इसका नाम वक्त है– कब बदल जाए– कुछ नही मालूम। हँसते खेलते घर का माहौल अनायास ही मातम में बदल जाता है।ऐसा कुछ घट जाता है जो कि इंसान की कल्पना से बहुत परे होता है। ऐसी अप्रत्याशित घटनायें घट जाती हैं जिन्हें सोच कर भी मन हिल जाता है।
कभी ना कभी हर किसी के जीवन में बुरा वक्त आ सकता है– इसलिये कभी भी किसी का उपहास ना करे।
मेरी एक अंतरंग सहेली थी– कुसुम– साथ साथ पढ़े– मौज मस्ती करी– फिर शादियाँ होगई अच्छे घरानों में। कुसुम बहुत कुशाग्र बुद्धि थी।शुरू से ही क्लास में प्रथम आती।फिर उसने दसवीं में यू पी बोर्ड में आठवीं पोजीशन प्राप्त की।बी.ए में आगरा यूनीवर्सिटी में टॉप किया।हमारी और दोस्त तो जॉब करने लगीं किंतु वो प्रतिभासंपन्न होते हुए भी जॉब नही कर पाई। उसके पति बहुत अच्छी पोजीशन में थे।सबकुछ ठीक चल रहा था। सब बच्चों की शादियाँ होगई– नाती पोतों से घर गुलजार होगया।बहुत खुश थी कुसुम अपने प्रेमी पति के साथ। रिटायर्मेंट के बाद वो अपने पति के साथ खूब घूमी– समझ लीजिए पूरा भारत भ्रमण ही कर लिया।
अचानक ही कोरोना जैसी महामारी आगई और उसके पति अकस्मात ही कोरोना में चलेगए। कुसुम का तो हाल बेहाल होगया– क्या करे अकेली–वो टूट गई लेकिन उसके परिवार ने उसका बहुत साथ दिया।उसको लिखने का बड़ा शौक था लेकिन यदा कदा लिख पाती थी।अब अकेले तो समय जैसे काटने को दौड़ने लगा तो उसकी बेटी और लोगों ने उसको लिखने के लिए प्रेरित किया।
अब धीरे धीरे कुसुम अपने को संयमित कर लिखने लगी।पहले तो उसने अपने पति की यादों को ही कविता का रूप देना शुरु किया।और उसकी एक पुस्तक छ्प गई जिसपर उसको चंद्र ज्योति सम्मान मिला। और अब तो लिखने का सिलसिला बढ़ता ही गया।वो फेसबुक के विभिन्न मंचों पर लिखने लगी।उसकी अपनी एक अलग पहचान बन गई। प्रतिदिन की प्रतियोगिताओं में कुसुम हिस्सा लेने लगी।कभी कविताऐ लिखती,कभी कहानियाँ, कभी संस्मरण– रोज कुछ ना कुछ लिखती।
उसकी रचनायें पुरस्कृत होने लगीं।उसका जो लिखने का शौक कम होगया था — उसके पति की मृत्यु के बाद वो पुन: लेखन कार्य में व्यस्त होगई ।उसकी सात आठ पुस्तकें प्रकाशित होगई। उसका बुरा वक्त उसको जीने की वजह दे गया।उसके जीवन को नई दिशा मिल गई। यदि कुसुम लेखन कार्य में प्रवृत्त ना होती तो टूट कर बिखर जाती और शायद अपने हमसफर को खोने के बाद अपने को संभाल भी नही पाती।बच्चे सब अपने अपने कार्यों में व्यस्त–
किसके पास इतना समय होता है कि हर समय आपके पास बैठे –बात करे– आपका रोना सुने।लेकिन ईश्वर भी तो कुछ सोच कर बैठता है । हमारा बुरा वक्त हमें जीवन में नई दिशा दे जाता है और जब हम उस दिशा में अग्रसर हो जाते हैं तो हमारा मार्ग प्रशस्त होने लगता है।अब हम स्वत: ही उस मार्ग पर चलते चले जाते हैं– हर रोज नयी राह खुलती जाती है हमारे सामने और हम बस सफलता की राह पर चलते चले जाते हैं।जीवन के क्षण अब उतने दूभर नही लगते– हम अपनी यादों का स्वर्णिम सबेरा देखने लगते हैं। वो बुरा और बहुत बुरा वक्त भी जीने की प्रेरणा दे जाता है।।
लेखिका : डॉ आभा माहेश्वरी