ईर्ष्या – नीलम शर्मा : Moral Stories in Hindi

रामलाल जी एक रिटायर्ड अध्यापक थें। उन्होंने अपने अध्यापन के कार्यकाल में कितने ही बच्चों की पढ़ाई का खर्चा भी उठाया था। जो बच्चे स्कूल की फीस भरने में सक्षम नहीं थे। पढ़ाई में कमजोर बच्चों को भी कक्षा से अलग भी पढ़ा देते थे। स्कूल के बच्चे उनका बहुत सम्मान करते थे। कई बच्चे ऐसे भी थे जो पढ़ लिखकर अच्छे पद पर कार्यरत थे। जब किअपने स्कूल टाइम में वे गलत संगति में पड़कर अपना समय बर्बाद कर रहे थे। लेकिन रामलाल जी के समझाने पर उन्होने पढ़ाई की तरफ ध्यान दिया। मिसाल थे रामलाल जी एक अध्यापक के रूप में। 

ऐसा ही माहौल उन्होंने अपने घर में भी बनाया हुआ था। उनके दो बेटे थे। पढ़ने में होशियार। सब आपस में बहुत खुले हुए थे। रामलाल जी का अपने बच्चों से दोस्ताना व्यवहार था। बच्चों को कोई भी परेशानी होती तो वह अपने पापा से बात कर आसानी से उस समस्या का हल पा लेते थे। जैसे रामलाल जी वैसी ही समझदार और शांत उनकी पत्नी सुलक्षणा थी। उनका बड़ा बेटा बैंक में और

छोटा प्रोफेसर बन गया था। रामलाल जी ने अपने दोनों बच्चों की शादी उनकी ही पसंद की लड़कियों से की थी। सब एक साथ रहते थे। बहुओं के साथ भी उनका व्यवहार अपने बेटो जैसा ही था। दोनों बहू भी आपस में बहनों की तरह रहती। उन दोनों ने मिलकर घर का सारा काम संभाल लिया था। यथा संभव उन दोनों की जितनी सहायता सुलक्षणा जी कर पाती कर देती थी। कुल मिलाकर घर में सुख शांति थी। 

एक दिन रामलाल जी अपनी पत्नी से बोले, घर में बहुत दिनों से कोई कार्यक्रम नहीं हुआ है। क्यों न एक पूजा करा लें। इस बहाने सब रिश्तेदारों से भी मिलना हो जाएगा। जी बिल्कुल ख्याल तो बहुत अच्छा है। उन्होंने अपने बेटे बहुओं से बात करके पूजा का कार्यक्रम तय कर लिया। और सभी रिश्तेदारों को न्यौता दे दिया। 

रामलाल जी के घर में आज पूजा थी। उसमें उनकी दोनों बहुएं बहुत अच्छी तरह से सारा इंतजाम कर रही थी। सुलक्षणा जी व्यवस्था की तरफ से बिल्कुल निश्चिंत आने जाने वालों के साथ व्यस्त थी। 

पूजा में सुलक्षणा जी की बहन रमा भी आई थी। जिनकी तीन बहुएं थी। तीनों बहुएं लड झगड़कर अलग-अलग रहने लगी थी। मनमुटाव इतना बढ़ गया था कि आपस में बोलचाल तक नहीं थी। सुलक्षणा जी सबके सामने अपनी बहुओं की बडाई कर रही थी। दोनों बहुएं भी बड़ी प्रेम से हंसी खुशी के साथ सारा काम देख रही थी। 

रमाजी को अपनी बहन के घर में इतना अच्छा माहौल देखकर ईर्ष्या सी होने लगी। पूजा खत्म होने के बाद वे कुछ दिनों के लिए वहीं रुक गई। कुछ तो ईर्ष्या कुछ अपनी आदत से लाचार। सास से बहू की और दोनों बहुओं की आपस में चुगली करने लगी। सुलक्षणा जी को तो अपनी बहन की आदत का

पता था तो वह अपनी बहन की बातों पर ध्यान नहीं देती थी। लेकिन बहुएं तो अभी इतनी परिपक्व  नहीं थी। रमा जी की बातों का उन पर असर दिखाई देने लगा था। जो बहुएं अब तक बहनों की तरह मिलजुल कर काम करती थी। अब एक दूसरे से मुंह बनाए रखती और लड़ने को तैयार रहती। 

एक दिन सुलक्षणा जी छत पर गई। तो उन्होंने रमा जी को किसी से फोन पर कहते हुए सुना कि, बड़ी इतरा रही थी सुलक्षणा अपनी बहुओं पर। पर मैंने भी ऐसा कर दिया कि अब मोहल्ला तमाशा देखेगा। सुलक्षणा जी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था, कि उनकी सगी बहन अपनी बहन के घर में ही आग लगाने पर तुली हुई है। उन्हें अपनी बहन की करतूत के बारे में घर में किसी से कहने पर भी शर्म आ रही थी। 

लेकिन अपने घर को टूटने से बचाने के लिए कुछ तो करना ही था। उन्हें अपने पति रामलाल  जी ही दिखाई दिए, जो इस समस्या का हल निकाल सकते थे। सुलक्षणा जी ने सारी बातें रामलाल जी को बताई। तो उन्होंने दोनों बहुओं को अपने पास बुलाया। और बोले बेटा किसी की बातों में आकर अपने रिश्ते खराब करना अच्छी बात नहीं है। अपनी बुद्धि की कसौटी पर भी बातों को परखना चाहिए।

उन्होंने सुलक्षणा जी से सारी बातें बहुओं को भी बताने के लिए कहा। जिससे कि वे आगे सावधान रहें। सारी बात सुनकर बहुओं को बहुत ग्लानि हुई। उन्होंने आपस में एक दूसरे से माफी मांगी। और बोली पापा जी हमें आगे के लिए एक नहीं सीख मिली है। रामलाल जी ने रमाजी से हाथ जोड़कर अपने घर वापस जाने के लिए कहा। अपनी ईर्ष्यावश आज वे अपनी बहन के घर से बेइज्जत होकर वापस जा रही थी। रामलाल जी की समझदारी से फिर से उनके घर का माहौल खुशनुमा हो गया।

बेटियां विषय- ईर्ष्या 

 नीलम शर्मा 

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