वक्त से डरो – खुशी : Moral Stories in Hindi

सीता एक गृहिणी थीं उसके पति पारस सरकारी पानी विभाग में मीटर रीडर थे।जब वो गांव से आए तो उनके पास 4 बर्तन और कुछ ही सामान था। वो एक छोटे से कमरे में रहने लगे।उनके दो

 बच्चे थे।पारस बड़ी मेहनत से काम करता तनख्वाह लिमिटिड थी तो खर्चे पूरे नहीं हो पाते थे।कुछ ही दिनों में उनके पड़ोस में अश्विनी जी आए उनके साथ घर जैसे संबंध हो गए उनका रहन सहन अच्छा था 3 कमरों का मकान घर में सब सुविधाएं थी।पारस ने पूछा यार हम दोनों एक सा ही काम करते है तनख्वाह भी बराबर है फिर तुम ये सब कैसे अफोर्ड कर पाते हो। अश्विनी बोला यार ईमानदारी से

यहां काम नहीं होता जुगाड करना पड़ता हैं।और तभी से पारस ने भी रिश्वत लेनी शुरू कर दी।कुछ ही दिनों में उनका रहनसहन सब बदल गया।बच्चे अच्छे स्कूल में जाने लगे। क्वार्टर में शिफ्ट हो गए एक फ्लैट बुक कर दिया।सीता भी एक से एक कपड़ों में होती।रोज बाहर का खाना खाते।इसी बीच कुछ दिन पारस के पिता गोविन्द राम वहां रहने आए जो अध्यापक रह चुके थे और अब रिटायर हो

गए थे। वो घर और पारस का रहना  सहना देख हैरान थे।खाने में इतना कुछ था टेबल पर आधा बाहर का सबके खाने के बाद भी खाना बच गया। गोविन्द जी बोले कितना खाना बर्बाद हो गया बहु तुम तो जानती हो मै बाहर का खाता नहीं और बच्चों को भी क्या खिला रही हो। सीता ने सारा खाना समेटा और कामवाली को दे दिया।शाम को पारस घर आया तो उसने एक पैसों का लिफाफा सीता को

दिया।गोविन्द जी ने वो देखा और बोले इतने पैसे कहा से आए वो बोला बाबूजी मेरे दोस्त के हैं कल परसो में ले जाएगा। गोविन्द जी बोले ऐसा कौन सा दोस्त है तेरा जो इतना पैसा तुझे दे रहा है तेरी तनख्वाह भी इतनीनही है जिस तरीके से तू रहता है अगर तू कुछ गलत कर रहा है तो रुक जा वक्त से डर वक्त की मार बहुत बुरी होती हैं।पारस बोला बाबूजी ऐसा कुछ नहीं है ये तो मेरी मेहनत की

कमाई है।गोविन्द बोले बेटा मै तेरा बाप हूं।एक मीटर रीडर को क्या तनख्वाह मिलती हैं मुझे पता है फिर कह रहा हूं सम्भल जा।गोविन्द जी अंदर चलें गए।सीता बोली ये बाबूजी क्या बडबडा रहे थे।पारस बोला कुछ नहीं छोड़ो पैसे रख दिए ना।सीता बोली इतना पैसा कहा से लाए।पारस बोला एक बड़े प्लॉट में पानी का कनेक्शन लगवाना है वही से वो अवैध इलाका है तो सरकारी कनेक्शन लगेगा

नहीं वहीं काम करना है अभी और भी मिलेंगे।गोविन्द जी ने फिर समझाया पर पारस की आंखों पर पैसे की पट्टी बंधी थी उसे गलत सही कुछ समझ नहीं आ रहा था। उस पैसे से उसने अपना फ्लैट लिया और उसमें शिफ्ट हो गया बाबूजी बोले ये जो तू कर रहा है वो गलत है मै तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगा और वो गांव वापस लौट गए।कुछ दिनों बाद सुबह सुबह पारस के दरवाजे पर पुलिस पहुंच गई।उसे अवैध इलाके में पानी के कनेक्शन लगवाने और रिश्वत लेने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया

नौकरी गई ।आय से अधिक संपति होने के कारण घर भी सरकार ने सील कर दिया।सीता बच्चों के साथ सड़क पर थी उसने गोविंद जी को फोन किया गोविंद जी आए सीता और बच्चों को गांव ले गए।पारस को 10 साल की जेल हुई ।जेल जाते हुए कोर्ट के बाहर गोविंद जी को देख उनके पैरों में गिर पड़ा और बोला बाबूजी मुझे माफ कर दो मैने आपकी बात नहीं सुनी सच में मैने कभी ये नहीं सोचा

बक़्त से डरना चाहिए ये कब बदल जाए आप जैसे ईमानदार का बेटा एक मुजरिम मुझें माफ कर दीजिए।पुलिस वाले पारस को ले गए।गोविन्द जी सोच रहे थे तभी वक्त की मार से डर जाता तो आज जेल तो ना जाता इसने ये ना सोचा भविष्य में इसका लालच इसे कहा ले जाएगा।गोविन्द जी स्टॉप की तरफ गांव की बस पकड़ने चल पड़े और पारस जेल में अपने 10 साल गुजारने जो उसके लालच की सजा थे।

धन्यवाद 

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी 

Leave a Comment

error: Content is protected !!