आस्था और विश्वास – उषा वेंकटेसन : Moral Stories in Hindi

“बेटा, इस साल हमें गांव जाना है। मुन्ना तीन साल का हो जाएगा और हमें उसके पहले

मन्नत पूरी करनी है।” सुभद्रा ने बेटे को कहा।

“हाँ मम्मी, मुझे याद है। पूजा और यात्रा कब शुरू होगी? मैं एक हफ्ते की छुट्टी लेता हूं

और बुकिंग भी करता हूं।” उसके बेटे ने उत्तर दिया।

“हमें 25 जून तक गाँव पहुँचना है।”

“ठीक है मम्मी, मैं बुकिंग करता हूं। आप मामा को बता दीजिये।”

प्रणय की पत्नी सुपर्वा धीरे से पूछी, “मम्मीजी, क्या हमें होटल भी बुक करना चाहिए?”

“होटल? होटल की क्या जरूरत है? हमारा मकान तो इतना बड़ा है। अपने इस फ्लैट से तीन-

चार गुना बड़ा होगा।” सुभद्रा अपने मायके के घर के बारे में गर्व से बोली।

“हाँ माँ, मैंने देखा है ना। लेकिन बाथरूम बाहर है। अभी मुन्ना छोटा है तो hygiene …”

“नहीं बहु। डरो मत। घर पुराना है पर भैय्या ने उसे मॉडर्न बनाया है। बाथरूम और टॉयलेट

अब घर के अंदर ही हैं। पिछले 50 साल में कितने बच्चे वहां पैदा और बड़े हुए हैं।”

प्रणय ने अपनी पत्नी को आश्वासन दिया और टिकट बुक करने कमरे में चला गया।

प्रणय और सुपर्वा की शादी के 8-9 साल तक उन्हें संतान नहीं थी। बहुत से डॉक्टरों और

इलाज की कोशिश की, लेकिन वह गर्भवती नहीं हो सकी। हताश होकर वह परंपराओं और

देवताओं में विश्वास करने लगी।

सुभद्रा और उसके परिवार भी देवी-देवताओं पर विश्वास रखते थे, तो सभी ने सुपर्वा का साथ

दिया। कई देवी-देवताओं से मन्नत मांगी, मगर फिर भी वह गर्भवती नहीं बन सकी।

एक दिन, सुपर्वा निराश अपने कमरे में बैठकर रो रही थी जब उसकी सास वहां आई।

सहलाते हुए कहा, “बेटी, मेरी एक बात मानो। तुम दोनों ने कई मन्नत मांगी हैं, तो एक

और मेरे मायके के जगन्नाथ जी से भी मांग लो। हमारे गांव के जगन्नाथ जी पर मुझे

विश्वास है और वे जरूर हमारी मनोकामना पूरी करेंगे।”

“मम्मीजी, मैं थक गई हूं। 8-9 साल से मैंने सब ट्रीटमेंट किया, मंदिर, गुरुद्वारे में भी

मन्नत मांगी, मगर कुछ नहीं हुआ,” कहते हुए वह रोने लगी।

“नहीं बेटी, मत रो। मुझे कल सपने में हमारे जगन्नाथ जी का दर्शन हुआ। मेरी समझ से

वह एक इशारा है। वही बताने आई थी।”

“एक बार प्लीज मेरी बात मान लो। हम जगन्नाथ जी की प्रार्थना करते हैं। मुझे विश्वास है,

वह हमारी प्रार्थना जरूर सुनेंगे।”

“जैसे आप ठीक समझते हो,” सुपर्वा रोते हुए बोली।

“मंदिर के रथ यात्रा के समय एक विशेष पूजा होती है। अगर हम उस पूजा में प्रार्थना करेंगे,

तो मुझे पूरा विश्वास है कि जगन्नाथ जी हमारी प्रार्थना जरूर पूरी करेंगे। मगर एक और

बात। प्रणय और तुमको वह मन्नत जरूर पूरी करनी है। यह बात मत भूलना।”

सुपर्वा ने चुपके से सिर हिलाया।

“मंदिर की प्रथा यह है कि बच्चा पैदा होने के बाद ….”

“मम्मी जी, आप मन्नत मांगिए। हम जो भी हैं, पूरा करेंगे…” सुपर्वा ने कहा।

सुभद्रा अपनी आस्था से गांव गई और मंदिर में प्रार्थना की।

“हमारी प्रार्थना को स्वीकार कीजिए प्रभु! हम बच्चे को लेकर यहाँ की रस्मों के अनुसार पूजा

करेंगे। आप सुपर्वा की गोद जल्दी भर दीजिए।”

इस बात को चार साल हो गए।

जगन्नाथ जी की कृपा से कुछ ही महीनों बाद सुपर्वा गर्भवती हुई और एक सुंदर लड़के को

जन्म दिया।

सभी खुश थे। पूरा घर आनंद से नाच उठा। बच्चे का नाम प्रियंम रखा और प्यार से मुन्ना

कहकर पुकारते थे।

जब मुन्ना 6 महीने का था, तो सुपर्वा ने कहा, “मम्मीजी, प्रणय कह रहा है कि हमने जिन

मंदिरों में मन्नत मांगी है, उन सभी मंदिरों में मन्नत पूरी करते हैं।”

“यह बहुत अच्छा सोचा है,” सुभद्रा ने कहा।

“आपने गांव के मंदिर में मन्नत मांगी है न? तो उसे भी पूरा करना है। आप वह भी बता

दीजिये।” सुपर्वा बोली।

“वह तो रथ यात्रा के समय करना है और मुन्ना तीन साल का होने से पहले करना है। तो

अभी बहुत टाइम है। आप पहले बाकी की मन्नतें पूरी करो और अगले साल हम गांव

जाएंगे।

एक-डेढ़ साल में परिवार ने जितनी मन्नतें मांगी थीं, सब को पूरा किया।

“इस साल जब रथ यात्रा शुरू होगी, हम लोग गांव जाएंगे,” सुभद्रा ने कहा था।

लेकिन उस समय, सुपर्वा की मम्मी की तबियत बहुत खराब थी और कुछ दिनों में गुजर

गई।

इन परिस्थितियों में सुभद्रा ने रथ यात्रा के बारे में नहीं बोला।

उसने जगन्नाथ जी से प्रार्थना की और कहा कि अगले साल रथ यात्रा पर वह सभी मन्नत

पूरी करने जरूर आएंगे।

पूरा परिवार गांव पहुंचा।

सुभद्रा के भाई और उनके परिवार ने उनका स्वागत किया।

“मम्मी, हमें क्या करना है? कुछ ऑनलाइन बुकिंग है क्या? ताकि हम जल्दी दर्शन करके

आ सकें।” प्रणय ने पूछा।

“मामा ने सब अरेंजमेंट किया है। सुबह जल्दी पहुँचना है। मुन्ना को नए कपड़े पहनाओ और

आप दोनों भी।”

अगले दिन सभी मंदिर पहुंचे जहां से रथ यात्रा शुरू हो रही थी। बहुत भीड़ थी।

इतने में प्रणय के मामा ने उन लोगों को आगे बुलाया, जहां एक दंपति छोटे शिशु को लेकर

खड़े थे।

“लगता है इनको भी हमारी तरह मन्नत पूरी करनी है,” सुपर्वा ने सोचा। वह अपने बेटे का

हाथ पकड़कर खड़ी हो गई।

पूजा और रस्मों के बाद रथ दो कदम आगे गया। तब पुजारी ने पहले खड़े हुए दंपति को

आगे बुलाया। उस औरत ने अपने बच्चे को रथ के आगे रखा और साइड में खड़ी हो गई।

लोग “जगन्नाथ जी की जय” गूंजने लगे और रथ को आगे खींचने लगे।

सुपर्वा जोर से चिल्लाई, “यह क्या हो रहा है! बच्चा मर जाएगा!”

सुभद्रा की तरफ देखकर उसने पूछा, “मम्मीजी, क्या मुन्ना…” वह आगे न बोल पाई।

सुभद्रा, “डरो मत बेटी, जगन्नाथ जी की कृपा से बच्चे को कुछ नहीं होगा। देखो, उस मां ने

भी तो अपने छोटे बच्चे को रखा है ना।”

लेकिन सुपर्वा डर से भयभीत चिल्लाने लगी।

“नहीं, मैं मुन्ना को नहीं रखूंगी।”

सुपर्वा, मुन्ना को खींचकर अपने गोद में ले ली और भीड़ में से भागने लगी।

इधर प्रणय भी उस प्रथा को देखकर सकपका गया। वह अपनी मम्मी की ओर देखा और

कुछ कहना चाहा, लेकिन भीड़ और भक्तों की आवाज में कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।

मम्मी के पास जाकर चिल्लाया, “मम्मी, यह कैसी रस्म है? कोई कैसे बच्चे को रथ के नीचे

रख सकता है? आपने हमें पहले क्यों नहीं बताया? मैं कभी नहीं मानता।”

रथ आगे बढ़ा और शिशु की माँ ने अपने बच्चे को गोद में ले लिया।

“जय जगन्नाथ! जय पुरुषोत्तम!” की गूंज उठी और भक्तों की भीड़ आगे उमड़कर आई।

पुरोहित सुभद्रा को इशारा कर रहे थे कि उसका परिवार आगे जाए, लेकिन सुपर्वा, तो कहीं

दिख ही नहीं थी। वह भीड़ में भाग गई। प्रणव भी उन्हें ढूंढते भागने लगा।

भक्तों की भीड़ उमड़कर आगे जा रही थी। सुभद्रा को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या

करे।

अचानक लोग एकदम शांत हो गए।

पुरोहित कुछ बोल रहे थे। इतने में एक छोटा बालक रथ की तरफ भागा और सामने खड़ा हो

गया।

मुन्ना को देख, सुभद्रा चिल्लाई और प्रणव को बुलाते रथ की तरफ भागी।

मुन्ना ऊपर अलंकृत भगवान को देखकर नमस्ते किया। पुरोहित और लोग उस छोटे से भक्त

को देखकर प्रसन्न हुए और बोले, “बेटा, पीछे हटो।”

मुन्ना चुपचाप लेट गया।

डर से प्रणय ने आँखें बंद कर लीं।

सुपर्वा मुन्ना को ढूंढते आगे आई और अपने बच्चे को रथ के आगे लेटे देख, दौड़कर वह भी

रथ के पास पहुंची और प्रणय को पकड़कर चिल्लाने लगी।

सुभद्रा काँप रही थी पर उसे भगवान पर विश्वास था। वह मन ही मन दुआ मांगने लगी।

रथ आगे निकला। मुन्ना रथ के पीछे से निकला और “मम्मी” पुकारता सुपर्वा की ओर दौड़ा।

मुन्ना की आवाज सुनकर, सुपर्वा अपने बेटे को आँखों के सामने देख, उसे गले से लगाया।

भीड़ को पार कर सभी घर पहुंचे।

सभकी धड़कन अभी भी तेज थी लेकिन साथ में खुशी और राहत भी थी।

जगन्नाथ जी ने खुद अपनी मन्नत मुन्ना से पूरी करवा ली।”

“मुन्ना, आप क्यों रथ के आगे गए? डर नहीं लगा?” मामा ने पूछा।

“मुझे भगवान नहीं दिख रहे थे, तो देखने के लिए आगे गया।” मुन्ना अपनी तोतली भाषा में

बोला।

“तो फिर नीचे क्यों लेट गए? किसने आपको ऐसा करने को कहा?”

“मैंने एक छोटे बच्चे को लेटा देखा, तो मैं भी लेट गया।”

“मुन्ना, आप बहुत भाग्यशाली हो और धन्य भी।”

“जय जगन्नाथ!” सुभद्रा और परिवार के बड़े-बुजुर्गों ने कहा।

मैं तो मर ही गई,” सुपर्वा ने कहा।

“मैंने ऐसी प्रथा कभी नहीं सुनी।”

मैं भी,” प्रणय बोला। “पता होता तो, कभी नहीं मानता।”

“बहू, मैंने तुम्हें बताया था। आपको याद नहीं?” सुभद्रा ने पूछा।

“चलो, अंत भला तो सब भला!”

“मम्मी, आप बिलकुल शांत थीं। क्या आपको थोड़ा भी डर नहीं लगा? अगर मुन्ना को कुछ

हो जाता तो?” प्रणय ने पूछा।

“किस बात का डर बेटा? जगन्नाथ जी ने हमें मुन्ना जैसा रत्न दिया है, तो मुझे उन पर

पूरा विश्वास है।”

“फिर भी मम्मी। हम भी भगवान को मानते हैं, पर मेरे बच्चे पर ऐसे रस्में मैं कभी नहीं

करूंगा।”

“जगन्नाथ जी पर मेरी आस्था और विश्वास दृढ़ है और इसमें संदेश का प्रश्न नहीं आता।”

लेखिका उषा वेंकटेसन

#विश्वास की डोर

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