नारी, अब नहीं बिचारी  – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi

क्या बात है अनु? आज तुझे आए हुए 15 दिन हो गए, पर तू अपने ससुराल जाने का नाम ही नहीं ले रही और ना ही इन दिनों मैंने तुझे दामाद जी से बात करते हुए देखा, क्या बात है सब ठीक तो है ना? सविता जी ने अपनी बेटी अनु से कहा 

अनु अपनी आंखें चुराते हुए कहती है, हां मम्मी सब ठीक है, वह क्या है ना अनुपम एक महीने के लिए विदेश गए हैं, तो इसलिए वहां से बात नहीं हो पाती और मैं भी उनके आने के बाद चली जाऊंगी 

सविता जी:  पर जब तू यहां आई थी तब तो तूने कहा था कि दामाद जी तुझे कुछ दिन यहां रहने को छोड़ गए हैं, इस बीच वह विदेश कब चले गए? तू सच-सच बता क्या छुपा रही है मुझसे? सच कह रही थी तेरी दादी, तेरा यहां यूं अचानक आना ही उन्हें खटका था, पर मुझे क्या मालूम था उनका अंदाजा सही निकलेगा? 

अनु अब रोने लगी, उसे यूं रोता देख सविता जी घबरा जाती है और कहती है, क्या हुआ बेटा अपनी मम्मी से क्यों छुपाना? तेरे पापा भी तुझे कितना प्यार करते हैं, हम सब तेरे साथ हैं अब बता क्या हुआ? 

अनु:  मम्मी! विदाई के वक्त आपने कहा था कि कम ज्यादा थोड़ा मना कर चलना, गलती ना भी हो फिर भी मान लेना और सबको अपने प्यार और विश्वास की डोर से बांधे रखना, मम्मी जैसा-जैसा आपने कहा मैं वैसा ही किया, पर धीरे-धीरे मुझे पता चला कि मेरा यह करना उनको नाटक लगता है,

उस घर में, मैं एक काम करने की मशीन के अलावा और कुछ नहीं, सुबह से रात तक सबकी फरमाइसे बिना किसी शिकायत के पूरी करती हूं,

बदले में प्यार के दो बोल तो छोड़िए किसी के भी सामने बेइज्जत कर देते हैं, कभी-कभी मेरी सहनशक्ति जब जवाब दे देती है, तब मैं अगर कुछ बोल दूं, तो पूरे दिन के लिए मुझे इतना सुनना पड़ता है, मन तो करता है अपनी जान दे दूं 

सविता जी:  ऐसा नहीं कहते बेटा! दामाद जी? वह भी ऐसे हैं? जहां तक हम उन्हें जानते हैं वह तो ऐसे नहीं होंगे? बस परिवार के आगे बेबस हो जाते होंगे बेचारे, तू कहे तो हम उनसे बात करते हैं!

अनु:  मम्मी जाना ही कितना है अपने अपने दामाद को! पूरा परिवार कुछ भी करें, फिर भी सह लेती अगर पति अच्छा होता तो? कहते हैं पति पत्नी का रिश्ता विश्वास पर टिका होता है और मेरा पति मुझ पर विश्वास ही नहीं करता! चाहे गलती किसी की भी हो उनके नज़र में मैं ही गलत होती हूं, पता है मम्मी? सासू मां की तबीयत खराब हो गई

तो सासु मां ने कहा, मैंने ज्यादा तेल मसाला खिला दिया और जब फीका खाना बना कर दो तो कहते, मेरे लिए अच्छा खाना नहीं बनाती, बुढ़ी हो गई हूं ना, तो बोझ लगती हूं, हद तो तब हो गई जब मम्मी जी की चेन मिल नहीं रही थी, पूरे घर ने मुझे ही चोर बना दिया

और मुझे यहां आना पड़ा, मम्मी मुझे अब नहीं जाना उस घर में, मैं यहीं रहकर अपने लिए काम ढूंढ कर अपने खर्च खुद उठा लूंगी, आप या पापा के ऊपर बोझ नहीं बनूंगी, बस मुझे वहां वापस जाने को मत कहना और ना ही कभी उनकी शक्ल देखने के लिए बोलना, 

सविता जी:  बेटा! उन्होंने तुझे चोर कहा और तू यहां इस कलंक को लेकर चुपचाप बैठ गई? तेरे आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचती क्या? ऐसे कैसे छोड़ दूं उनको? तेरे पापा को आने दे, फिर बात करते हैं उनसे 

अनु:  नहीं नहीं मम्मी! मुझे कोई झंझट नहीं चाहिए, मुझे चोर का कलंक चलेगा, पर आप लोगों की शांति भंग नहीं करना चाहती, वैसे भी उनके चोर कहने से मैं चोर थोड़ी ही ना बन जाऊंगी? 

सविता जी:  पर तेरे पापा? वह ऐसे चुप थोड़े ही ना बैठेंगे? 

अनु:  आप उन्हें इतना मत बताना! बस कहना के अनुपम अच्छे मिज़ाज के नहीं है, मुझ पर हाथ भी उठाते हैं, अब मुझे वहां नहीं जाना 

कुछ दिन ऐसे ही बीते हैं फिर थोड़े दिनों बाद सविता जी कहती है, बेटा, तेरे ससुराल वाले यहां आ रहे हैं, उन्हें शायद अपनी गलती का एहसास हो गया है, तो उन्होंने तेरे पापा को फोन किया था और इसलिए वह तुझे लिवाने आ रहे हैं, बेटा एक मौके पर तो सबका अधिकार है, आखिर गलती इंसानों से ही होती है, तू भी माफ कर दे उन्हें 

अनु:  क्या? पर आप लोगों ने मुझसे क्यों नहीं पूछा? जलील मैं हुई हूं वहां पर, तो उन्हें माफ करना है या नहीं यह भी मैं ही तय करूंगी और मैंने तय कर लिया है मैं वहां नहीं जाऊंगी 

अनु यह सब कह ही रही होती है, तभी पीछे से उसके पापा अशोक जी आकर कहते हैं, फिर तू यहां भी नहीं रह सकती 

अनु हैरान होकर:   पापा आप अपनी ही बेटी को ऐसा कैसे बोल सकते हैं? सच ही कहते हैं लोग बेटियां अपने माता-पिता पर बोझ ही होती है 

अशोक जी:  सच कहा बेटा बोझ तो तू है,  तेरे लिए यह घर हमेशा से ही था, पर बड़े विश्वास के साथ में तुझे तेरे ससुराल भेजा था कि तू उस घर को भी अपना बना लेगी, जितने अत्याचार तूने उनके नाम लगाए हैं ना, उससे कई ज्यादा तो तू वहां अत्याचार करती आई है, पर यह तेरे भले ससुराल वालों ने कभी मुझे तुझ पर कोई कार्यवाही करने ही नहीं दिया,

हमेशा कहते रहे बच्ची है धीरे-धीरे सब सीख जाएगी, पर वह नहीं जानते हैं थे कि, वह तेरी गलतियों को नज़रअंदाज कर तुझे और भी बढ़ावा दे रहे हैं, तुझे क्या लगता है तू यहां क्यों आई और तू वहां क्या करती आई है हमें कुछ पता नहीं? यह तो दामाद जी की गुज़ारिश थी कि तुझे हम कुछ ना बोले, बेटा आज वह ज़माना है जहां लड़कियां ससुराल के जुल्म की शिकार हो रही है,

उनका साथ उनके अपने परिवार तक नहीं देते, वही तेरे जुल्म सहकर भी तेरे ससुराल वाले तेरी सिफारिश ही करते आए हैं और तू उन्हीं को बदनाम किया जा रही है, क्या कहा तूने अपनी मां से? तेरी सास ने तुझ पर चोरी का इल्जाम लगाया था, उल्टा तूने ही उन्हें अपने गहनों पर बुरी नज़र डालने के लिए कितना सुनाया था और तू दामाद जी को अलग रहने के लिए मजबूर भी कर रही थी,

जब वह नहीं माने तब तू यहां आई, सच में तेरी जैसी लड़की उस ससुराल के लायक ही नहीं, इसलिए मैंने उन्हें तुझे तलाक देने को कहा, इसलिए वह यहां आ रहे हैं, अब रहना अकेले, देखना कितने दिनों तक अच्छा लगता है,

सच ही कहा है किसी ने, जो चीज़ हमें आसानी से मिल जाती है, हम उसकी कद्र नहीं करते, तूने जो किया है उसके लिए तूने सिर्फ अपने ससुराल में ही नहीं हमारे साथ भी विश्वास की डोर तोड़ दी है और बिना विश्वास के हर रिश्ता भी मायने हो जाता है 

अनु सिर झुकाए खड़ी यह सारी बातें सुन रही थी और लगातार उसके आंसू बहे जा रहे थे और वह अशोक जी से माफी मांगती है, और कहती है पापा, आप मेरे ससुराल वालों से बात कीजिए ना, मुझे तलाक नहीं चाहिए,

मैं समझ नहीं पाई रिश्तो को कैसे सहेजना है? अपने ही घमंड में सब कुछ बर्बाद कर दिया, पर एक मौका तो हर किसी को मिलना चाहिए, अनुपम मेरी बात नहीं सुनेंगे, क्योंकि वह मुझसे काफी नाराज़ है, पर आपकी ज़रूर सुनेंगे, उनसे कहिए वह मुझे तलाक ना दे, मैं सुधर जाऊंगी  

तभी पीछे से अनुपम भी आ जाता है और अनु से कहता है, तो इतने दिनों में भी आप अपने पति को समझ नहीं पाई, अरे मुझे तलाक देना होता तो मैं कब का दे देता, पर मैं भी मजबूर था क्योंकि पत्नी के रूप में इन आंखों को तुम्हारे अलावा और कोई भायी ही नहीं,

हां पर अब वादा करना पड़ेगा कि आज जो विश्वास की डोर अब हम बांधेंगे वह मरते दम तक नहीं टूटेगी, अनुपम के इस बात से अनु के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है, वह अपने आंसू पोछते हुए थोड़ा शर्मा भी जाती है, गंभीर माहौल बड़ा खुशनुमा सा हो जाता है 

दोस्तों एक ज़माना था, जब औरतें ससुराल में सच में जुल्म सहकर भी अपना गुजारा करती थी और एक आज ज़माना है ससुराल में सारी सुख सुविधाए मिलने के बाद भी औरतें पता नहीं खुश क्यों नहीं रहती? ना तो वह घर को जोड़ पाती है

और ना खुद ही अंदर में वह खुश रह पाती है, ऐसे में वह दो-दो परिवारों की तकलीफ की वजह बन जाती है, दुनिया हमेशा से ससुराल वालों के अत्याचार देखता आया है,

इसलिए बहू के कही हुई हर एक बात सभी कोई मान लेते हैं, यहां पर अनु के माता-पिता का किरदार काफी अच्छा है, उन्होंने अपनी बेटी पर विश्वास न करके उसके ससुराल वालों से बात की और दोनों तरफ के बातों को सुनकर इतना कड़क निर्णय लिया और शायद यह आज ज़रूरी भी है 

धन्यवाद 

रोनिता कुंडु 

#विश्वास की डोर

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