राज खोलना – रेनू अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

आज फिर प्रीति नींद से चौंककर उठ बैठी, उसका चेहरा पसीने से भीगा था। राज ने घबराकर पूछा, “क्या फिर वही सपना देखा?” प्रीति चुप रही, लेकिन उसकी आँखों में डर साफ झलक रहा था।

राज ने उसे बाँहों में भरते हुए कहा, “प्रीति, सपने अक्सर वही दर्द दिखाते हैं जिन्हें हम दिल में दबा लेते हैं। क्या तुम्हारे अंदर भी कोई ऐसा राज है जो तुम्हें सालों से खा रहा है? शादी को पच्चीस साल हो गए, क्या मुझ पर इतना भी भरोसा नहीं कि अपना दर्द बाँट सको?”

राज के विश्वास भरे शब्दों ने प्रीति का दिल छू लिया। वह भावुक हो गई और रोने लगी राज ने उसे बाहों में भर लिया।वह तब कहने लगी, “जब मैं दस साल की थी, तब एक अंकल अक्सर हमारे घर

आते थे। मैं उन्हें बहुत मानती थी, लेकिन एक दिन जब मम्मी-पापा घर पर नहीं थे, उन्होंने मेरे साथ ग़लत हरकत की। जब मम्मी को पता चला, तो उन्होंने मुझे कसमें दिलाकर चुप करा दिया — कहा कि अगर किसी से बताया तो वह मर जाएंगी। तब से ये बात मेरे सीने में दबी रही।”

राज उसकी बात सुनकर गंभीर हुआ, फिर मुस्कराते हुए बोला, “पगली, इसमें तुम्हारी क्या गलती थी? तुम तो बच्ची थी। इतने साल इस दर्द को अकेले झेला — काश, पहले बताया होता।”

राज ने उसे गले से लगा लिया। प्रीति की आंखों से आंसू बहने लगे, पर आज उन आंसुओं में हल्कापन था। उसे लगा जैसे बरसों बाद कोई बोझ उतर गया हो। एक सच्चे हमसफ़र को पाकर वह अपने भाग्य पर गर्व महसूस करने लगी।

आज फिर प्रीति नींद से चौंककर उठ बैठी, उसका चेहरा पसीने से भीगा था। राज ने घबराकर पूछा, “क्या फिर वही सपना देखा?” प्रीति चुप रही, लेकिन उसकी आँखों में डर साफ झलक रहा था।

राज ने उसे बाँहों में भरते हुए कहा, “प्रीति, सपने अक्सर वही दर्द दिखाते हैं जिन्हें हम दिल में दबा लेते हैं। क्या तुम्हारे अंदर भी कोई ऐसा राज है जो तुम्हें सालों से खा रहा है? शादी को पच्चीस साल हो गए, क्या मुझ पर इतना भी भरोसा नहीं कि अपना दर्द बाँट सको?”

राज के विश्वास भरे शब्दों ने प्रीति का दिल छू लिया। वह भावुक हो गई और रोने लगी राज ने उसे बाहों में भर लिया।वह तब कहने लगी, “जब मैं दस साल की थी, तब एक अंकल अक्सर हमारे घर

आते थे। मैं उन्हें बहुत मानती थी, लेकिन एक दिन जब मम्मी-पापा घर पर नहीं थे, उन्होंने मेरे साथ

ग़लत हरकत की। जब मम्मी को पता चला, तो उन्होंने मुझे कसमें दिलाकर चुप करा दिया — कहा कि अगर किसी से बताया तो वह मर जाएंगी। तब से ये बात मेरे सीने में दबी रही।”

राज उसकी बात सुनकर गंभीर हुआ, फिर मुस्कराते हुए बोला, “पगली, इसमें तुम्हारी क्या गलती थी? तुम तो बच्ची थी। इतने साल इस दर्द को अकेले झेला — काश, पहले बताया होता।”

राज ने उसे गले से लगा लिया। प्रीति की आंखों से आंसू बहने लगे, पर आज उन आंसुओं में हल्कापन था। उसे लगा जैसे बरसों बाद कोई बोझ उतर गया हो। एक सच्चे हमसफ़र को पाकर वह अपने भाग्य पर गर्व महसूस करने लगी।

राज खोलना ( प्रीति का राज)

रेनू अग्रवाल

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