पत्थर दिल – नीलम शर्मा : Moral Stories in Hindi

डॉक्टर साहब, डॉक्टर साहब किसी भी तरह बस आप मेरी मां को बचा लो। देखो हमने पहले भी कहा है इनकी दोनों किडनी खराब हो गई हैं। जल्दी से जल्दी किसी डोनर को देखिए जो इन्हें अपनी किडनी दे सके। यह है राघव, जिसकी मां अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही थी। राघव ने अपने छोटे भाई अखिल को फोन कर सारी बात बताई।

जो विदेश में रहता था। उसने आने में असमर्थता जताई और बोला मैं पैसे भेज दूंँगा। आप माँ का अच्छे से इलाज करवाइए। राघव की आंखों में आंसू आ गए। क्या करूंँ, कहांँ से लाऊंँ ऐसा आदमी जो माँ को किडनी दे सके। फिर राघव ने निर्णय लिया कि मैं खुद ही माँ को किडनी दूंँगा।

राघव ने डॉक्टर से बात की। सारे टेस्ट करने के बाद राघव की एक किडनी राधिका जी(राघव की मां) को ट्रांसप्लांट कर दी गई। ऑपरेशन सफल रहा। राधिका जी अब धीरे-धीरे ठीक हो रही थी। घर पर राघव की पत्नी मधु राघव और राधिका जी का पूरा ध्यान रखती।

उनकी सेवा में उसने कोई भी कसर नहीं छोड़ी। उधर अखिल ने केवल पैसे देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली थी। उसने तो मां का हाल-चाल पूछने की भी कोशिश नहीं की। 

एक दिन राधिका जी आंँख बंद कर लेटी थी। उन्हें पुराने दिन याद आने लगे। जब उनकी शादी को आठ साल हो चुके थे। लेकिन उनकी कोख सूनी थी। डॉक्टर को दिखा-दिखाकर भी निराशा  होने लगी थी। अब तो उन्हें केवल किसी ईश्वरीय चमत्कार का ही इंतजार था। 

एक दिन वह बाजार से लौट रही थी। राधिका जी ने देखा कि उनके मोहल्ले के बाहर, जो नाला पड़ता था वहां भीड़ लगी हुई थी। उत्सुकतावश वह भी वहांँ गई तो देखा, कि एक बड़ी सी पन्नी में किसी ने एक नवजात शिशु को फेंक रखा है।

इसलिए पुलिस को फोन करने के बाद सब इकट्ठा होकर केवल तमाशा देख रहे थे। बच्चा रोए जा रहा था। राधिका जी से रहा नहीं गया। उनकी ममता उस बच्चे को रोता देख फूट कर बाहर आ गई। और झट से सब कुछ भूल कर उन्होंने उस बच्चे को गोद में उठा लिया।

कैसी पत्थर दिल माँ है। जो जन्म देकर अपने बच्चे को ऐसे फेंक दिया। तभी पुलिस आ गई। और उस बच्चे को थाने ले गई। राधिका जी अपने घर आ गई। लेकिन उस बच्चे का स्पर्श वह भूल नहीं पा रही थी। राधिका जी ने अपने घर में उस बच्चे को गोद लेने की इच्छा जाहिर की। तो थोड़ी सी नानुकर के बाद उनके पति तो तैयार हो गए। लेकिन उनकी सास ने सारा घर सर पर उठा लिया।

अरे तुझे लेना ही है तो किसी रिश्तेदार का बच्चा गोद ले ले।पता तो रहे कौन है, किसका है। पता नहीं किसका गंदा खून है वह बच्चा।

किसी की नाजायज औलाद होगा। तभी तो फेंक दिया कूड़े के ढेर पर। राधिका जी की सास भी अपनी जगह सही थी। लेकिन उस बच्चे के एक स्पर्श ने ही राधिका जी को अपना बना लिया था। कैसा दिल होगा। या फिर मजबूरी में पता नहीं किस माँ ने इतना घोर पाप किया। 

लेकिन राधिका जी ने किसी तरह अपने परिवार को मना ही लिया। सारी कानूनी कार्यवाही के बाद वह बच्चा राधिका जी की गोद में आ गया। उसे बच्चे का नाम  उन्होंने प्यार से राघव रखा। राघव एक साल का ही था। भगवान ने राधिका जी को मां बनने का सौभाग्य  दिया।

दोनों बच्चे एक साथ बड़े हो रहे थे। राघव जहां शांत और संस्कारी था। राधिका जी का अपना बच्चा अखिल अपनी दादी के ज्यादा लाड प्यार के कारण , उद्दंड और बदतमीज होता जा रहा था। लेकिन वह पढ़ने में अच्छा था। पढ़ाई पूरी होने के बाद अपनी मर्जी से शादी करके वह विदेश में बस गया। राधिका जी के पति और सास की मृत्यु हो चुकी थी।

राधिका जी को अपनी सहेली की बेटी मधु राघव के लिए योग्य लगी। दोनों का स्वभाव बिल्कुल एक जैसा था। राघव और मधु राधिका जी के साथ ही रहते थे। जब से राधिका जी ने राघव को गोद लिया था तब से एक क्षण के लिए भी उन्हें अपने फैसले पर पछतावा नहीं हुआ था। पता नहीं कौन सी ऐसी अभागी मां थी जिसने अपने हीरे जैसे बेटे का त्याग किया।

अब तो राघव ने अपनी किडनी देकर उन्हें नई जिंदगी दी और जैसे उनकी ममता का कर्ज एक झटके में ही चुका दिया। वे यह सब सोच ही रही थी कि राघव और मधु ने आकर उनके पैर छूकर उनसे आशीर्वाद मांगा।

और उन्हें दादी बनने की खुशखबरी दी। खुशी के मारे राधिका जी की आंखें छलछला आई। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर ईश्वर को धन्यवाद कर अपने बच्चों पर कृपा दृष्टि बनाए रखने की प्रार्थना की।

नीलम शर्मा

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