माॅ के आंसुओ का हिसाब – परमा दत्त झा : Moral Stories in Hindi

चल बुढ़िया, झाड़ू लगा-कहती बहू शीला अपनी सास मीरा को आदेश दे रही थी।

करीब छः माह पहले मीरा ने बड़े धूमधाम से अपने बेटे की शादी शीला से करवाई थी।

शादी के बाद शीला ने रूप दिखाने शुरू कर दिये थे।आज संयोग वश कोई कागज़ छूट गया था और जवाहर वही लेने आया था।

यह देखकर खून खौल गया। फिर तो चुपचाप समान लेकर चला गया , मगर आंख बचाकर कैमरा लगाकर चला गया।

शाम आने के बाद शीला भली बहू की तरह चाय बनाने लगी थी।अगले दिन रविवार था और यह सुबह थाने जाकर एफ आई आर करवाया था।”दहेज कानून की आड़ में बहू सास तथा पति पर ज़ुल्म करती है”-मेरे यहां वहीं हो रहा है।

दोपहर बारह बजे तक सास राधा, श्वसुर,साला मोहित सभी आये थे। मोहित तो बस लाने ही गया था।मगर अचानक ही–

क्या है दामादजी हमें क्यों बुलाया है?-यह सास थी जो चिल्लाते हुए बोली।

हमने बेटी ब्याही है कोई बेंच नहीं दिया -यह ससुरजी थे।

तब तक टी आई जगदीश का आगमन भी हो गया।वह महिला पुरूष दोनों पुलिस लेकर आया था।

अब शीला का हालत खराब था।यह समझ गयी थी कि कुछ ग़लत है।खैर टी आई के कहने पर जवाहर ने बोलना शुरू किया।

मेरी पत्नी मेरे पीठ पीछे मां पर ज़ुल्म करती है,उनसे सारा काम करवाती है।बोलने पर दहेज के झूठे केस में फंसाने की धमकी देती है।

क्या सबूत है तुम्हारे पास, कुछ भी बोले जा रहे हो?-यह सास थी।

बस अभी देखिए कहते मोबाइल से बनाया फिल्म दिखाना शुरू किया।अब तो कांटों तो खून नहीं।

जी थानेदार साहब इस केस की विलेन हमारी सास है,वह बेटी से घंटों -कहते बेटी मां का काल डिटेल रख दिया।

अब तो सास , ससुर ,साला सभी की हालत खराब हो गई थी।मैंने सबूत और केस दोनों हवाले कर दिया,अब आप ले जाईए।

फिर क्या था?

अब शीला को पुलिस पकड़कर ले जाने लगी।

मुझे माफ़ करो,बस एक चांस दे दो,अब कभी ऐसा नहीं होगा -वह पांव पकड़कर गिड़गिड़ाने लगी।

हां दामाद जी,बस कीजिए न घर की इज्जत खराब होगी।मेरी बेटी नादान है ,ग़लती हो गई।

नहीं समधन ग़लती नहीं,एक सोची समझी साजिश थी।-पहली बार मीरा बोली।

अब तो पुलिस भी शीला और उसकी मां को पकड़कर जेल ले गयी।

पापाजी मैं मां के आंखों में आंसू नहीं देख सकता?-बस बहुत हो गया।

बेटा मुझे नहीं पता था –

बस इसलिए आप यहां बैठे हैं -वह ठंढे स्वर में बोला।

अब तो एक महीने में पूरा मामला सुलझ गया। पूरे पचास लाख हर्जाना लेकर जवाहर तलाक लिया और फिर मां के साथ चला गया।उसने अपना स्थानांतरण दूसरे शहर में करवा लिया। मां बेटे खुश थे तो दूसरी ओर शीला अपना सबकुछ गंवा चुकी थी।किराये मकान में आ गयी थी।

काश मैंने मां की बात नहीं मानी होती-वह पछता रही थी।

आज जवाहर ने मां के आंसुओ की कीमत दिखा दिया था।

#देय वाक्य -माॅ के आंसुओ का हिसाब 

,#बेटियाॅ वाक्य कहानी प्रतियोगिता 

कुल शब्द-कम से कम 500.

समय=(11-7-2025से 19-7तक)

(कथा मौलिक और अप्रकाशित है इसे मात्र यहीं प्रेषित कर रहा हूं)

लेखक : परमा दत्त झा

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