वक्त से डरो – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

अपनी ही रौ में मधु बोले जा रही थी”मम्मी,अठारह साल की हो गईं हूं।अब मैं अपने फैसले खुद ले सकती हूं।कब तक पापा की तानाशाही बर्दाश्त करेंगें हम।मैं तो कहती हूं,मेरे साथ तुम भी निकल लो इस कैदखाने से। मम्मी,हम जैसे ही शादी करके सैटल हो जाएंगे,तुम भी हमारे साथ रहना।रवि की भी तो मां हो तुम।”,

बेटा,पापा हैं, तेरे दुश्मन नहीं।थोड़ा थोड़ा करके तेरी पढ़ाई,शादी सब खर्चों के लिए जाने कब से बचत कर रहें हैं।रही बात तानाशाही की ,तो ऐसी कोई जबरदस्ती वाली बात है ही नहीं।हर घर के पीछे घर वालों की इज्जत छिपी होती है।घूमने जाने में कोई परहेज नहीं हैं उनको।पर तुझे भी तो अब समझना पड़ेगा ना कि साथ में कौन लोग जा रहें हैं।कहीं कुछ ऊंच नीच हो गई,तो पापा के सारे सपने टूट जाएंगें।अच्छा सुन अगली बार मैं तेरे पापा को मना लूंगीं।तब वो तुझे खुशी -खुशी जाने की इजाजत देंगे वो।”सत्या अपनी बेटी सानिया  को समझा रही थी।

“जाने देंगे!!!!वो भी खुशी -खुशी।हम्म।ऐसा कभी नहीं होगा मम्मी।तुम झूठी उम्मीदों की लौ जलाती रहो।मैं तुम्हारे जैसी नहीं बनना चाहती।मैं जा रहीं‌ हूं,और दोस्तों के साथ रवि भी जा रहा है। उम्र में मुझसे छोटा है,पर हम अच्छे दोस्त हैं।तुम और पापा तो इन सब बातों का मतलब जानते भी नहीं होंगे।बस घर में बैठे नाश्ता बनाते,पापा की तीमारदारी करते,

और उनसे डरते-डरते ही सारी जिंदगी निकाल दी तुमने।तुम्हें कभी पापा ने तुम्हारी पसंद,इच्छा,शौक, के बारे में पूछा?कभी नहीं।मैं उनसे मेरी खुशी की उम्मीद नहीं करती।शाम की बस बुक्ड है,गोवा के लिए।हम सब साथ निकलेंगें।तुम पापा को मना लोगी,पता है।”सानिया उखड़ी बातें कर रही थीं।

सत्या समझ चुकी थी कि अब बेटी को रोकना असंभव था।वो जिद्दी जाकर ही मानेगी।शाम को बस में बैठते समय भी उसने पापा से कोई बात नहीं की।सत्या ,सुनील के साथ कार में जाकर छोड़ना चाहती थी सानिया को।पर सुनील ने अपनी जगह बेटे (सुधीर)को भेज दिया।

घर आते ही सत्या जोर से चिल्लाने लगी”ये लड़की भी ना ,सुनती ही नहीं।बचपन से बोलती थी,हर बात के लिए हां मत कहिए,पर तब मेरी बात हंसी में‌ उड़ाकर, मुझे ही विलेन बना देते थे तुम।अब भुगतो अपनी नकचढ़ी और जिद्दी बेटी की जिद।”,

एक शब्द नहीं‌ कहा सुनील जी ने।घर में मायूसी छाई हुई थी।कोई किसी से बात नहीं कर रहा था।तीन दिन बाद वापस आना था सानिया को। पहुंच के मम्मी को फोन कर दिया था उसने।किसी प्राइवेट रिसोर्ट में रुके थे सब।सत्या ने मां के डर के वशीभूत सानिया को सावधान रहने के लिए समझाया बार-बार।

अगले दिन ही‌ उसकी दोस्त का फोन आया”आंटी,सानिया की तबीयत अचानक खराब हो गई है।बहुत उल्टियां हो रहीं हैं।हमने पास के लोकल हॉस्पिटल में भर्ती कराया है।आप लोग जल्दी आ जाइये।सत्या तो इस खबर के सुनते ही भगवान‌ के मंदिर में जाकर रोने लगी।माथा पीट-पीट कर ईश्वर से सानिया की सेहत की दुआ मां रही थी ।बेटा मां को चुप कराने की पूरी कोशिश कर रहा था ,पर सफल नहीं हो पा रहा था।

पड़ोस की आंटी को‌ बुलाकर मां के पास बैठाया ,और पापा के आॉफिस भाग कर पहुंचा।सुनील ,सुधीर को‌ देखकर चौंक गए।तब सुधीर ने सानिया की तबीयत के बारे में बताया।सुनील का फोन साइलैंट पर था,इसलिए कॉल उठा नहीं पाए।दोनो‌ ने घर जाकर सत्या को लिया।सुनील ने चेकबुक रख ली अपनी।सुधीर ने भी अपने एक टी एम रख लिए।

आंधी -तूफान की तरह गाड़ी चलाकर वे गोवा के लोकल हॉस्पिटल पहुंचे।सानिया को मानसिक आघात लगा था,पर शायद शारीरिक शोषण हो जाने के बाद।ड्यूटी डॉक्टर से मिलने जैसे ही सुनील केबिन में घुसे,उनके हांथ -पैर ठंडे पड़ने लगे,

कुर्सी पर बैठे उन‌ डॉक्टर को देखकर। उन्होंने भी शायद सुनील को पहचान लिया था।सुनील‌ उनके पांव‌ में गिरकर गिड़गिड़ाते हुए बोले”रवींद्र,मैं अपने किए पर बहुत शर्मिन्दा हूं।उस गलती की सज़ा मैं रोज भुगत रहा हूं।किसी से कह नहीं पाता।तू मेरा दोस्त है ना,मेरी बेटी को बचा‌ ले।क्या हुआ है इसे?ठीक हो जाएगी ना?”

सामने बैठे डॉक्टर रवीन्द्र थे।यहीं के रहने वाले।वैसे उनके पिता  कलकत्ता 

से यहां घूमने  आए थे,पर फिर यहीं बस गए। रवीन्द्र की मां,पिता और एक बहन थी।बहन सबसे छोटी थी सो सबकी लाड़ली। रवीन्द्र ने अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर यहीं अपना हॉस्पिटल बनवा लिया था।दस साल छोटी रिया बड़े दादा के साथ कभी-कभार हॉस्पिटल आ जाती  थी।मरीजों के लिए ड्राइंग,पेंटिंग बनाकर उन्हें भी बनाना सिखती थी।शाम को हॉस्पिटल में मरीजों को थैरेपी देती थी , स्विमिंग करवाकर।सभी मरीज रिया से अपनी बहन की तरह घुल मिल गए।

बहुत साल पहले सुनील अपने दोस्तों के साथ आया था गोवा।एक दिन‌ रिया को तैरते देखा उसने तो,दिल हार गया।इससे पहले कि रवीन्द्र को कुछ पता चलता,रिया ने सुनील को अपना सब कुछ मान लिया था।सुनील की छुट्टियां बढ़ती जा रहीं थीं,

और‌ रिया से करीबियां भी।अभी व्यस्क नहीं हुई थी रिया,तो रवीन्द्र ने यही कहा था सुनील से”तुम्हारी जिंदगी अभी शुरू हुई है।मेरी बहन बच्ची है अभी।ये तुम्हें इतना पसंद करती हैं कि शादी करेंगी ये तुमसे ही।तुम दोनों अपने प्यार को समय दो।

कुछ बन जाओ सुनील,रिया से शादी करने के लिए।रिया व्यस्क होते ही हम तुम दोनों की शादी करवा देंगें।हमारे घर के सारे सदस्यों का यही मानना है।एक जरूरी बात यह भी है कि,अब तुम दोनों का मिलना ठीक नहीं।तुम्हें अब अपने घर जाना चाहिए।”

सुनील तो यही चाहता था कि रिया उसकी हो जाए,पर शादी तक ना मिल पाना उसके पुरुष दंभ पर चोट कर रहा था।जाने का दिन तय कर रिया से आखिरी बार मिलने की विनती की।रिया सुनील के प्रेम के प्रति आश्वस्त थी।होटल के कमरे में‌ सॉफ्ट ड्रिंक में नशीली दवा मिलाकर पिलाई

पहले सुनील‌ ने। मर्यादा की सीमा तोड़ने की कोशिश कर ही‌ रहा था कि‌,रिया को होश‌ आ गया,उसने बालकनी‌ से नीचे छलांग लगा दी।बैक बोन पूरा फैक्चर हुआ था।होटल के स्टाफ लेकर आए थे रवीन्द्र के ही हॉस्पिटल।कई‌ दिनों‌ तक बेहोश‌ पड़ी रही रिया।होश में आने पर उसने सुनील का‌ नाम ही‌ नहीं लिया। बैलेंस बिगड़ने से गिरी ,ऐसा बयान दिया था उसने।

बिस्तर में टूटी-फूटी अपनी जान से प्यारी गुड़िया को‌ देख रवीन्द्र का खून खौलता तो था,पर रिया ने कुछ भी करने से मना किया था भाई को अपनी कसम देकर।दो चार दिनों बाद सुनील ने रवीन्द्र से हांथ जोड़कर माफी मांगी और कहा”मैं सच्चे मन से इसे प्यार करता हूं। बीच-बीच में आता रहुंगा।अपनी नौकरी की अच्छी पोजीशन पाते ही‌ ,मैं आपकी बहन से शादी‌ करूंगा,चाहे वो‌ जिस हाल‌ में हो।”,

रवीन्द्र,सुनील को अच्छे से समझ चुके थे।इसलिए कहा”मेरी बहन‌ लाचार है,ऊपर से तुमसे प्यार करती है।वह कभी तुमसे शादी की भीख नहीं मांगेगी।तुम्हारे ऊपर कोई आरोप हैं ही‌ नहीं।तुम नहीं आओगे तब भी कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।बस एक बात रिया के बड़े भाई होने के नाते कहूंगा।”वक्त कभी एक सा नहीं रहता ,

यह सच है।एक ना एक दिन वक्त हम सभी को लाकर उसी जगह खड़ा कर देता है,जहां से हमने किसी के साथ गलत किया हुआ‌ होता है।वक्त से हमेशा डरो,वही सच्चा न्यायाधीश है।हमारा किया हुआ ,हमारे पास अपनेआप आ जाता है।”

उस बात को बीते सालों बीत गये थे।ना तो सुनील कभी फिर गोवा‌ आए,और ना ही शादी की रिया से।बड़े अधिकारी बनकर और बड़े अधिकारी की बेटी सत्या से शादी कर ली।अपनी खुशहाल जिंदगी में वो रिया को भला क्यों याद करते, रवीन्द्र का नाम क्यों याद रखते?पर वक्त ने उन्हें उसी‌ जगह लाकर खड़ा कर दिया आज।

सिर्फ इतना ही नहीं जो, दुष्कर्म वे रिया के साथ करना चाहते थे,सानिया के साथ वैसा ही हुआ।आज उस इंसान के हाथों उनकी बेटी की जिंदगी,घर की मर्यादा है,जिसकी प्यारी बहन को अपंग बनना पड़ा उनके कारण।

“अरे,कहां ले गये सानिया को? रवीन्द्र के साथ कोई और अटेन्डर है कि नहीं?पता नहीं मेरा बदला ,मेरी बेटी से तो नहीं निकाल लेगा रवीन्द्र।”इसी उधेड़बुन में सुनील कॉरीडोर में सत्या के साथ रो रो कर ईश्वर को याद कर रहा था।तभी ओ टी से निकलकर रवीन्द्र आए और सुनील और सत्या को सानिया के सफल आपरेशन की बधाई दी।अब वह खतरे से बाहर है,कहकर रवीन्द्र मुड़कर जाने लगा,तो सुनील  उनके पैरों में झुककर कातर निगाहों से देखते हुए बस रोने लगा।

रवीन्द्र ने सुनील को उठाकर कंधेक्षपर हांथ रखा और कहा”वक्त ही भगवान है।भगवान वक्त के माध्यम से हमें आगाह करतें हैं गलत ना करने के लिए।मैं वक्त से डरता हूं सुनील।रिया के डिस्चार्ज पेपर तीन दिन बाद मिलेंगे।फिर घर ले जाना।”

सुनील ने धीरे से उसके कान में कहा”क्या मैं एक बार रिया से मिल,नहीं नहीं‌ देख सकता हूं?”

“वक्त उसे अपने साथ ले गया सुनील।”, रवीन्द्र अपने आंसू पोंछते हुए बाहर निकल गया।

शुभ्रा बैनर्जी

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