डिजिटल अंगारे – डॉ० मनीषा भारद्वाज : Moral Stories in Hindi

आज वह स्क्रीन से नज़रें नहीं हटा पा रही थी। नेहा के फोन की नोटिफिकेशन बार धधक रहा था – एक के बाद एक टिप्पणियाँ, शेयर, टैग। सब एक ही लिंक की ओर इशारा करते थे – उसके खुद के डिज़ाइन स्टूडियो के आधिकारिक इंस्टाग्राम पेज पर पोस्ट की गई एक वीडियो रील। रील में एक उग्र आवाज़ बुलंद थी,

जो नेहा के नवीनतम कपड़ों के संग्रह को “नकलची”, “बेसुरा” और “मूल विचारों की कब्रगाह” बता रही थी। शब्द कटाक्ष से भरे थे, हर वाक्य में जहर घोला हुआ था। “असली डिज़ाइनर तो दूसरे हैं, ये तो बस चमकती मछली है!” वीडियो का अंत ऐसे तीखे व्यंग्य से होता था, जिससे नेहा के कानों तक गर्मी पहुँचने लगी। यह सीधा हमला था, “अंगारे उगलने” का आधुनिक डिजिटल रूप।

आक्रमणकारी? राहुल। उसका ही पूर्व सहयोगी, जिसके साथ कभी कॉलेज की बेंच साझा की थी। प्रतिस्पर्धा की आग में झुलसा हुआ राहुल, जिसकी अपनी क्रिएटिविटी कहीं रास्ते में ही दम तोड़ गई थी। नेहा की बढ़ती लोकप्रियता और उसके काम की सराहना उसके लिए जलते अंगारों की तरह थी। आज, सोशल मीडिया की गुमनामी और तात्कालिक पहुँच ने उसे उन अंगारों को उगलने का सहज मंच दे दिया था।

पहला झटका भावनात्मक था। नेहा का हाथ काँप रहा था। वह टिप्पणियाँ पढ़ती गई – “ओवररेटेड!”, “सिर्फ़ लुक्स पर टिकी है!”, “देखो कैसे फ़ेल होगी!” हर शब्द एक छुरे की तरह चुभता। उसकी सालों की मेहनत, रातों की नींद हराम करके बनाए गए स्केच, फैब्रिक के नमूनों के लिए की गई दौड़… सब कुछ उस एक वायरल वीडियो के आगे धूल चाटते नज़र आ रहे थे।

उसके फोन की घंटी बजी – एक क्लाइंट। नेहा का दिल धक से रह गया। क्या वह भी यही देखकर कॉल कर रहा है? कैंसिल करने के लिए? उसने कॉल रिसीव नहीं किया। लज्जा और क्रोध का एक विचित्र मिश्रण उसके गले में एक गांठ बन गया।

अगले कुछ घंटे नर्क बन गए। स्टूडियो का फोन लगातार बजता रहा। कुछ सहानुभूति देने वाले, कुछ उत्सुकता से पूछने वाले, और कुछ ऐसे भी जो सिर्फ़ गपशप का हिस्सा बनना चाहते थे। टीम के सदस्यों के चेहरे पर चिंता और अनिश्चितता साफ़ झलक रही थी।

नेहा खुद को एक मछली की तरह महसूस कर रही थी, जिसे सोशल मीडिया के काँच के एक्वेरियम में बंद कर दिया गया हो और बाहर से कोई लगातार उस पर पत्थर फेंक रहा हो। राहुल के “उगले हुए अंगारे” सचमुच उसके आत्मविश्वास और काम को जला रहे थे।

फिर, अचानक, उसकी नज़र अपनी ओल्ड स्केचबुक पर पड़ी, जो उसके डेस्क पर पड़ी थी। उसमें वही डिज़ाइन थे जिन्हें राहुल ने नकल बताया था – लेकिन उन पर दिनांक थे, राहुल के प्रोजेक्ट से महीनों पहले के। एक स्पार्क नेहा के मन में कौंधी। भावनाओं की आंधी में, उसने तथ्यों को भूला दिया था। यह उसका अपना काम था, उसका खून-पसीना।

इस बार नेहा ने पलटवार करने का तरीका चुना। “अंगारे उगलने” के जवाब में “अंगारे उगलना” आसान था। गुस्से में एक जवाबी वीडियो बना देना, राहुल को उतनी ही कड़वाहट से जवाब देना… लेकिन क्या वह वाकई उसी स्तर पर उतरना चाहती थी? क्या इससे आग बुझेगी, या और भड़केगी?

उसने गहरी सांस ली। सचाई हीरा है, और हीरा कभी नहीं जलता। उसने अपनी टीम को इकट्ठा किया। “हम जवाब देंगे,” उसने दृढ़ता से कहा, “लेकिन हमारे तरीके से।”

उन्होंने एक साधारण, सुस्पष्ट वीडियो बनाया। नाटकीय संगीत नहीं, चिल्लाती हुई आवाज़ नहीं। नेहा शांत भाव से कैमरे के सामने बैठी। उसने अपनी स्केचबुक के पन्ने दिखाए, जिन पर डिज़ाइन और तारीखें स्पष्ट थीं।

उसने अपने प्रेरणा स्रोतों के बारे में बात की, जो क्लासिक आर्ट और प्रकृति थे, न कि राहुल का काम। उसने राहुल पर व्यक्तिगत हमला नहीं किया, बल्कि सिर्फ़ अपने क्रिएटिव प्रोसेस को प्रामाणिकता से सामने रखा। वीडियो का अंत उसने एक शांत प्रश्न के साथ किया: “क्रिएटिविटी सहयोग से बढ़ती है, विषैली आलोचना से नहीं। हम किस भविष्य का निर्माण करना चाहते हैं?”

जवाबी वीडियो केवल तथ्यपरक नहीं था, बल्कि भावपूर्ण भी था। उसमें एक डिज़ाइनर की ईमानदार मेहनत और उसके सपनों को चोट पहुँचाने की पीड़ा झलक रही थी। उसका संदर्भ स्पष्ट था।

प्रभाव तात्कालिक था। जो लोग राहुल के अंगारों से भ्रमित हुए थे, उन्हें सच्चाई दिखाई दी। नेहा के ग्राहकों, सहयोगियों और यहाँ तक कि कई प्रभावशाली डिज़ाइनरों ने भी उसके पक्ष में आवाज़ उठाई। सच्चाई की तरह सादगी भी अपना असर दिखाती है।

राहुल का वीडियो, जिसने क्षणिक लपटें भड़काई थीं, धीरे-धीरे दम तोड़ने लगा। उसकी कटु टिप्पणियाँ अब खोखली और दुर्भावनापूर्ण लगने लगीं। सच्चाई के सामने उसके उगले अंगारे ठंडे पड़ गए। नेहा के स्टूडियो का फोन फिर बजने लगा – इस बार नए ऑर्डर और सहयोग के प्रस्तावों के लिए।

 अंत खुशहाल था, लेकिन नेहा के मन में एक गहरा सबक बस गया था। आज के डिजिटल युग में,अंगारे उगलना पहले से कहीं आसान है। एक क्लिक, और विषैले शब्द लाखों तक पहुँच जाते हैं, जो किसी की प्रतिष्ठा और मनोबल को जलाकर राख कर सकते हैं। लेकिन सच्चाई, धैर्य और गरिमा के साथ दिया गया जवाब, उन अंगारों को बुझाने का सबसे प्रभावी हथियार है।

आग से आग नहीं बुझती, पानी और समझदारी से बुझती है। क्रिएटिविटी का मैदान सिर्फ़ डिज़ाइनों का नहीं, चरित्र की परीक्षा का भी होता है। और नेहा ने सीख लिया था कि अपनी रचनात्मक आत्मा की रक्षा करने के लिए, कभी-कभी अंगारे उगलने वालों का सामना सच्चाई की ठंडक से ही करना पड़ता है।

डॉ० मनीषा भारद्वाज

व्याड़ा (पालमपुर)

हिमाचल प्रदेश

Dr Manisha Bhardwaj 

# मुहावरा प्रतियोगिता “अंगारे उगलना”

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