सच्चा प्यार – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

  मंजरी अपने ही ख्यालों में बेखबर स्कूटी चलाए जा रही थी कि लाल बती को देख जैसे उसकी तद्रां टूटी तो एकदम से उसने ब्रेक लगाई, वो तो बचाव हो गया वरना तो आगे वाली गाड़ी में लग जाती।मंजरी को समझ नहीं आ रहा था कि उत्सव आजकल अजीब सा बर्ताव क्यूं कर रहा है। 

    दो साल से दोनों एक दूसरे को जानते है, एक ही कालिज में पढ़ाते है, उत्सव उससे सीनीयर है, मंजरी की नौकरी अभी कानटरैक्ट बेस पर ही है, परतुं उसे उम्मीद है कि वो पक्की हो जाएगी। औपचारिक बातों से आगे बढ़कर कब उनमें प्यार हो गया, उन्हें स्वंय भी नहीं पता चला। 

        शहर के जाने माने कालिज में प्रवक्ता थे और दोनों ही मैच्योर भी थे, कोई कच्ची उम्र वाला प्यार नहीं, जाति भी एक ही थी तो कोई कारण नहीं था कि घर वाले इन्कार कर दे। दोनों की आर्थिक स्थिति भी समान ही थी। बचकाना हरकतों से दूर उन्का प्यार सच्चा और परिपक्व था। उत्सव के परिवार में मां के इलावा एक बड़ी बहन

  थी, पिताजी नहीं थे।इतना ही मालूम था मंजरी को। 

    मंजरी की पांच साल छोटी बहन थी, जो किसी और कालिज में पढ़ रही थी। मंजरी नौकरी पक्की होने के बाद शादी करना चाहती थी। और उत्सव भी पहले बहन की शादी करना चाहता था, दोनों को शादी की कोई जल्दी नहीं थी।

   सब कुछ बढ़िया चल रहा था, लगभग महीना पहले की बात है, उत्सव ने दो दिन की छुट्टी ली, और उसके बाद जब वो कालिज आया तो मंजरी को उसका बर्ताव कुछ बदला सा लगा। स्पष्ट तो नहीं लेकिन कुछ तो था। दोस्ती इतनी गहरी थी कि बिना कुछ कहे ही दोनों हर बात समझ जाते थे।

  •       और तो और मंजरी को उत्सव कुछ परेशान भी लगा और चेहरे पर भी फीकी सी मुस्कान।मंजरी जितना उसके पास आने की कोशिश करती वो कोई न कोई बहाना बनाकर वहां से दूर हो जाता।  कालिज के वार्षिक उत्सव में दोनों बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते। बच्चों की तैयारी के साथ साथ दोनों की चुहलबाजी भी चलती रहती।परंतु इस बार उत्सव ने व्यस्तता का बहाना बनाकर प्रिंसिपल से क्षमा मांग ली कि वो ज्यादा समय नहीं दे पाएगा।

       सबको यही था कि दोनों अच्छे दोस्त है और आजकल कोई किसी की परवाह भी नहीं करता। मंजरी उसको पिछले दो इतवारों में अलग से मिलने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वो किसी न किसी बहाने से टाल गया। 

      फोन पर भी छोटी बात होती और मैसेज का जवाब भी नपातुला होता। पहले भी वो टीनएजर की तरह मोबाईल पर नहीं थे लेकिन एक दूसरे की दिनचर्या की या घर परिवार की कुछ बातें सांझा करते थे।

      एक दिन मंजरी को सामने से आकर उसके दिल की बात जानने का मौका मिल गया। घर जाने के लिए वो बाईक स्टार्ट करने ही वाला था कि मंजरी बाईक के पीछे बैठते हुए बोली, चलो क्लासिक होटल में चलें।उसे देखकर उत्सव सकपका सा गया और बोला, नहीं आज नहीं फिर कभी, और तुम्हारी स्कूटी भी तो है। 

    “ स्कूटी को यहीं रहने दो, कल ले जाऊंगी, चलो तुम” मंजरी आराम से दोनों और पैर रख कर बैठते हुए बोली। 

“ नहीं मंजरी, आज नहीं, मां घर पर इंतजार कर रही होगी, डा़ से अपाईटमैंट है, उन्का चैक अप है”।

    उत्सव के चेहरे से साफ लग रहा था कि वो झूठ बोल रहा है, लेकिन अब वो क्या कहती। वो चुपचाप बिना कुछ कहे उतर गई और अपनी स्कूटी की तरफ जाने लगी। उसका दिल कह रहा था कि मां की बीमारी की बात उसे टालने के लिए है, बात कुछ और है। उसे विश्वास की डोर टूटती सी लगने लगी।

      उत्सव जैसा पढ़ा लिखा, नेकदिल हर प्रकार से  उच्च शख्सियत वाला इंसान कभी धोखेबाज नहीं हो सकता, और फिर सच्चाई वो उसके मुंह से सुनना चाहती थी। अब कालिज में उनकी बातचीत काम तक ही सीमित रह गई। 

   कुछ समय बाद  उसका शक यकीन में बदल गया कि कुछ तो बात है, अच्छे से पता करना चाहिए।उसे उत्सव के घर का पता था परतुं कभी वो गई नहीं थी। अगले दिन उसने कालिज से दोपहर के बाद छुट्टी ली और उसके घर पहुंच गई। उत्सव उस समय कालिज में था। 

      उत्सव की मां ने दरवाजा खोला, उसने कहा कि वो उत्सव से किसी सैमीनार में मिली थी, आज इस शहर में आई तो सोचा उससे मिलती चलूं। फोन तो किया था परतुं बंद जा रहा था।

    उसकी मां ने उसका स्वागत करते हुए कहा कि शायद क्लास ले रहा हो, तब उसका फोन आफ रहता है। पानी वगैरह दे कर उसने कहा, बैठो, मैं चाय लाती हूं, शाम तक उत्सव आ जाएगा। मंजरी को उत्सव से क्या, वो तो कुछ और ही जानने आई थी। जल्दी ही दोनों घुलमिल गई, तभी उत्सव की बहन आ गई, मंजरी ने नोटिस किया कि वो ठीक से चल नहीं पा रही। 

    उत्सव की मां ने परिचय कराते हुए कहा कि ये उत्सव की बहन रोहिणी है, एम. एस. सी. कर चुकी है। किसी कंपनी के लिए घर से ही काम करती है। रोहिणी अत्यतं सुदंर, नाजुक और बहुत प्यारी लड़की थी। उसकी मां ने बताया कि बचपन में ही पोलियो की वजह से टांग में कुछ नुक्स हो गया। 

          उत्सव के घर आने का समय नजदीक आता जा रहा था, अभी तक मंजरी कुछ भी जान नहीं पाई थी। आत्मीत्यता के चलते उत्सव की मां के मुहँ से निकल गया कि जल्दी ही रोहिणी की शादी होने वाली है, और फिर उसके अगले हफ्ते इसकी ननद से उत्सव की भी शादी होगी। वो जरूर आए।अब मंजरी का माथा ठनका। 

     हां बोलकर और बधाई देकर वो जल्दी से वापिस आ गई, क्योंकि उत्सव के आने का समय हो गया था। घर पहुंचने पर मां ने उसे सब बताया तो वो जान गया कि मंजरी आई थी। रोहिणी को कुछ अजीब सा लगा कि मंजरी आई तो उत्सव से मिलने और उसके आने का जब समय हुआ तो वो उठ कर चल दी।

“ उत्सव, सच बताना , ये मंजरी कौन है, कसम है मेरी , अगर झूठ बोला तो”, रोहिणी ने पूछा।

बड़ी बहन के आगे उत्सव झूठ न बोल सका। उसने बता दिया कि वो उसके कालिज में ही प्रवक्ता है और दोनों एक दूसरे से प्यार करते है।

   ओह, रोहिणी समझ चुकी थी कि उसकी शादी करवाने के लिए भाई अपने प्यार की कुर्बानी देने जा रहा था।उसकी किसी रिशतेदार ने रोहिणी की शादी रमन से और उत्सव की रमन के चाचा की बेटी गीतांजली से करवाने की बात चला रखी थी।

     रोहिणी पैतींस की होने वाली थी, लेकिन पांव में नुक्स के कारण कहीं शादी तय नहीं हो पा रही थी, अब वो समझ गई कि रमन क्यूं मान गया, गीतांजली देखने में ठीक सी थी और ज्यादा पढ़ी लिखी भी नहीं थी। तब उत्सव ने कहा था कि उसे लड़की पंसद है , नौकरी नहीं करवानी उसे।घर बार ठीक था तो मां और रोहिणी ने भी एतराज नहीं किया, लेकिन अभी कोई रस्म वगैरह नहीं हुई थीं 

    अगले दिन उत्सव कालिज में मंजरी से आंखे नहीं मिला पा रहा था, लेकिन मंजरी ने उससे किसी तरह अकेले में बुला ही लिया। अब सब क्लीयर हो गया। मंजरी ने कहा” उत्सव, तुम मुझे एक बार अपनी मजबूरी तो बताते, क्या हमारे विश्वास की डोर इतनी कच्ची थी”। जिंदगी में हमसफर न बने तो क्या, दोस्त बन कर तो रह सकते है।  

   “ मुझे माफ कर दो मंजरी, मैं अपना वायदा न निभा सका, बड़ी बहन घर पर बैठी हो तो मैं शादी कैसे कर सकता हूं, और मैनें कभी तुम्हें अपनी बहन की स्थिति के बारे में बताया नहीं। दीदी बहुत ही अच्छे स्वभाव की, पढ़ी लिखी और कमाती भी है, लेकिन पैर के कारण कहीं बात बन नहीं पाई। अब जब यहां सब ठीक लगा तो उन्की और से शर्त थी कि मैं उसकी कज़न से शादी करूं। बहन की खुशी मेरे लिए सबसे पहले है। बहन ये सब नहीं जानती और न ही कभी मैनें तुम्हारे बारे में बताया, नहीं तो उसने कभी भी रिश्ते के लिए हां नहीं करनी थी।अब जब सब पता चल गया तो न जाने वो क्या कहेगी”।

      और वही हुआ जिसका उत्सव को आभास था। रोहिणी ने इस शर्तो वाली शादी से और भाई की खुशियां छीन कर शादी करने से साफ मना कर दिया।उसने सपष्ट कहा कि उसे उस जगह  शादी बिल्कुल नहीं करनी और ऐसी मानसिकता वाले लोग आगे चल कर न जाने क्या करे।किस्मत में होगा तो कोई और अच्छा रिश्ता मिल जाएगा।  

   अगले दिन ही रोहिणी और उसकी ममी मंजरी के घर शगुन लेकर उसका हाथ मांगने पहुँच गई और जल्द ही शहनाईयां गूंज उठी। सच्चे प्यार और विश्वास की डोर कभी नहीं टूटती।

वाक्य- विश्वास की डोर

विमला गुगलानी

चंडीगढ़

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