विश्वास की डोर – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

हमें आपकी बेटी पसंद है और हम शादी को तैयार हैं रविकांत जी का फोन आया अखिलेश जी के पास। लेकिन लेकिन रविकांत जी हम आपकी डिमांड पूरी नहीं कर सकते आपने जो शादी में दहेज की मांग की है वह मैं पूरा नहीं कर सकता हूं। कोई बात नहीं मैं अपनी  मांग वापस लेता हूं और अगले रविवार को बैठकर शादी की डेट   तारीख तय करता हूं ।

जी अच्छा कह  कर अखिलेश जी ने फोन रख दिया। अखिलेश जी सोच में पड़ गए जो कल तक गाड़ी और दहेज की मांग कर रहे थे वह आज अचानक बदल कैसे गए तभी पत्नी सुमन चाय लेकर आई और गुमशुम से बैठे पति अखिलेश से पूछा क्या हुआ जी,

इस तरह से गुमशुम से क्यों बैठे हुए हैं ,अरे रविकांत जी का फोन आया था वह कह रहे थे हम शादी के लिए तैयार हैं। हमने पूछा लेकिन आप जो मांग कर रहे थे उसे पूरा करने में तो हम असमर्थ है तो कहने लगे हमें कुछ सामान नहीं चाहिए  आप तो बस बिटिया की शादी की तैयारी कीजिए।

हम दोनों मिलकर तारीख़ तय  करते हैं ।अच्छा सुमन भी सोचने लगी कुछ तभी उसे मां जी का ख्याल आया     जिससे एक विश्वास की डोर में सुमन बंधी थी ।ऊपर से तो वह सख्त थी लेकिन मन से बहुत कोमल थी ।डांट, डपट भी तो अच्छे के लिए ही पड़ती थी। लेकिन जब हम जवानी की उम्र में होते हैं

तो बड़ों की डांट डपट  हमें अच्छी नहीं लगती है नसीहतें अच्छी नहीं लगती। बेटी की शादी की चिंता थी लेकिन जहां बात चल रही थी शादी की सब कुछ तो ठीक है लड़के वालों को बेटी रिसिका पसंद भी आ गई थी लेकिन दहेज की बात पर बात अटक गई ।

और फिर अचानक से शादी के लिए हां करना अखिलेश जी तो समझ नहीं पा रहे थे ।लेकिन सुमन को कुछ कुछ समझ में आ रहा था फिर भी वह अखिलेश से कुछ नहीं कहकर चुपचाप अपने काम में लग गई।

                   सरस्वती जी के दो बेटे थे अखिलेश और अविनाश अखिलेश बड़ा था और अविनाश छोटा। सरस्वती जी के पति की बहुत पहले मृत्यु हो गई थी जिनकी कुछ जमा राशि और घर के ऊपर हिस्से का मकान का किराया आता था। जिस से घर का खर्च चलता था ।अखिलेश बड़ा था और अविनाश छोटा ।

जब दोनों पढ़ रहे थे तभी पिता की मृत्यु हो गई थी कम पैसों में ही सरस्वती जी ने बड़ी समझदारी से घर परिवार और बच्चों की पढ़ाई लिखाई की जिम्मेदारी अच्छे से निभाई थी ।छोटा अविनाश पढ़ने में अच्छा होशियार था

अच्छी पढ़ाई करके इंजीनियरिंग करके दिल्ली में नौकरी कर रहा था। और बड़े बेटे का मन पढ़ाई लिखाई में नहीं लगता था । ग्ग्रेजुएशन करते हो किसी प्राइवेट फैक्ट्री में हिसाब किताब का काम देखता था ।पैसे थोड़े कम मिलते थे लेकिन सरस्वती देवी के पैसे मिलाकर     घर खर्च चल जाता था।

                    अखिलेश की नौकरी के बाद उसकी सुमन से शादी कर दी। सुमन भी बहुत समझदार और सुघड़ थी। अच्छे से घर में रच बस गई ।और समय के साथ दो बेटियों की मां बन गई। अब घर के खर्च बढ़ गए थे सरस्वती जी हर समय कहती रहती

बचत करने को क्योंकि बड़े बच्चों की पढ़ाई लिखाई शादी ब्याह में पैसे खर्च होने वाले थे ।लेकिन अखिलेश थोड़ा सा खर्चीला था वह  जहां जरूरत ना होती वहां भी फालतू खर्च कर देता।  बच्चों  भी  जो डिमांड करते झट से पूरा कर देता। 

 सरस्वती जी कहती बच्चों की हार जिद पूरी करना ठीक नहीं है थोड़ा पैसा बचाओ। लेकिन अखिलेश को पता था कि मां के पास पैसे है ,वो बचा बचाकर रखती है

  कुछ परेशानी आएगी ज़रूरत पड़ेगी तो मदद  कर देंगी।

                   ऐसे ही कुछ समय से अखिलेश को शराब पीने की लत लग गई थी। पहले तो कभी-कभी ही था लेकिन अब वह अक्सर ही पीके आ जाता था ।सरस्वती जी डांटती  तो कहता मैं अपने पैसे से नहीं पी है दोस्तों ने पिला दी  है।

सरस्वती जी कहती है अभी तो दोस्त ने अपने पैसों से पिलाकर कर तुम्हारी आदत डाल रहे हैं फिर तुम्हारे पैसों से पिएंगे ।  सरस्वती जी सुमन से कहती उसे  समझाओ  लेकिन कुछ असर ना होता अखिलेश पर। दिन में तो हां हां नहीं पियूंगा

ऐसा बोलता लेकिन शाम होते-होते फिर पीके आ जाता उसकी इस हरकत से सरस्वती जी बहुत परेशान रहने लगी थी। बेटियां बड़ी हो गई थी यही चिंता लगी रहती थी सरस्वती जी को अगर अखिलेश ने पीना पाना ना छोड़ा तो घर में पैसों की तंगी हो जाएगी फिर आगे खर्च कैसे पूरे होंगे।

               सरस्वती की बेटियों को पढ़ने लिखने के लिए फीस वगैरह तो दे देती थी लेकिन अखिलेश की आदत भी छुड़वानी थी सीधे-सीधे कहाँ पर  बेटा   माना नहीं ।बेटा मान नहीं रहा था तो सरस्वती जी ने सख्ती करने की सोची और आज पीकर घर आने पर अखिलेश को साफ-साफ कह दिया

कि घर से निकल जाओ और किराए के मकान में रहो अब मैं तुम्हारा खर्चा नहीं उठा सकती ।और तुम रास्ते पर नहीं आ रहे हो तो तुमसे मैं सारे रिश्ता खत्म कर रही हूं। और अब मैं तुम्हारे परिवार के लिए कोई खर्चा नहीं करूंगी। सुमन ने मां जी से कहा  आप जो कर रही है  सही कर रही है

लेकिन घर छोड़कर जाने को न कहें।एक खर्चा और बढ़ जाएगा किराया कहां से देंगे। ठीक है बहू अब से मैं घर में जो खर्चा करती थी अब नहीं करूंगी सब बंद कर रही हूं ।अब से सारा खर्चा अखिलेश ही करेगा।बस बेटियों के पढ़ाई का खर्चा मैं उठाऊंगी बस ।

             आप सरस्वती जी ने घर के खर्चे से हाथ खींच लिया तो समझ आने लगा अखिलेश को लेकिन उसकी आदतों में सुधार अभी तक ना आया था एक बार किसी तरह की नशे की आदत पड़ जाए तो मुश्किल होता है उसे बाहर निकलना।

           बड़ी बड़ी बेटी रसिक अब एम बीए कर चुकी थी   और नौकरी के लिए भी कोशिश कर रही थी उसी समय उसकी दोस्ती अभय से हुई और दोनों धीरे-धीरे एक दूसरे को पसंद करने लगे ।एक दिन रसिका ने मम्मी से कहा कि मैं अभय से शादी करना चाहती हूं सुमन बोली लेकिन बेटा  यह ऐसे कैसे बिना जाने बुझे हो सकता है ।

क्या करते हैं अभय के पापा, अभय के पापा बैंक में मैनेजर है। और मैं उनकी मम्मी से भी मिली हूं वह भी काफी अच्छे स्वभाव की है।आपसे और पापा से बात करना चाहती हैं अभय के मम्मी पापा  ।     रसिका की बात सुनकर सुमन ने पति अखिलेश को बताई तो वह सोचने लगे लड़का लड़की आपस में एक दूसरे को पसंद करते हैं तो शादी करने में बुराई क्या है ।

और दहेज से भी बच जाएंगे और उन्होंने हां कर दी ।उधर अभय की मम्मी को तो रसिका पसंद आ गई थी लेकिन पापा ना नुकूर  कर रहे थे । बेटे और पत्नी की ज़िद के आगे अभय के पापा मान गए लेकिन दहेज की बात रख दी जिससे हो सकता है कि रसिका के पापा मांग पूरी न कर पाए और शादी से मना हो जाए।

               अभय के पापा जरा स्टैंडर्ड वाला परिवार चाहते थे ।रसिका  के घर गए रसिका पसंद तो आ गई थी लेकिन उन्होंने रसिका के पापा के सामने गाड़ी और  दहेज की मांग कर बैठे जिसे पूरा करने में वह असमर्थ थे।

अखिलेश जी ने मां से बात की की पैसे से मदद कर दे लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया कि मेरे पास पैसे नहीं है ।जब मैं मना करती थी कि आदतें सुधार लो अपनी पीना पिलाना बंद करो और बेटियों के लिए पैसा जोड़ो तो तुम्हें समझ नहीं आ रहा था अब भुगतो।

            फिर आज जब रविकांत जी की तरफ से हां हो गई शादी को तो अखिलेश समझ नहीं पा रही थी कि सब कैसे हुआ ।

सुमन और रसिका की विश्वास की डोर मां जी  के प्रति पक्की डोर थी। जब सुमन और रसिका  सरस्वती जी के पास गई और अपनी समस्या बताई और कहा दादी आप ही कुछ कर सकती हो ऐसा मेरा विश्वास है कि विश्वास की डोर टूटने नहीं पाएगी। नहीं मेरा बच्चा तेरे पापा से  सख्ती 

 करने का मेरा मकसद था उसे रास्ते पर लाना।जो भी पैसा मैंने जोड़ रखा तुम दोनों की शादी के लिए रखा है।

मैं अभी रविकांत को फोन करती हूं की शादी मुझे मंजूर है ।सारी। बातें बेटा अखिलेश अंदर से सुन रहा था आकर के मां के पांव पकड़ लिए मुझे माफ कर दो मां मैं आपकी बात नहीं मानी आपने मेरी बेटी का मन रख दिया मुझे माफ कर दो अब मैं आगे से पीना छोड़ दूंगा आप जैसा कहीं की वैसा करूंगा।

            सरस्वती जी ने कहा कि जो कुछ भी हमारा है तुम ही लोगों के लिए है। अखिलेश तुम पर सख्ती करने का मेरा मकसद तुम्हें रास्ते पर लाना था। यह गलत मत समझना दोस्तों हम बच्चों को बड़ों की नसीहतें बहुत  बुरी लगती है।

लेकिन उनके हर एक नसीहत में कुछ न कुछ अच्छा ही होता है ।ये अपनों से अपनों की विश्वास की डोर होती है जो कभी नहीं टूटती।जाए तो कभी नहीं टूटती है।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

8 जुलाई

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