माँ की आँसुओं का हिसाब – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

रागिनी की नींद खुली तो देखा सुबह के आठ बज रहे हैं। उसके देर से उठने का कारण …… वह रात को बहुत देर तक जाग रही थी । उसे रात भर नींद नहीं आई थी … मालूम नहीं क्यों ? उसे कल रात पति नागराज की बहुत याद आ रही थी।

वे सरकारी नौकरी करते थे । उसी तनख़्वाह से उन्होंने दोऩों बेटों को पाल पोसकर बड़ा किया। उन्हें पढा लिखाकर काबिल बनाया।

इसी बीच रागिनी भी सिलाई , कढ़ाई करते हुए कुछ पैसे कमाते हुए पति का हाथ बँटाने लगी थी ।

उन दोनों ने मिलजुलकर एक मंजिला घर बनवाया जो पहले शहर से दूर था परंतु आज वह घर एक प्राइम एरिया में आ गया था। दोनों बच्चे अच्छी नौकरी में सेटिल हो गए।  

उनकी शादी धूमधाम से करा दिया। अब वे सब साथ मिलकर रहते थे । दोनों बहुएँ भी नौकरी पर जातीं थीं…..  इसलिए घर का सारा काम रागिनी को करना पड़ता था।

नागराज हमेशा कहते थे कि रागिनी मैं तुम्हें इन बच्चों के सहारे नहीं छोड़ कर नहीं सकता हूँ। तुम्हें पता है ना उन्होंने तुमसे तुम्हारा काम छुडवा दिया और तुम्हें घर की नौकरानी बना दिया है । वह भी मेरे जीते जी ….. मेरे जाने के बाद , जो तुम्हारा हाल होगा उसकी तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता हूँ ।

रागिनी उन्हें समझाती थी कि आप ऐसा क्यों बोलते हैं . . … मरे आपके दुश्मन ,अभी तो हमें साथ मिलकर कई साल बिताने हैं। उसक़ी बातों को सुनकर भी नागराज ने रागिनी से कुछ नहीं कहा पर उसके लिए इंतजाम कर दिया था।

एक दिन अचानक नागराज की तबियत बिगड़ गई और अस्पताल पहुँचने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु के बाद रागिनी की आँखों के आँसू अभी सूखे भी नहीं थे कि दोनों बेटों ने माँ को और घर को आपस में बाँट लिया।

उन्होंने घर के दो हिस्से कर लिए ऊपर का मंजिला छोटे ने ले लिया, बडे ने नीचे का हिस्सा ले लिया।  उन्होंने माँ का भी बँटवारा किया है कि वह एक महीने ऊपर छोटे बेटे के पास रहेगी और एक महीना बडे बेटे के पास रहेगी । वह जिसके पास रहेगी उस महीने का उसका पेंशन वही बेटा ले लेगा।

रागिनी को उनके साथ रहते हुए उनके घर के काम करते रहने की आदत सी हो गई थी।

रागिनी का अचानक याद आता है कि अरे ! मैं अभी तक यहीं बैठी हुई हूँ…… वह झट से नहा – धोकर कमरे से बाहर जाते हुए यह सोचती है कि सबने नाश्ता कर लिया होगा ….. मैं ही बच गई हूँ …. वह डायनिंग हाल में आती है वहाँ टेबल एकदम साफ है। वह तुरंत रसोई में गई वहां भी उसे खाने के लिए कुछ नहीं दिखा …. अभी वह बहू को आवाज देने जा ही रही थी कि …… पीछे से आकर कहने लगी कि …… माँ जी आप भूल गईं हैं कि …. आज आपको देवर के घर जाना है। इसलिए मैंने आपके लिए नाश्ता नहीं बनाया है।

रागिनी – बहू छोटे ने बताया था कि तीन तारीख को लेकर जाएगा फिर तुम मुझे आज ही क्यों भेज रही हो ?

बहू तेज आवाज में कहती है कि हाँ. हाँ हमेशा पहली तारीख को ही आपके छोटे बेटे और बहू को बाहर जाना पडता है। उनसे कह दीजिए कि अगर वे आपको तीन तारीख को अपने घर ले जाते हैं तो अगले महीने तीन तारीख को यहाँ लेकर आएँ …. एक दो दिन कम अपने घर में रखेंगे तो मैं चुप नहीं रहूँगी।

रागिनी बिना कुछ कहे आँखों में आँसू भरकर अपना कुछ सामान लेकर ऊपर छोटे बेटे के घर पहुँच गई ……. अक्सर छोटी बहू रागिनी के पहुँचते ही मायके चली जाती है या पति के साथ घूमने के लिए निकल जाती है। इस बार वह अकेले ही गई थी। इसीलिए वह अपने और बेटे दोनों के लिए ही खाना बना लिया करती थी।

एक दिन दोपहर में उसकी सहेली पुनीता ने फोन करके कहा रागिनी हम सब मिलाकर चारधाम यात्रा पर जा रहे हैं ….. तुम भी हमारे साथ आओगी ? रागिनी ने कहा बेटे से पूछ कर बताऊँगी ।

उसने बेटे से पूछा तो उसने उन्हें झिडकते हुए कहा, माँ आपने आजकल यह क्या नया शौक पाल रखा है ? इस उम्र में बाहर जाओगी कहीं गिर विर गई तो कौन भुगतेगा ? एक तो पैसों का खर्च , दूसरा आपकी देखभाल करना हमारे बस की बात नहीं है ।

यह सब नाटक छोडो और राम नाम जपते हुए घर में बैठो कहते हुए ….. वहाँ से चला गया। रागिनी को बहुत बुरा लगा था …… उसके पास पैसे भी नहीं थे क्योंकि पहली तारीख को ही उसका पेंशन बच्चे ले लेते थे।

दूसरे दिन बेटे के ऑफिस जाते ही रागिनी अपनी सहेली पुनीता से मिलने मंदिर पहुँच गई । वहाँ पहुंचकर उसने देखा उसकी ही उम्र की कुछ महिलाएँ वहाँ थीं । वे सब मिलकर हँस बोल रही थीं ।

उनको इस तरह ख़ुश देखकर रागिनी भी खुश हो गई। वह भी उन लोगों के साथ मिलजुलकर बातें करने लगी।

पुनीता ने रागिनी से चारधाम यात्रा पर न आने का कारण पूछा तो उसने सब कुछ बता दिया ।

रागिनी ने भी पुनीता से इन औरतों के बारे में पूछा तो उसने बताया कि ….. हम सबने मिलकर एक कैटरिंग का काम शुरू किया है …. तीन चार बच्चे हमारे साथ रहते हैं ….. जो सबके घर टिफ़िन पहुँचाने का काम करते हैं ।

इस कैटरिंग के साथ ही जिस को जो काम आता है उसे भी हम प्रोत्साहन देने का प्रयास करते हैं । जैसे कोई कढ़ाई करता है , तो कोई सिलाई या फिर आचार , पापड़ बनाने का काम यह सब बनाकर हम बेचते हैं और मुनाफा आपस में बांट लेते हैं ।

रागिनी हम सब बेटों और बहुओं के अत्याचार से परेशान होकर ही आज यहाँ इस मुकाम तक पहुँचे हैं । बच्चों को भी तो पता चले कि माँ सिर्फ़ आँसू बहाना ही कुछ करना भी जानती है ।

तुम भी रोज यहाँ आ जाया करो और तुम्हें कुछ काम आता है तो उसे सबके साथ साझा कर सकती हो ।

रागिनी सोचती है कि मुझे तो कुछ नहीं आता है ….. घर पर बच्चों की देखभाल करने के सिवा ? देखते हैं क्या हो सकता है ?

एक दिन दिन रागिनी कमरे में अपना सामान समेट रही थी तो उसे कुछ अपने हाथों से बनाए हुए पुराने स्वेटर मोजे आदि दिखाई दिए तब उसे लगा कि अरे ! मैं तो अपना हुनर ही भूल गई हूँ ….. इसके तहत ही उसने पैसे भी तो कमाए थे …… उसे तो सिलाई भी करनी आती है ….. पहले वह लोगों को सिखाया भी तो करती थी ।

जब वह दूसरे दिन मंदिर पहुँची तो उसने पुनीता को अपने हुनर के बारे में बताया और यह भी बताया कि वह इसी काम से पैसे भी कमाती थी ।

पुनीता ने कहा कि ठीक है ….. अभी इस सेक्शन में जो लोग काम कर रहे हैं …. उनके साथ तुम भी जॉइन हो सकती हो , थोड़े दिन बाद वहाँ के लोगों को सिखाने का काम भी करना ।

रागिनी खुश होकर सबके साथ काम करती रही । पुनीता ने उससे उसके बेटों के बारे में भी पूछ ताछ की और उसे एक वकील के पास ले गई ।

वकील नागराज जी को पहचानते थे । उन्होंने रागिनी को देखते ही पहचान लिया और उन्हें नागराज की वसीयत के बारे में सब कुछ बता दिया ! अब रागिनी को पता चला कि यह घर उसके नाम पर है और बैंक में उसके नाम पर पैसे भी हैं ।

अब उसे बेटों से डरने की जरूरत नहीं है? सीना तानकर बहुत सारे कपड़ों का बैग लिए घर के अंदर कदम रख रही थी कि दोनों बेटे और बहू बैठक में बैठे हुए मिले ….. उसे उन्हें देखकर हँसी आई ।

उसे हँसते हुए देखकर बड़ा बेटा कहता है कि आपको हँसी किस बात पर आ रही है ? हम बहुत दिनों से आपकी हरकतों को देख रहे हैं ? आज तो आपको बताना पड़ेगा कि यह सब इस घर में क्या चल रहा है ?

रागिनी कहती है कि आज तक कुत्ते बिल्ली के समान लड़ने वाले भाई माँ से लड़ने के लिए एक हो गए। चलो! मुझे इस जन्म में ही भाइयों का प्यार देखने को मिल गया है।

हाँ एक बात और अब से इस घर में मुझे दो कमरे चाहिए एक मेरे रहने के लिए दूसरा मेरा काम करने के लिए ।

क्या? यह क्या कह रहीं हैं आप?

सही तो कह रही हूँ ….. बच्चों अपनी माँ की आँसुओं का हिसाब तो चुकाना ही पड़ेगा। आप सब कान खोलकर सुन लो यह घर मेरे नाम पर है और मेरी इच्छा से ही आप लोग यहाँ रह सकते हो वरना घर छोड़कर कहीं और जा सकते हो ।

दोनों बेटे रागिनी की बात पर सकते में आ गए उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि हमेशा चुपचाप पडी रहने वाली माँ आज शेरनी बन कर दहाड़ रही है ….. अब उसकी बात मानने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं था …. इसीलिए माँ को दो कमरे देकर वे खुद एक – एक कमरे में रहने लगे।

दोस्तों माँ की सहनशक्ति का इम्तिहान नहीं लेना चाहिए क्योंकि अंत में उसकी आँसुओं का हिसाब चुकाना ही पड़ता है।

के कामेश्वरी

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