शकुन्तला जी मंदिर से पूजा करके उठी और रसोई में आकर चाय का कप लिया और पीने लगी, चाय उन्होंने पहले ही दो कप बनाकर रख दी थी,अपने पति ओमी जी को चाय का प्याला देकर वो मंदिर में पूजा करने चली गई थी, कभी गर्म चाय पी ही नहीं थी तो अब आदत ही नहीं रही।
चाय रखी हुई ठंडी हो जाती थी और वो अपने बाकी काम निपटाने में लगी रहती थी, सालों की ये आदत अब भी जा नहीं रही थी।
कैसे तुम ठंडी चाय पी लेती हो? ओमी जी ने सवाल किया तो उन्होंने पलटकर कर कहा, आपने पहले तो कभी ये बात नोटिस नहीं की और आज अचानक से कैसे ये सवाल कर रहे हैं?
हां, पहले तो तुम बच्चे पालने और घर संभालने में व्यस्त थी, घर की बहू थी, तुम पर अनेकों जिम्मेदारी थी, पर अब तो सास बन चुकी हो, आराम से बैठकर गर्म चाय की चुस्कियां लिया करों।
ये सुनते ही वो हंसने लगी, अच्छा क्या अब मैं जिम्मेदारी से मुक्त हो गई हूं? वो कैसे? उधर घड़ी में देखिए आठ बज रहे हैं और आपकी बहू अभी तक उठी नहीं है, उसके उठने से पहले मैंने हमारे लिए चाय बना ली है, पूजा कर ली है और नाश्ते की तैयारियां कर दी है, साथ ही टिफिन में जो सब्जी जायेगी, उसे भी काटकर रख दिया है, मैं सुबह पांच बजे उठ गई थी, अब पहले की तरह भाग-भाग कर काम नहीं होता है, पर धीरे-धीरे सब फिर भी कर लेती हूं,मेरी जिम्मेदारियां खत्म नहीं हुई है, बल्कि बढ़ गई है, अब आप बताओं मैं कैसे तसल्ली से गर्म चाय पी सकती हूं?
अभी आपकी बहू उठेगी, और वो गर्म चाय पीये़गी, अभी आपका बेटा आता ही होगा रसोई में, ओमी जी ये सब सुनकर झेंप गये, क्योंकि उनकी पत्नी एक-एक शब्द सच बोल रही थी।
वो सोच ही रहे थे कि उनका बेटा रसोई में गया और दो कप चाय बनाने लगा, थोड़ी देर में बहू साक्षी आती है, तसल्ली से सोफे पर बैठ जाती है और विकास उसे हाथों में चाय ले जाकर देता है, और वो गर्म चाय का स्वाद लेती है, शकुन्तला जी उसे देखती रह जाती है और मन ही मन बुदबुदाती है, बहू मुझे कभी-कभी तुमसे ईर्ष्या होती है’ काश! तुम्हारे जैसा नसीब हर स्त्री का होता, और मुस्कराने लगती है।
थोड़ी देर बाद साक्षी जिम जाने के लिए तैयार हो जाती है, मम्मी जी, मैं जिम जा रही हूं, हेमा मेड आयें तो आप काम करवा लेना, और मेरे कमरे की अच्छे से सफाई करवाना, पलंग के नीचे बहुत मिट्टी है।
उससे कहना बर्तन भी अच्छे से साफ करें और ये रूपये लीजिए, उसका महीना हो गया है, उसे दे दीजिएगा, साक्षी मेड की पगार उनके हाथों में रखकर कार की चाबी हाथों में घुमाती हुई निकल जाती है।
ओमी जी के सामने सब होता है तो वो भी चुप रहते हैं, तभी शकुन्तला जी कहती हैं, मेरी जिम्मेदारियां कहां खत्म हुई है, बहू जिम चली गई और दो घंटे में आयेगी और मैं नीचे बगीचे में भी घुमने भी नहीं जा पाती हूं, आजकल की बहूओं की किस्मत से ईर्ष्या होती है।
मैं भी बहू थी,पर तब हम पर घर का सारा भार होता था, सुबह तो सांस लेने को फुर्सत नहीं मिलती थी, और खुद के चाय-नाश्ते करने की तो बारी ही नहीं आती थी, सारा काम खुद हाथों से करते थे, सुबह का काम दोपहर तक पूरा होता था, और दोपहर की चाय से फिर काम शुरू हो जाता था तो रात तक चलता था, सोचा था बेटे की मां हूं, बुढ़ापे में उतना ही आराम मिलेगा जितना, हमने हमारी सास को करवाया था, पर आजकल की सास को कहां आराम और जिम्मेदारी से मुक्ति मिलती है।
तुम भी ना ज्यादा ही सोच रही हो? पहले जो काम तुम हाथों से करती थी, वो काम अब मेड आकर कर देती हैं, पहले से तो आराम मिल ही गया है, ओमी जी समझाते हुए बोलें।
हां, आपकी नजरों में ये आराम है, लेकिन काम तो फिर भी है, रसोई के कामों से तो मुक्ति नहीं मिली है, और कपड़े चाहें वाशिंग मशीन में धुल जाते हैं, पर उन्हें सुखाना, समेटना, प्रेस वाले को देना, वापस अलमारी में जमाना, ये तो मुझे ही देखना है, मैंने पहले ही कहा था कि मुझे कमाने वाली बहू नहीं चाहिए, वो तो पैसा फेंकेंगी और तमाशा देखेंगी, इसलिए मुझे घरेलू लड़की चाहिए थी।
अब मैडम जी आयेगी, नाश्ता करेंगी, सजेगी संवरेगी और ऑफिस के लिए निकल जायेगी, और मैं उसका टिफिन हाथ में बनाकर दूंगी, अरे!! नौकरी करती है तो करें, मनाही नहीं है, पर अब उसका कर्तव्य है कि वो घर संभाले, मैं कब तक बैठी रहूंगी?
आजकल की बहूओं को बड़ा आराम है, खुद कमाती है, मेड रख लेती है, फिट रहती है, घुंघट और दुपट्टे की बंदिश नहीं है, मनचाहे हर तरह के कपड़े पहनती हैं, किटी पार्टी और होटल में जाती रहती है, पार्लर में दिल खोलकर खर्च करती है, सुबह जल्दी उठने का दबाव नहीं है, पतिदेव चाय-कॉफी बनाकर दे देते हैं, पति पर निर्भर नहीं है, स्वयं ही कार चला लेती है, सास घर संभाल लेती है, हाथों में पैसा है, जिम्मेदारी उठाती नहीं है, अपने हिसाब से ही रहती है, बच्चे भी एक ही पैदा करती है, उसे पालने की जिम्मेदारी भी नहीं लेती है, या तो मेड संभालती है या सास संभाल लेती है।
गुड्डू की जिम्मेदारी भी मेरी ही है, वो मेरे हाथों से ही खाता-पीता है,पहले अपने बच्चे संभालों, फिर बच्चों के बच्चे संभालों, हमारी तो पूरी उम्र ऐसे ही निकल गई।
मेरा भी मन करता है, मैं सुबह आराम से उठूं, सुबह बगीचे में सैर करने जाऊं, थोड़ी देर योग करूं, तसल्ली से गर्म चाय पीऊं और मुझे भी परोसी हुई भोजन की थाली मिलें, यहां तो खुद ही सब बनाना होता है, बहू नौकरी करती है तो सास को घर संभालना चाहिए, सास घर पर ही तो रहती है, कमाती थोड़ी है? मुझे काम करने से मनाही नहीं है, पर साक्षी को भी अपनी कुछ जिम्मेदारियां तो समझनी चाहिए।शकुन्तला जी की आंखे भर आई।
तुम इतनी परेशान मत हो? जो तुम्हारा मन है वो करों, कल से तुम अपना जीवन जीयों, ओमी जी ने कहा तो शकुन्तला जी आंसूओं को पौंछते हुए बोली, वो कैसे?
तुम थोड़ी मजबूत बनो, बहू को भी काम के लिए बोलो, थोड़ा तुम करो, थोड़ा बहू करें, मैं और विकास भी मदद करेंगे, आखिर सबको अपने हिस्से का जीवन जीने का अधिकार है, तुमने सबके लिए बहुत जी लिया, बहुत काम कर लिया, अब थोड़ा अपने लिए भी जीकर देखो, वो अपनी पत्नी को समझाते हुए बोले।
अगले दिन शकुन्तला जी उठी, उसके बाद दो कप चाय बनाकर तसल्ली से बैठकर पति के साथ उन्होंने चाय पी, फिर उन्हीं के साथ नीचे सैर करने को चली गई।
वहां से एक घंटे बाद आई तो देखा साक्षी सोफे पर बैठकर चाय पी रही थी, तभी साक्षी बोली, मम्मी जी आप नाश्ते में आज क्या बना रहे हो? कुछ अच्छा सा बना दो, आज तो मुझे जिम भी नहीं जाना है।
साक्षी, तुम्हें जिम नहीं जाना है, तो आज तुम हम सबको नाश्ता बनाकर खिलाओं, अगर कुछ मदद चाहिए या पूछना हो तो बता देना, और खाने में क्या बना रही हो, वो भी बता देना, मैं पूजा-पाठ करने जा रही हूं, मुझे समय लगेगा, और साक्षी का जवाब सुने बिना ही वो अपने कमरे में चली गई।
साक्षी हैरान थी,आखिर मम्मी जी को क्या हो गया?
रोज तो स्वयं नाश्ता बना देती थी, उसने नाश्ता तैयार कर दिया, तब तक शकुन्तला जी की पूजा हो गई थी।
उन्होंने तसल्ली से नाश्ता किया,और सब्जियां साफ करने लग गई, साक्षी कौनसी सब्जी बनाओगी?कौनसी पहले साफ करूं?
साक्षी सकपका गई, तभी मेड आ गई, ओमी जी बोले, मैं मेड से सफाई करवाता हूं, आज बॉलकोनी भी साफ करवानी है, तभी वो विकास को बोलते हैं, बेटा तू वाशिंग मशीन में कपड़े धुल गये है तो निकालकर सुखा दें, छुट्टी के दिन तो थोड़ा हाथ बंटा सकता है। विकास चुपचाप कपड़े निकाल कर सुखाने लगता है।
तेरी मां थक जाती है, हम सबको मिलकर घर की थोड़ी -थोड़ी जिम्मेदारी बांट लेनी चाहिए, अब मां को भी आराम चाहिए, सालों उन्होंने बहुत कर लिया है।आज हम दोनों दोपहर का भोजन करके, शाम को कान्हा जी के मंदिर जायेंगे, बहुत दिनों से ये कह रही थी, और बाहर ही खा-पीकर आयेंगे।
ये सुनकर विकास बोला, पापा मैंने और साक्षी ने भी मूवी देखने का सोचा है, तो फिर घर पर गुड्डू को कौन संभालेगा? वो तो अभी एक साल का ही हुआ है, हमें ढंग से मूवी देखने भी नहीं देगा।
बेटा, तुम दोनों को ही संभालना है, उसे भी साथ ले जाना, जब तेरी मां और मैं मूवी देखने जाते थे तो तुझे साथ ले जाते थे।
तेरी मां को तो आज मंदिर जाना है, तुम दोनों तो वैसे भी हर संडे को मूवी देखने जाते ही हो, इस बार मत जाओ, गुड्डू को संभालों, वैसे भी बच्चे को माता-पिता का प्यार और साथ भी चाहिए होता है।
शकुन्तला जी ने साक्षी के साथ रसोई में खाना बनाने में मदद करी, आज उन्होंने पूरी जिम्मेदारी नहीं उठाई,
अपने हिसाब से काम किया और रसोई से बाहर आ गई।
अपनी सास का बदलता रवैया देखकर, साक्षी समझ गई थी, अब पहले जैसा कुछ नहीं रहा, इसलिए उसने दो-चार दिन तो देखा, पर नौकरी के चलते उसे परेशानी होने लगी, फिर काम करने की भी आदत छूट गई थी, अब उसे समझ आया कि घर की जिम्मेदारी क्या होती है? उसकी सास किस तरह से घर संभालती है, उसने एक खाना बनाने वाली रख ली, इससे उसका और शकुन्तला जी का काम आसान हो गया।
अब शकुन्तला जी भी खुश थी, वो भी अपनी जिंदगी थोड़ी कम जिम्मेदारी के साथ जीने लगी थी, और अपने पोते गुड्डू को भी ज्यादा समय दे पा रही थी।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खण्डेलवाल