बेटी की चिट्ठी हाथ में पकड़े योगेश को आज एहसास हो रहा था कि एक वक्त था जब पिताजी ने कहा था (और योगेश अतीत में खो गया)
“ बस योगेश बस !!!अब बस भी करो… बहुत बोल रहे हो कम से कम वक़्त से डरो…आज इनकी ज़िन्दगी पर बन आई है कहीं कल को… भगवान ना करे तुम्हारे साथ कुछ ऊँच- नीच हो गया तो क्या करोगे….आख़िर क्या बिगाड़ा है इन सब ने तुम्हारा…आज अपने ही भाई के गुजर जाने के बाद तुम उसके ही परिवार को इतना कुछ सुना रहे हो….कल को तुम पर कुछ आपत्ति आई तो कौन सँभालेगा ये भी सोच कर रखना ।” बोलते बोलते जीवन बाबू की साँसें उखरने लगी
“ आप मुझे ही खरी खोटी सुना रहे हैं… भैया को मार डाला इन लोगों ने अब ये सब यहाँ किसी क़ीमत पर नहीं रह सकते…अपना ठिकाना खुद ही खोजना होगा… नहीं तो जा कर मर जाए कहीं… भैया जब तक थे तब भी इन्हें तो मैं कभी अपना नहीं पाया अब कैसे अपना सकता हूँ जब मेरा भाई ही चला गया ।”योगेश की तंज में कही बातों से आहत हो रही आभा अपनी सिसकियों को दबाने की कोशिश कर रही थी और उसके पैरों में लिपटा उसका पाँच साल का बेटा मानस माँ के पीछे छिप कर आश्चर्य से ये सब देख रहा था
“ हम लोग जा रहे हैं बाबूजी…इस घर से दूर…बस आपसे मिलने आए थे और देवेश ने यें आपको देने के लिए रखा हुआ था… वो तो खुद इसे आपको देने आना चाहते थे पर ….।” अब हम चलते हैं कहते हुए उसने ससुर के पैर छुए और एक लिफाफा जीवन बाबू को पकड़ा दिया और अपने बेटे को भी इशारे से पैर छूकर आशीर्वाद लेने को कहा
“ बहू मैं…।” जीवन बाबू कुछ कहते उससे पहले ही आभा ने कहा,” हमें माफ़ कर दीजिएगा बाबूजी।”
जीवन बाबू कुछ कह ना सके और आभा बेटे का हाथ पकड़ कर निकल गई
योगेश के वहाँ से चले जाने के बाद जीवन बाबू ने वो लिफ़ाफ़ा खोलकर देखा जो आभा उन्हें दे गई थी उसमें उस जमीन के काग़ज़ात थे जो जीवन बाबू ने अपने दोनों बच्चों में बराबर बाँट दिए थे और देवेश ने अपना हिस्सा उस समय भी वापस करना चाहा था पर जीवन बाबू ने लेने से इंकार कर दिया था….
देवेश की शादी ही इस घर में कलेश का कारण बन गई थी … माँ और छोटा भाई योगेश इन दोनों की शादी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल कर बैठ गए थे… जीवन बाबू ने हमेशा बच्चों की खुशी को प्राथमिकता दी और बहू आभा को स्वीकार कर लिया पर पत्नी रमा और बेटे योगेश की ज़िद के आगे हार गए थे…
.ये सब देखते हुए देवेश अपनी पत्नी को लेकर इस घर से निकल गया था… एक बार आया था जब माँ चल बसी थी वो पत्नी को भी साथ लाना चाहता था पर योगेश ने सामने से कह दिया था,” भैया आपको आना है आओ पर वो औरत इस घर में कभी नहीं आ सकती…
आपके घर छोड़ कर जाने के गम में माँ चल बसी अब उसके मरने पर उसका क्या ही आना वैसे भी माँ को आपके इस मोहब्बत वाली शादी से हमेशा ही एतराज़ रहा है और मुझे भी आपका ऐसे बिना माँ बाप की इज्जत का ख़्याल रखते हुए उस औरत से ब्याह करना जरा भी ना भाया।”
योगेश के तीखे बोल सुनकर देवेश अकेला ही आया था पर जाते समय वो योगेश से बोल गया था…,” भाई इतनी नफ़रत अच्छी नहीं है माना मैंने अपनी पसंद की लड़की से शादी की वो हमारे जाति बिरादरी की नहीं है पर संस्कार वाली है और मैं उसके साथ खुश हूँ… बस दुआ करना आने वाले समय में तुम्हें ऐसे किसी रिश्ते का सामना ना करना पड़े।”
तब योगेश भाई को मुँह चिढ़ा कर रह गया था।
माँ के जाने के बाद उसकी पत्नी बरखा का पूरे घर में राज हो गया था…जीवन बाबू अब कभी-कभी देवेश के घर भी जाकर रहा करते थे आभा ससुर की खूब सेवा करती थी वो ये सब देखकर मन ही मन सोचते रमा ने इतनी अच्छी बहू ठुकरा दी और वो बरखा जो उसकी पसंद से आई थी आते ही अपना अपना करने लगी थी ये सब रमा जी को भी कहीं ना कही सालता रहता था पर वो कहे भी तो किससे अपनी जान पहचान में खोजकर जो लाई थी
समय गुजर रहा था अचानक एक दिन पता चला देवेश को कैंसर हो गया है…आभा ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी देवेश को बचाने में तभी जीवन बाबू ने पैसे से मदद करने की बात कही जिसे दोनों ने नकार दिया तभी उन्होंने जमीन का बँटवारा कर एक हिस्सा देवेश को दे दिया था जिसे बेचकर वो अपना इलाज करवा सके पर देवेश ने उसे भी अपनाने से मना कर दिया था
पर जीवन बाबू के जोर देने पर रख लिया था… देवेश समझ रहा था अब वो बचेगा नहीं… कितनी बार उसने चाहा कि योगेश अपनी भाभी को परिवार का हिस्सा मान उस घर में रहने दे जो उसके पिता ने बनाया था पर योगेश ने मना कर दिया तब आभा ने भी कहा था,” देवेश आपके साथ जिस घर का हिस्सा ना बन सकी आपके जाने के बाद कैसे बन पाऊँगी… मैं समझ रही हूँ आपको हमारी चिंता हो रही है पर मुझे पूरा यकीन है आप ठीक हो जाएँगे।”
पर होनी को कुछ और ही मंजूर था देवेश को जाना था वो चला गया… आभा के घरवाले उसे अपने साथ ले जाने के लिए तैयार थे … पर आभा एक बार ससुराल जाना चाहती थी शायद उसे उसका देवर मान सम्मान दे कर अपना ले जिसकी उम्मीद उसे नहीं थी फिर भी देवेश की बाते याद कर और वो जमीन के पेपर लौटाने तो जाना ही था… जब वो गई तब योगेश के तीखे बोल सुनकर आभा चुप रह गई थी और जीवन बाबू ने योगेश से कहा था,” वक्त से डरो….।”
आज योगेश को पिताजी की याद आ रही थी जो आज सामने तो नहीं थे पर उनकी बातें….सच हो रही थी…
योगेश अपने हाथ में बेटी की चिट्ठी लिए खड़ा था और उसकी पत्नी बरखा का रो रोकर बुरा हाल हो रहा था
बेटी खुशी ने चिट्ठी में लिखा था ,”मम्मी पापा आप से मैंने कितनी मिन्नतें की थी कि मेरी शादी मनन से करवा दो पर आप लोगों की ज़िद …मेरी शादी कहीं और तय कर दिए मैं किसी भी हाल में उस बदमाश लड़के से शादी नहीं करने वाली जिसे आपने पसंद किया…
पता नहीं आपने उसमें क्या देखा पर भला हो बड़ी माँ और मानस भैया का जिन्होंने एक दिन उस लड़के को तंबाकू पीते देख लिया… हाँ आपको ये भी बता दूँ कि मैं अपनी बड़ी माँ और भैया से बहुत स्नेह रखती हूँ… दादा जी ने मुझे सब कुछ बताया है… और तब से मैं उन दोनों से बातें करती रहती हूँ… मम्मी को बड़ी माँ से बहुत आपत्ति है पर बड़ी माँ आप दोनों से कभी नाराज़ नहीं रही वो समझती है
आपका अपने भाई के लिए प्यार है…. पापा आपको मैं दुखी नहीं करना चाहती थी पर मैं उस लफ़ंगे के साथ शादी कर के ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर सकती इसलिए घर छोड़कर मैं मनन के साथ शादी कर अपनी ज़िंदगी की नई शुरुआत करने जा रही हूँ।”
ये बातें पढ़कर जहां योगेश जीवन बाबू की बातों में खो गया वही बरखा ने तुरंत ही आभा को फोन करके पूछा खुशी आप लोगों के साथ है?
आभा ने जैसे ही ना कहा बरखा ने फोन काट दिया ।
“ आप यहाँ बुत बनकर क्या खड़े हैं जाइए बेटी को खोजिये।” बरखा की बाते सुनकर योगेश यथार्थ में लौट आया
उधर आभा ने अपने बेटे मानस को फोन करके खुशी के बारे में बताया और जल्दी ही योगेश के घर चलने को कहा
ये बात सुनते ही मानस ने खुशी को फोन किया बहुत रिग जाने के बाद खुशी ने बताया उसने घर से भाग कर शादी कर ली…. मानस ने बड़े भाई की सख्ती और प्यार दोनों दिखाते हुए कहा अभी के अभी घर जाओ।
खुशी मानस की बात टाल ना सकी और मनन के साथ घर पहुँच गई…. जैसा उसे उम्मीद थी योगेश ग़ुस्सा ही करते और उसने बेटी के साथ मनन को भी बहुत भला बुरा कहा इतने में आभा और मानस भी पहुँच गए
योगेश को डाँटते देख आभा ने कहा,” योगेश एक वक़्त था जब आपने ना मुझे समझा ना अपने भैया को…पर अब… बात आपकी बेटी की है… आप जहाँ रिश्तेदार के कहने पर बेटी का ब्याह करने जा रहे थे उसके बारे में छानबीन तक नहीं किया…
वो कोई काम धंधा नहीं करता… पुश्तैनी जमीन बेचकर सारी बुरी आदतें अपना रखा है…और आप खुशी को उसके साथ ब्याहने को तैयार… पर यहाँ मनन के बारे में पता करना भी सही नहीं समझा… दोनों एक साथ पढ़ते थे जॉब में है खुशी को मनन की हर अच्छी बुरी आदतों का भान है ऐसे में आपको आपत्ति क्यों?”
“ आप तो चुप ही रहिए ।” योगेश ने डपटते हुए कहा
“ बस करो जी… आपकी ज़िद में मैं अपनी बेटी को उन जानवरों के घर नहीं भेजने वाली…आइए ना दीदी बैठिए… हम खुशी की शादी उसकी मर्जी से ही करेंगे जहाँ मेरी बेटी खुश रहे एक ही बेटी है उसको खोने की हिम्मत नहीं है मुझमें ।”आभा का हाथ पकड़कर बरखा अंदर कमरे में ले जाने लगी
“ बरखा हम चलते हैं… खुशी कहीं चली गई ये सुनकर हम घबरा गए थे इसलिए यहाँ आ गए…अच्छा होगा तुम दोनों सोच समझ कर बेटी की खुशी को अपना लो।” आभा ने कहा
“ नहीं बड़ी मम्मी बहुत हो गया… पापा की ज़िद अब नही चलने वाली… आप और भैया अब यहाँ ही रहिए…. ये घर आपका भी है… पापा आपको इतना बता दूँ… मनन में कोई बुराई नहीं है…और जैसा लड़का मुझे चाहिए मनन वैसा ही है…उसके परिवार वालो ने भी मुझे स्वीकार कर लिया है ।”खुशी अपनी बड़ी माँ से लिपटते हुए बोली
मानस ये सब देख रहा था उसे बचपन की घटना याद आने लगी तो वो अपनी माँ से बोला,” माँ चले… यहाँ तो हमें कोई पसंद नहीं करता है फिर भी हम यहाँ आ गए बस बहन की ख़ातिर अब ये इनका मामला है वो देख लेंगे ।”
कोई कुछ कहता उसके पहले ही योगेश ने कहा,” आज बाबूजी की बातें याद आ रही हैं जब उन्होंने कहा था वक़्त से डरो कहीं कल को … आज सच में मेरी ही औलाद ने मुझे समझा दिया…. भाभी ( ये कहते योगेश के शब्द लड़खड़ा गए) मुझे माफ़ कर दीजिए…. आज आप लोगों की वजह से मेरी बेटी घर लौट कर आ गई नहीं तो मैं इतने ग़ुस्से में था कि वो यहाँ कभी नहीं आती … मानस हो सके तो अपने चाचा को माफ कर देना…तुम्हें चाचा के प्यार से मरहूम रखा।” कहते हुए योगेश ने मानस को गले से लगा लिया
“ चाऽऽचू “कहते हुए मानस योगेश से लिपट गया
“ अब हम सब साथ ही रहेंगे भाभी …पुरानी बातों के लिए मुझे माफ कर देना ।” कहते हुए योगेश आभा के चरणों में झुक गया
खुशी और मानस एक दूसरे को देख रहे थे मानो कह रहे हो आज हमारा परिवार एक हो गया ।
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रचना पढ़ने के लिए धन्यवाद ।
रश्मि प्रकाश
#वक्त से डरो