“पत्थरदिल” – पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi

तुम्हारे पापा पत्थर दिल इंसान नहीं है बेटा, अगर तुम्हें तुम्हारी गलत बातों के लिए रोकते टोकते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह तुमसे प्यार नहीं करते। तुम ही उन्हें नहीं समझोगे तो वे बिल्कुल टूट जाएंगे। तुम दोनों भाई बहनों ने न जाने क्यों अपने मन में उनकी छवि ऐसी बना ली है?

 क्यों मां आप क्यों पापा की तरफदारी करती रहती हो हर समय, अरे रोकती टोकती तो आप भी हो लेकिन आपका प्यार और परवाह हमें दिखाई देती है पापा की तरह आप हर समय अपनी हिटलरगिरी तो नहीं हम पर थोपती, बचपन से लेकर अब तक यही देखा है पढ़ लो पढ़ लो यही तुम्हारे काम आएगा मेरे पास केवल एक नौकरी है

जिससे मैं तुम्हारी पढ़ाई का खर्चा उठता हूं कोई बाप दादा की जायदाद नहीं पड़ी है यहां पर जो तुम्हें बिजनेस करा दूंगा। यहां क्यों गए थे वहां क्यों गए थे? अच्छे दोस्त बनाया करो। हम क्या बच्चे रह गए हैं अब आखिर हम भी तो इंसान हैं हमारी भी खुद की इच्छाएं हैं?

बिल्कुल बच्चा समझते हैं हमें। सच पूछो तो एक संडे के दिन जब घर में बाबा रहते हैं तो एक घुटन सी महसूस होती है। हमारे दोस्त कैसे हैं हमारी संगति कैसी है?24 घंटे हम पर नजर रखते हैं अरे जिसे बिगड़ना होता है उस पर कितनी भी रोकटो क लगा लो वह बिगड़ ही जाते हैं।

अपने दोस्तों के पापा को जब हम देखते हैं तो लगता है काश हमारे पापा भी ऐसे ही होते उनके पापा कितने प्यार से अपने बच्चों से बात करते हैं। अच्छा है दीदी की शादी भी जितनी जल्दी हो जाए।इस नर्क से मुक्ति मिल जाएगी उन्हें।

 मेरी भी हैदराबाद की एक कंपनी में जॉइनिंग डेट आ चुकी है।चटाक गायत्री जी ने अपने बेटे मयंक के मुंह पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। खबरदार जो एक शब्द और भी कहा मेरे पति के खिलाफ तुमने, अभी तो तुमने कुछ करके नहीं खिला दिया है

उन्हें या मुझे जो इतनी लेक्चर झाड़ रहे हो। और जिन दोस्तों के पापा तुम्हें अच्छे लगते हैं क्यों नहीं उन्हें के पापा से फीस जमा कर दी तुमने जब जब तुम्हारे कदम लड़खड़ाए क्यों नहीं संभालने आ गए किसी और के पापा तुम्हें? पिछले दो महीने से ओवरटाइम कर रहे हैं

तुम्हारे पापा। ना उन्हें खाने की फिक्र है ना सोने की होश। बस दिन रात काम ही काम केवल अपने बच्चों के लिए ही तो वह सब करते हैं, तुम्हारी पढ़ाई में किसी तरह की कमी ना रहे। अपने लिए तो कभी कुछ नहीं खरीदते। तुम्हारे लिए कभी कोई कमी ना रहे।

 इसलिए अपनी सारी इच्छाएं मार दी उन्होंने, और तुम पत्थर दिल इंसान कह रहे हो उन्हें। अपने मां बाप के प्रति भाई बहन के प्रति पत्नी के और अपनी औलाद के लिए क्या फर्ज नहीं निभाया उन्होंने? खैर अभी तुम्हें यह बातें समझ में नहीं आयेंगी जिस दिन तुम खुद बाप बनोगे उस दिन सब समझ में आ जाएगा।

 कहते हुए गायत्री जी अपने आंचल से आंसुओं को पूछते हुए वहां से अपने कमरे में चली गई। यह आज की ही बात नहीं थी उनके घर में अक्सर ऐसा होता ही रहता है दोनों बच्चे अपने पापा को पत्थर दिल ही सोचते हैं। रविकांत जी एक पेपर मिल में नौकरी करते हैं।

 बचपन से संयुक्त परिवार में रहने के कारण उन्हें परवरिश ही ऐसी मिली थी उनके पिता सबसे बड़े थे जिससे घर में उनका पूरा वर्चस्व चलता था। वह कभी भी अपने पिता से नहीं खुल पाए थे।वह खुद भी अपने पिता से बहुत डरते थे। इसी कारण से उनका व्यक्तित्व थोड़ा सा अंतर मुखी हो गया है।

गायत्री जी अपने पति को कभी-कभी कहती भी है कि आजकल वह वाला माहौल नहीं रहा है थोड़ा सा बच्चों के साथ दोस्त वाला व्यवहार किया कीजिए नहीं तो बच्चे आपसे पूरा दूर हो जाएंगे। यूं अपनी तरफ से कोशिश तो करते हैं लेकिन फिर भी बच्चे उन्हें नहीं समझ पाते

 आज सुबह भी यही हुआ था ऑफिस जाते हुए मयंक ने अपने पापा से पूछा था सभी दोस्तों के साथ हिल स्टेशन पर घूम कर आने के लिए। सारे दोस्त बाइक से जा रहे थे उसी की जिद मयंक ने भी पकड़ रखी थी।

 लेकिन उसके पापा ने बाइक से जाने के लिए साफ मना कर दिया था इसी बात पर मयंक गुस्से से भरा हुआ था। दो-तीन दिन पहले भी यही हुआ था उसकी बहन नियति अपने दोस्तों के साथ नए साल की पार्टी के लिए क्लब में जाना चाहती थी

लेकिन उन्होंने उसे भी मना कर दिया था। और कहा ससुराल में जाकर जैसे मर्जी अपने पति के साथ घूमना फिरना और जो चाहे वो करना? क्या करें बेचारे जरा पुराने ख्यालात के जो है? अपने ही साथ पढ़ने वाले एक लड़के राघव से प्यार करती है नियति जिससे वह शादी भी करना चाहती है लेकिन उसके पापा ने उसे साफ मना कर दिया

उससे शादी करने के लिए नियति भी इसी बात पर अपने पापा से खफा बैठी है ऐसी ही कितनी बातें हैं जिसके वजह से बच्चे अपने पापा से दूर होते जा रहे हैं। यह आज की बात ही नहीं थी। दोनों बच्चे अक्सर अपने पापा की अपनी मां से शिकायत करते ही रहते थे।

लेकिन आज यह सारी बातें रविकांत जी ने सुन ली थी क्योंकि आज वह आप ऑफिस से जल्दी आ गए थे और दरवाजा भी बाहर से खुला हुआ था? अपने बारे में बात चल रही थी इसीलिए वह कमरे में ना आकर दरवाजे की ओट से ही सारी बातें सुन रहे थे। उनकी आंखों में आंसू आ गए वह उल्टे पांव अपने घर से बाहर चल दिए। और थोड़ी दूर ही पार्क में जाकर बैठ गए। सोच रहे थे

क्या कमी रह गई मेरी परवरिश में मैं जिनके लिए दिन रात मेहनत करता हूं वही बच्चे मुझे पत्थर दिल बोल रहे हैं किस तरह मैं उन्हें अपना प्यार दिखाऊं मैं कैसे समझाऊं मैं अपने बच्चों से कितना प्यार करता हूं?

 अब रविकांत जी अपने आप में ही खोए हुए रहने लगे थे उन्होंने बच्चों को किसी बात के लिए टोकना बंद कर दिया था। दोनों बच्चों को भी अपने पापा का।

 व्यवहार बदला हुआ लग रहा था। 8 दिन हो गए थे रविकांत जी को बिल्कुल चुप हुए। अब दोनों भाई बहन से उनकी चुप्पी सहन नहीं हो रही थी। जब उनसे रहा नहीं गया तो उन्होंने पूछ लिया पापा क्या बात है आप क्यों चुप चुप हो? अरे नहीं बेटा कोई बात नहीं। तुम्हें हैदराबाद जाना है तुम अपने कपड़े वगैरा और अपना सामान ले आना जितने पैसों की जरूरत हो मुझे बता देना।

और नियति तुमने जिस लड़के के बारे में बताया था मैंने उसके बारे में पूछताछ की है वह अच्छा लड़का नहीं है तुम खुद चाहो तो उसके बारे में पता कर सकती हो। तुम्हारे जैसी कितनी लड़कियों को बेवकूफ बना चुका है। तुम ही बताओ मैं तुम्हारा जीवन कैसे बर्बाद कर दूं? कहकर रविकांत जी चुप हो गए।बच्चों ने अपनी मां की तरफ देखा मां की आंखों में भी आंसू थे। गायत्री बोली,

उसे दिन तुमने जो भी अपने पापा के लिए कहा तुम्हारे पापा ने सब सुन लिया था। इसीलिए उनका मन बहुत भारी भारी रहता है। पता है मयंक जिस दिन तुम्हारा जॉइनिंग लेटर के बारे में मैंने उन्हें उन्हें बताया तुम्हारे पापा कितना खुश थे। यही बोल रहे थे मेरा बेटा मुझसे भी बेहतर बने यही मेरी इच्छा थी , और पिछले कुछ दिनों से केवल राघव के बारे में ही इंक्वारी निकालने में लगे हुए 

उन्हक्ककक नियति के भविष्य की भी उतनी ही चिंता है। रविकांत जी की आंखों में आंसू आ गए वह खुद पर काबू नहीं रख सके। और बोले मैं जानता हूं कि मुझसे प्यार दिखाना नहीं आता तुम्हारे दोस्तों के पिता की तरह मैं तुम्हें गले नहीं लगा ता कभी तुम्हारे साथ बैठकर हर तरह की बातें नहीं की, गलती मेरी भी है शायद वक्त के साथ मैंने खुद को बदला ही नहीं

 नियति बेटा बेटियां हर बाप की परी होती है। मैं तुम्हारा हाथ कैसे उसके हाथ में सौंप दूं जो तुम्हारे योग्य नहीं है? महज आकर्षण है जिसका चश्मा तुम्हारी आंखों पर चढ़ा हुआ है। मैं तुम्हारा बाप हूं हमेशा तुम्हारा भला ही चाहूंगा बाप का किरदार ऐसा ही होता है। वह हमेशा मां से पीछे ही रह जाता है।

 लेकिन मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं मेरे बच्चे मेरी दुनिया है। बस मुझे दिखाना नहीं आता मैं क्या करूं? लेकिन अब थोड़ा-थोड़ा खुद को बदलने की कोशिश करूंगा।

 कहते कहते रविकांत जी रो पड़े। नियति और मयंक दोनों अपने पापा का हाथ पकड़ कर उनके पास बैठ गए। और रोते हुए अपनी गलती के लिए माफी मांगने लगे पापा हम ही आपको नहीं पहचान

सके। हमें माफ कर दो आपसे ज्यादा हमारे लिए कोई बेहतर नहीं सोच सकता। आपको बदलने की कोई जरूरत नहीं है आप जैसे हैं हमें वैसे ही अच्छे लगते हैं। पिछले 8 दिनों से आपकी चुप्पी ने हमारी जान ले ली थी। आप इस घर की जान हो आप इस घर की नींव हो पापा।

 रविकांत जी ने अपने दोनों बच्चों को अपने सीने से लगा लिया। गायत्री भी खुशी की वजह से रो पड़ी।

पूजा शर्मा

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