“आज तो मैं तुम्हारा राज जानकार ही रहूँगा । आख़िर तुम कौन हो जो इस अनाथाश्रम के बच्चों के लिए बिना अपनी पहचान बताए इतना धन दान करते हो कि ये बच्चे अपनी पढ़ाई-लिखाई करने के साथ अच्छा खा-पहन भी पाते हैं ।हम सब तुम्हारे शुक्रगुज़ार हैं बेटा और तुम्हारा दान दुनिया को बताना चाहते हैं पर तुम हो कि
अपना नाम तक सामने नहीं आने देना चाहते हो ।” अनाथाश्रम के संचालक राजाराम जी ने उस अनजान युवक से कहा जो उनके सामने पिछले 2 वर्षों से इस अनाथाश्रम के बच्चों के लिए पढ़ाई और अन्य चीज़ों के लिए धन दे रहा था ।
“बाबूजी आप इस अनाथाश्रम में नए आए हैं शायद !” उस युवक ने कहा ।
“हाँ मुझसे पहले इसके संचालक कमलकान्त जी थे।”
“वे अब कहाँ हैं ?” युवक ने पूछा ।
“वे बेचारे तो बरसों इस अनाथाश्रम को सम्भालने के बाद अब ख़ुद वृद्धाश्रम में रह रहे हैं । उनके बेटा बहू ने उन्हें घर से निकाल दिया है ।” राजाराम ने कहा ।
सुनकर वह युवक रोने लगा । “अरे बेटा तुम रो क्यों रहे हो ?” राजाराम ने कहा ।
“बस यही है मेरा राज़ । मेरा नाम विजय है ।मुझ अभागे को जन्म देकर कोई इस अनाथाश्रम की सीढ़ियों पर रख कर छोड़ गया था । कमलकान्त जी की गोद में ही मैं पला-बढ़ा और पढ़ा लिखा । वो मेरे लिए माता पिता,भगवान सब कुछ हैं ।उन्होंने मुझ जन्म लेते ही त्याग दिए गए अनाथ को अपनाया । मेरा जीवन बनाया । आज मैं आईएएस उन्हीं की बदोलत बना हूँ ।उन्होंने मुझे आईएएस की तैयारी करने के लिए दिल्ली भेज दिया था ।आज मैं आईएएस बनने के बाद उनके सामने पहली बार जा रहा हूँ ।मैं भी उनका बेटा हूँ और जा रहा हूँ उन्हें लेने वृद्धाश्रम । उनकी जगह वृद्धाश्रम में नहीं मेरे घर में है । बस यही है मेरा राज जो आपके सामने खुल गया है अब तो !” कह कर वह युवक अपनी गाड़ी लेकर कमलकान्त जी को लेने वृद्धाश्रम चला गया ।
गीता यादवेन्दु,आगरा
#राज खोलना (मुहावरे पर कहानी)