विश्वास की पक्की डोर – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

   प्रथम और उत्सव दो जुड़वा भाई, प्रथम ,उत्सव से दो मिंट बड़ा, तो उसका नाम प्रथम और दूसरे का उत्सव क्योंकि उत्सव जैसा माहौल हो गया था। छोटे से कस्बे में रहने वाले दीपक के घर तो जैसे सचमुच ही उजाला हो गया।

शादी के दस साल बाद पैदा हुए थे, लड़कियां भी होती तो भी वो इतनी ही खुशी मनाते लेकिन हमारे समाज में आज भी लड़का पैदा होने पर माहौल कुछ और तथा लड़की पैदा होने पर कुछ और, भले ही थोड़ी देर के लिए, बाद में सब ठीक भी हो जाता है और नहीं भी, कुछ कह नहीं सकते।

        प्रथम और उत्सव के पिता वही कस्बे में सरकारी कर्मचारी थे और मां कुसुमा भी प्राईवेट स्कूल में टीचर थी। अच्छा घर बार और एक फार्म हाऊस भी जहां पर छोटे से घर के इलावा सर्वैंट हाऊस भी था। वहां पर बहुत समय से एक परिवार रहता ,

जो कि सारे फार्म हाऊस की देखभाल करता। बहुत से फलदार पेड़ और सब्जियां वगैरह होती और उन्कों मंडी  में बेचने की जिम्मेवारी उस घर के मुखिया भानु की थी। भानु और दीपक लगभग एक ही उम्र के रहे होगें। 

       दरअसल दीपक के पिताजी के समय तो खेत थे, जो कि बाद में दीपक ने फार्म हाऊस बना दिया। वहीं पर गाय भैसें भी थी। जरूरत का सामान रख कर बाकी बेच दिया जाता।

     समय के साथ साथ प्रथम और उत्सव बहुत लाड प्यार से पले और उच्च शिक्षा प्राप्त करने विदेश गए तो वहीं के होकर रह गए।कुदरत का नियम है कि बच्चे जवान हो जाते हैं तो मां बाप बूढ़े हो जाते हैं। दीपक और कुसुमा की भी उम्र हो चली थी। दोनों भाईयों की शादी यहीं भारत में हुई, लेकिन रहना तो बाहर ही था।

      दीपक और कुसुमा दो बार गए लेकिन फिर नहीं गए। कोई तकलीफ नहीं थी, बेटे बहुएं बहुत अच्छे थे, अब तो उनके भी दो दो बच्चे हो गए, लेकिन उनका मन अपने देश में ही लगता। आस पास रिश्तेदारी भी थी और घर और फार्म हाऊस भी था। 

    घर का कुछ हिस्सा किराए पर देकर वो फार्म हाऊस में बने घर पर ही रहने लगे। उम्र हो चली थी तो आना जाना मुशकिल था। उधर फार्म हाऊस पर काम करने वाले भानु के भी दो बेटियां और एक बेटा था। भानु को दीपक घर के मैंबर की तरह ही मानते थे

और उसे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी थी।उसकी भी बेटियों की शादी हो गई और बेटा किशोर बारहवीं के बाद पिता के साथ ही फार्म हाऊस पर काम करता।भानु भी बुजुर्ग हो चला था। 

     फार्म हाऊस में और भी लोग काम करते थे जिन्का सारा हिसाब किताब भानु ही देखता। हिसाब किताब अब भी भानु के पास था, जबकि काम सारा किशोर ही देखता। दोनों बहनों से छोटा था, कुछ समय पहले उसकी भी शादी हुई थी। शूगर काफी बढ़ने की वजह से कुसुमा की एक रात मौत हो गई। बड़ा बेटा और छोटी बहू ही आ पाए और उन्हें जल्दी वापिस भी जाना पड़ा।

     दीपक बाबू बहुत अकेले पड़ गए, बच्चों ने साथ चलने को कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया, अब वो भी बीमार ही रहते। प्रथम और उत्सव को फार्म हाऊस के काम, आमदन वगैरह की कोई खास जानकारी नहीं थी। 

   दीपक ने कई बार बताने की कोशिश की लेकिन उनके पास सुनने समझने का समय ही नहीं था।

    चार  साल बाद ही दीपक भी चल बसे।उसकी दोनों किडनियां फेल हो गई थी। डायल्सिज के लिए हफ्ते में तीन बार शहर जाना पड़ता।पैसे की कमी नहीं थी लेकिन अपनों का साथ नहीं था। 

बेटे चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाए। सारी देखभाल किशोर के जिम्मे थी, जिसने कि खुशी खुशी सब किया।  दोनों बेटे परिवार सहित आए।

सब रस्में होने के बाद वापिस जाने का समय नजदीक आ गया। सबको पता था कि काफी जायदाद है, शायद बेच दें या किसी को संभाल दे। ऐसे समय रिश्तेदार मक्खियों की तरह भिनभिनाने लगते है जबकि कुसुमा के जाने के बाद तो दीपक को कोई देखने भी नहीं आया। 

     दीपक ने अपने दो भतीजों और भानजों को तीन चार बार फोन किए लेकिन किसी के पास फुर्सत नहीं थी , एक दो बार आए भी तो बेगानों की तरह। लेकिन अब जब प्रथम और उत्सव आए तो सबके पास समय ही समय था। आगे पीछे घूमते रहते, दिखावा करते।

    उधर भानू और किशोर को भी मन ही मन चिंता थी कि न जाने अब क्या होगा। फार्म बेचेगें या कोई और रखेगें या किसी रिश्तेदार को सौपेगें।जाने से पहले  प्रथम और उत्सव ने भानु और किशोर को बुलाया और उनसे सारा हिसाब किताब पूछा और समझा। 

    बाप, बेटे दोनों का दिल धक धक कर रहा था कि अब क्या फैसला होगा। प्रथम ने सभी कागज और कम्पयूटर देखकर  किशोर को कहा कि वो सब काम वैसे ही करतें रहें जैसे पहले करते थे।

   लेकिन प्रथम बेटा, आप दोनों की गैरमौजूदगी में आप हम पर इतना विश्वास कर पाऐगें, विशवास को खोते देर नहीं लगती, भानु धीरे से बोला।

“ क्यों नहीं, हमारे विश्वास की डोर इतनी कच्ची भी नहीं कि जो ऐसे ही टूट जाए। बरसों से आप ये सब देख रहे हो, ममी और खासतौर पर पापा की जितनी सेवा आपने की , हम तो कर ही नहीं पाए।जितना आपको पहले मिलता था, मुनाफे से बीस प्रतिशत आपको और मिलता रहेगा, और हमें हमारा ये पुरूखों का घर और देश सलामत चाहिए। जब भी समय मिला हम आते रहेगें”।

        विश्वास जीत गया और खून के रिश्ते हार कर अपना सा मुँह लेकर रह गए।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़।

       वाक्य- विश्वास को खोते देर नहीं लगती।

Leave a Comment

error: Content is protected !!