ईश्वर का न्याय – शुभ्र मिश्रा : Moral Stories in Hindi

लता तुम अभी तक तैयार नहीं हुई? तुमको तो हरेक काम मे समय लगता है।  हम लड़की वालो के घर लेट से पहुंचेंगे तो वे लोग हमारे बारे मे क्या सोचेंगे? हम उन्हें क्या जबाब देंगे? किसी के घर समय से जाना चाहिए, पर तुम्हे तो हमारी इज्जत का कुछ ख्याल ही नहीं रहता है। कही भी जाना हो तुम सबसे बाद मे तैयार होंगी और हम बैठकर तुम्हारा इंतजार करते रहेंगे। लता के देवर के लिए लड़की देखने जाना था सभी तैयार हो गए थे बस लता अभी तक तैयार नहीं थी जिसके कारण उसकी सास

मंजू जी उसे इसतरह सुना रही थी। अभी सास का बोलना बंद ही हुआ था कि उसकी ननद अंजू का शुरू हो गया। अरे माँ जबाब क्या देना है कह देंगे कि हमारे घर की बहू रानी हर काम ज़रा धीरे धीरे बड़े सलीके से करती है इसलिए हम कही भी समय से नहीं पहुंच पाते है। मंजू जी ने अपनी बेटी की व्यंगात्म बातो को सुना और उसके हाँ मे हाँ मिलाते हूँ कहा सही कहा तूने और यह कहकर दोनों माँ

बेटी हँसने लगी। इनकी हँसी सुनकर लता के पति सुनील ने कहा उधर पापा गुस्सा रहे है कि हमें देर हो रही है और तुमदोनो यहाँ हँसी ठिठोली कर रही हो यह नहीं कि जाकर गाड़ी मे बैठे। हँसे नहीं तो क्या यह सोचकर रोए कि हम अपनी बहुरानी के कारण कही समय पर नहीं पहुंच सकते? और तु हमें क्या सुना रहा है जाकर अपनी महारानी को सुना ताकि वह जल्दी से तैयार हो सके मंजू जी ने उल्टा

अपने बेटे को ही लताड़ दिया। लता अभी तक तैयार नहीं हुई? छोड़ो माँ उसको छोड़ कर चलते है, वैसे भी उसे किसी चीज की समझ ही क्या है बस जाएगी और वहाँ बैठकर खा पीकर चली आएगी। उसे कौन जो लड़की पसंद करना है। उनकी बातो को सुनकर लता के  आँखो मे आँसू भर आए, पर वह क्या ही कर सकती थी, उसके आँसू यहाँ किसी को दिखाई नहीं देते थे। माँ बाप असमर्थ हो तो

बेटियों को ससुराल मे आँसू पीकर ही जीना पड़ता है। लता अपनी सास ननद को क्या कहे, यहाँ तो उसके पति को भी उसका दर्द नहीं दिखता था। सुबह से लड़की वालो के यहाँ क्या ले जाना है, फल मिठाई आए कि नहीं, साड़ियों की पैकिंग सही ढंग से हुआ है या नहीं,यह सब लता की जिम्मेदारी है क्योंकि वह घर की बहू है। मंजू जी का काम बस तैयार होकर इधर से उधर डोलना है और बहू के

काम मे मीन मेख निकलना है जो वह बखूबी निभाती भी है। उसके बाद जब बेटी दामाद आए हो तब तो उनका काम और भी बढ़ जाता है। हर थोड़ी थोड़ी देर पर बहू को आवाज लगाना और उसके आने के बाद कभी बेटी दामाद के लिए चाय लाने को बोलना, तो कभी शरबत के लिए कहना।कुछ ना सूझे तो बहू दामाद जी आए है तो क्या विशेष बना रही हो यह पूछने के लिए ही आवाज लगा देना।आज

सुबह से लता ने घर के बेटी दामाद के लिए तरह तरह के नाश्ता बनाए, फिर लड़की वालो के यहाँ ले जाने का सामान सहेजा। अभी सब को खिलाकर खाने जा ही रही थी कि ननद का चाय का ऑडर आ गया। उसने खाना छोड़कर चाय बनाया फिर जैसे तैसे कुछ मुँह मे ठूँसकर तैयार होने गईं।इतना सब करने के बाद देर से तैयार होने के लिए सुनाया जा रहा था। सभी लड़की देखने गए विवाह का दिन

तय हो गया। लता दिनरात विवाह के काम मे लगी रहती। फिर भी माँ,बेटा,बेटी उसे कामचोर कहकर रुलाने से नहीं चूकते थे। विवाह के एक दिन पहले लता कि ननद अंजू की सास को हार्ट अटैक आ गया। मंजू और उसके पति विवाह का कार्यक्रम छोड़कर अपने घर चले गए। अपने बहन बहनोई के होते हुए भी विवाह मे बहन का नेग उनकी चचेरी बहन ने निभाया। लता की सास मंजू उपर से खुश

दिख रही थी पर अंदर ही अंदर बेटी दामाद के विवाह मे नहीं आ पाने से रो रही थी। आज उन्हें लता की माँ के कहे शब्द याद आ अरे थे “समधी जी आपकी भी बेटी है भगवान ना करे आपको भी उसके लिए ऐसे ही रोना पड़े “।लता के विवाह मे उसके पिता ने अपनी हैसियत से भी ज्यादा दान दहेज दिया

था। कोई भी माँ बाप अपने होती से बेटी को देने मे कोई कसर नहीं छोड़ते है, पर बेटे की माँ को वह कम ही लगता है।लता के विवाह के कुछ दिन बाद उसके पिता की तबियत खराब हो गईं, जिसके कारण वे आर्थिक संकट मे पड़ गए और लता के ससुराल वालो को किसी भी त्यौहार मे मिठाई के आलावा कुछ भी नहीं भिजवा सके इसी बात से वे लोग लता से नाराज रहते थे। लता के पिताजी

अस्पताल मे थे उनके बचने की उम्मीद ना के बराबर थी तब उसकी माँ ने समधी को फोन कर के कहा था कि समधी जी लता और दामाद जी को भेज देते तो अच्छा होता उसके पापा उससे मिलना चाहते है, पर उन्होंने यह कहकर उन्हें नहीं भेजा कि हमारे घर की बहू भाई के आने पर ही मायके जाती है। लता की माँ फोन पर रो रो कर विनती करती रह गईं कि बेटा वहाँ जाएगा तो अस्पताल मे

कौन संभालेगा? आप लता को दामाद जी के साथ भेज देते तो वह अपने पापा से मिल लेती पर उन्होंने कहा कि ठीक है कल सोचते है।रात मे तो उतनी दूर जाना सम्भव नहीं है। आखिर रात मे ही लता के पिता जी की मृत्यु हो गईं और वह उनसे नहीं मिल पाई। आज भगवान ने लता की माँ के आँसूओ का

हिसाब कर दिया था, पर मंजू जी सोच रही थी लता की माँ के एकबार रोने पर भगवान ने हमें ऐसी सज़ा दी तो जो हम प्रतिदिन लता को रुलाते है, उसका हिसाब करेगा तो हम कहा रहेंगे। नहीं, अब नहीं आज से मै अपनी दोनों बहुओं को बेटी की तरह प्यार करूंगी, क्योंकि भगवान जब हिसाब करता है तो सहन नहीं होता।

वाक्य —-माँ के आँसूओ का हिसाब 


शुभ्र मिश्रा

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