाई जग्गू मुझे माफ कर दे ।
बाबूजी के दिए हुए खेत हम दोनों के पास बराबर ही थे और उसमें बराबर की ही फसले होती थी मगर फिर भी, मैं ईर्ष्या के मारे तुम्हारे खेत की थोड़ी फसल उठा लेता था,ताकि तुम्हें पता ना चले, मगर मैं तो आज धन्य हो गया। जो तुम्हारी भाभी लीला ने आज मुझे सही रास्ता दिखाया।
तुम जैसा भाई, जो मेरी नीचता जानते हुए भी बड़े भाई का सम्मान करते हुए मुझ से कुछ नहीं कहा। बड़े भाई जयदेव की बात सुनकर जग्गू दुखी मन से बोल उठा। भैया बचपन में तो मां बाबूजी ने हम दोनों को ही अच्छी और सच्ची सीख दी।
मैं तो उसी रास्ते पर चलता रहा, मगर आप कैसे चूक गए। आप अपने छोटे भाई से ही ईर्ष्या करने लगे। मैं ज्यादा पढ़ा लिखा तो नहीं हूं, मगर इतना जरुर जानता हूं की मन में पल रही ईर्ष्या ने कभी किसी का घर नहीं बसने दिया। जग्गू की बात सुनकर जय देव धीरे से बोल उठा।
मैं अपनी भूल की प्रायश्चित करना चाहता हूं जग्गू,इसीलिए आज के बाद दोनों भाई के दो चूल्हे नहीं,बस एक ही चूल्हा जलेगा, अगर तुम सबकी सहमति हो तो ,पति जयदेव की बात सुनते ही लीला ने पार्वती और जग्गू को इशारे से पूछा, तो जग्गू और पार्वती ने इशारे इशारे में ही हां कह दी।
बस फिर क्या था, उस दिन के बाद से दो घर एक हो गए, और दो चूल्हे भी एक हो गए, तो ईर्ष्या भी चुपचाप दूसरी गली की ओर चल पड़ी, क्योंकि वह जान चुकी थी। अब उसकी दाल यहां गलने वाली नहीं है,और जहां सब एक होकर रहते हैं। वहां ईर्ष्या का क्या काम।
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम