अरे काजल! यह रंग की साड़ी ले आई तुम? तुम्हारे रंग को यह जचेगी नहीं, यह तो मेरे जैसी गोरी चिट्टी रंग पर फबेगी, कम से कम एक बार अपने ऊपर लगाकर तो देख लेती खरीदने से पहले? तुम्हारे माता-पिता ने बड़े सोच समझकर तुम्हारा नाम रखा है
जैसा नाम वैसी सूरत, पता नहीं देवर जी ने तुममे ऐसा क्या देखा? काजल की जेठानी प्रिया ने कहा
ऑफ ओह! भाभी आप काजल को नीचा दिखाने का एक मौका भी नहीं छोड़ती ना? पता है काजल इनकी बहन के साथ यह मेरा रिश्ता करवाना चाहती थी, वह तो नहीं हुआ बस उसी की भड़ास तुम पर निकालती रहती है, सुनो भाभी! मेरी पत्नी को जो रंग पसंद आएगा वह वही पहनेगी, वह मेरे लिए परी है, आप जैसा रंग लेकर भैया ने कौन सा तीर मार लिया? भले ही आपका रंग गोरा है पर सोच उतनी ही काली, अच्छा हुआ आपकी बहन मेरी पत्नी नहीं बनी, वरना आज वह भी आपकी तरह ही घर में क्लेश करती, और मुझे यह हीरा भी कभी नहीं मिलता, काजल के पति रवि ने कहा
प्रिया: क्या कहा आपने? मेरी सोच काली है? मैं घर में क्लेश करती हूं? पत्नी के आगे बड़े ही हीरो बन रहे हो देवर जी! अब क्या करें ना मिलने पर अंगूर तो खट्टे ही लगते हैं ना? मुझे क्या? जो पहनना है पहनाओ इसे, पर जब फंक्शन में सभी कहेंगे तब लड़ना सबसे? बड़े आए परी वाले! यह कहकर प्रिया वहां से चली गई
काजल और प्रिया की एकलौती ननद मोहिनी की शादी थी। घर पर उसी की तैयारियां चल रही थी। जहां काजल ने अपनी पसंद की हल्की गुलाबी रंग की साड़ी खरीदी थी, जिसे देखकर ही प्रिया ने उससे यह सब कहा था। दरअसल काजल सांवली से दिखने वाली, एक साफ दिल, सीधी-सादी लड़की थी। उसकी रवि से मुलाकात उसके एक सहेली की शादी में हुई थी, जहां पहले ही नज़र में रवि का दिल उसकी भोली सूरत पर मोहित हो गया और कुछ महीनो बाद उनकी शादी हो गई। काजल का सावला होना रवि के परिवार को भी काफी खटकता था। पर रवि के आगे किसी की ना चली और काजल उस घर में बहू बनकर आ गई। पहले पहल तो रवि की मां (आशा जी) भी उसके रंग की वजह से उसे काफी ताना मारती थी और प्रिया से तुलना करती थी, जिससे प्रिया अपने रंग पर और इतराती और घमंड में आकर काजल को चिढ़ाती, पर काजल बचपन से इसकी आदी थी, क्योंकि हम चाहे लाख तरक्की कर ले, अभी भी रूप रंग से आगे नहीं बढ़ पाए हैं, चाहे आपके अंदर हजार गुण हो, रूप रंग सही नहीं तो कदर भी नहीं और यह आज की हकीकत है। काजल सारी बातों को एक कान से घुसाती और दूसरे से निकाल देती। क्योंकि उसे पता था चाहे दुनिया की नज़र में वह सांवली हो, पर रवि उसके सांवलेपन से ही प्यार करता था। धीरे-धीरे काजल के व्यवहार से आशा जी भी पिघलने लगी, जहां प्रिया दिन भर बस अपनी रूप चर्चा में लगी रहती, वही काजल घर के हर एक सदस्य का बखूबी ध्यान रखती। घर में पहले प्रिया आई थी, पर सब की ज़रूरत का ज्ञान काजल को ज्यादा था, जिससे धीरे-धीरे प्रिया को छोड़कर पूरा परिवार ही उसका नाम जपने लगा। प्रिया को इस बात पर बड़ी ईर्ष्या होने लगी और अब तो बिना किसी बात के ही वह काजल को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती। मोहिनी की शादी में मोहिनी से ज्यादा प्रिया ही पार्लर में बिता रही थी। काजल की शादी के बाद यह घर की पहली शादी थी, जहां सारे रिश्तेदार आने वाले थे, घर की आखिरी शादी थी इसलिए वह रिश्तेदार भी आने वाले थे, जो काजल की शादी में किसी भी कारणवस आ नहीं पाए थे। प्रिया को अपने रंग रूप पर बड़ा घमंड था। वह तो सोच रही थी की शादी पर काजल का मज़ाक ज़रूर बनेगा और उस पर हल्की गुलाबी साड़ी।
खैर शादी के दिन सारे काम छोड़, प्रिया पार्लर में तैयार होने चली गई। इधर काजल को एक पल का आराम नहीं मिल पा रहा था। मेहमानों की आवभगत, मोहिनी की ज़रूरत का ध्यान रखना, इस बीच ससुर जी की भी तबियत बिगड़ गई, तो उनको भी संभालना, वह करे जा रही थी, अपने चेहरे पर मुस्कान लिए, सारे मेहमानों को पूछ पूछ कर उनकी ज़रूरत पूरी करना, जितनी भी छोटी-छोटी ननदे आई थी, उनको साड़ी पहनाना, काजल बड़े ही खुशी के साथ कर रही थी, जब मोहिनी तैयार होकर स्टेज पर जाने लगी, आशा जी ने उससे कहा, काजल! अब तुम भी तैयार हो जाओ, तुम्हारे बिना मोहिनी बाहर कैसे जाएगी? मैं तो उसे तुम्हारे हाथ देकर ही चैन से बैठ पाऊंगी। तुम नहीं होती तो हमारा क्या होता? यहां तुम्हारे पापा जी के साथ भी किसी को तो रुकना होगा ना? तुम्हें आज इसकी मां का किरदार निभाना है और इसके लिए मैं तुम पर आंख बंद करके भरोसा कर सकती हूं। आशा जी जब यह सब कह ही रही थी, तभी प्रिया पूरी तरह से बन ठन कर आई और कहा, अरे मम्मी जी! मैं आ गई हूं, अब आप मेरे भरोसे सब छोड़ दीजिए, मैं सब संभाल लूंगी और मुझे देखिए लग रही हूं ना दुल्हन की बड़ी भाभी? हम दोनों कितनी जच रही हैं, काजल ना भी आए तो चलेगा और यह चाहे कितना भी तैयार हो ले, हमारी बराबरी तो नहीं कर सकती ना?
आशा जी: चुप करो प्रिया! सिर्फ रंग ही साफ है और है ही क्या तुममे? कहने को तो बड़ी बहू हो इस घर की, पर जता ऐसे रही हो जैसे की मेहमान हो, शादी वाले घर में हज़ारों काम होते हैं, जो दोनों मिलकर कर सकती थी, पर नहीं? तुम्हें तो अपने रूप चर्चा से फुर्सत मिले तब ना? सिर्फ दुल्हन के साथ स्टेज पर चढ़कर फोटो खिंचवाने के अलावा भी काम होते हैं, जो तुम ना कर सकी, तो अब आगे के रस्मो के लिए तुम पर भरोसा कैसे कर लूं? काजल तुम जाओ और तैयार होकर आओ, तब तक मोहिनी यही अपने पापा के पास बैठी है
मोहिनी: हां भाभी! आपसे बहुत कुछ सीखा है, जो मैं अब अपने ससुराल में काम में लाऊंगी, मैं पूरी कोशिश करुंगी कि आपकी तरह अपनी जिम्मेदारी निभा पांऊ
प्रिया ऐसा सुनकर ईर्ष्या से जल भून रही थी और मन ही मन सोच रही थी, अभी तो बड़ी तारीफ कर रहे हैं सभी, बाहर जाने तो दो तैयार होकर, जो सब ने खुसर फुसर ना किया तब कहना, तब रूप रंग का महत्व पता चलेगा, अब भगवान ने रूप दिया है तो इतराना तो बनता ही है ना? फिर प्रिया बाहर चली गई, थोड़ी देर में काजल तैयार होकर आई, हल्की गुलाबी साड़ी में साधारण सा श्रृंगार, इतनी सुंदर लग रही थी, शायद यह सांवला रंग मानो उसी के लिए बना हो, आशा जी ने दोनों को नज़र का टीका लगाया और फिर वह दोनों बाहर गए, प्रिया तो सोच रही थी कि लोग उसका उपवास उड़ाएंगे, पर यहां तो सारे लोग काजल की तारीफों के पुल बांध रहे थे। कोई कहता बहू हो तो ऐसी, पूरी जिम्मेदारी अकेले उठा लिया, इतनी भाग दौड़ में भी चेहरे पर मुस्कान, सच में बहू हो तो ऐसी, अब प्रिया से रहा नहीं गया, वह तुरंत कहती है, मौसी जी! रंग तो देखो नाम के साथ मेल खाता है और इसको देखकर तो कोई डर ही जाए
मौसी जी: रंग? अरे काजल ही बुरे नज़र से हमें बचाता है और एक औरत की आंखों की सुंदरता बढ़ाता है और रंग क्या धोकर पीना है? गुण काम आते हैं, मैंनें तो पहली बार देखा काजल को, पर सच, पहली बार नज़र में ही दिल में समा गई, वरना इस घर में पहले भी कई बार आई हूं गौर रूप वाले को तो अपने से ही फुर्सत नहीं हमारी क्या सेवा सत्कार करेंगे? प्रिया अब और भी ज्यादा भड़क जाती है और वहां से चली जाती है, वह आज बड़ी ही अकेली महसूस कर रही थी, तभी वहां काजल जाकर कहती है भाभी अक्सर हम दिखावे में जीते जीते वास्तव में जीना भूल जाते हैं। रंग रूप भगवान हमें देते हैं, इसमें हमारी कोई गलती नहीं, फिर भी हमें दोषी बना दिया जाता है, मैं तो सोचती थी आपके साथ सहेली की तरह रहूंगी, पर न जाने आपने मुझसे पहले से ही क्यों दूरी बना ली? भाभी क्या सहेली की तरह हम नहीं रह सकते?
प्रिया काजल के इस बात से भावुक हो जाती है और उसे गले लगा कर कहती है, तू सच में काजल है जिसके बिना नज़र का टीका नहीं लग सकता और एक औरत का श्रृंगार पूरा नहीं हो सकता।
दोस्तों, इस कहानी के माध्यम से मेरा मकसद यह कहना है कि किसी के रंग रूप को लेकर उसका मज़ाक ना उड़ाए, क्योंकि उसने खुद अपने को नहीं बनाया, अगर आप ऐसा करते हैं तो आप उसका नहीं, बल्कि भगवान के बने हुए रचना का मजाक उड़ा रहे हैं। हमारे कान्हा ने भी अपने लिए सांवला रंग ही चुना, जबकि वह चाहते तो गोरे रंग में आ सकते थे, क्योंकि उन्हें यह संदेश देना था कि सारे रंग उनकी ही रचना है और उन्हें हर रंग से प्यार है, तो हम कौन होते हैं किसी भी रंग को नकारने वाले? क्यों सही कहा ना मैंने ?
धन्यवाद
रोनिता कुंडु
#ईर्ष्या