अकेलेपन का दंश – लतिका पल्लवी : Moral Stories in Hindi

रेलगाड़ी अपनी पूरी रफ्तार मे चल रही थी। हौकरो की आवाज इसतरह से गूंज रही थी जैसे उनका इंजन की आवाज से कोई मुकावला हो और उन्हें उससे तेज आवाज मे बोलकर अपना सामना बेचना हो। एक समानवाला अभी अपना सामान बेच ही रहा होता कि दूसरा अपना सामान लेकर आ जाता। बच्चो को तो खूब मज़ा आ रहा था उनके लिए तो सफर मे समय काटने का सबसे अच्छा साधन यही होता है कि जो सामान आए उसे खरीदना है। सारे बच्चे जिद करके सामान खरीदवा रहे थे।

परन्तु उन सब से अलग रत्ना गुमसुम सी बैठी थी जिद करना तो दूर कि बात थी अपनी माँ के पूछने पर भी वह कुछ भी लेने से मना कर दें रही थी।ऐसा नहीं है कि उसे खिलौना या खाना पसंद नही है वह भी इन चीजों के लिए जिद करती है पर आज वह अपने नाना नानी के घर से लौट रही थी इसलिए उदास थी। उसका किसी भी चीज मे मन नहीं लग रहा था। जब भी वह ननिहाल से आती  दो चार दिन तक उसका यही रवैया रहता। फिर जिंदगी पटरी पर लौट आती।रत्ना बच्ची ही थी तभी उसके  दादा – दादी गुजर गए थे। 

उसके अपने भाई बहन भी नहीं थे। उसके चाचा बुआ भी नहीं थे तो चचेरे, फुफेरे भाई बहन के होने का भी सवाल नही था।  वही उसके ननिहाल मे संयुक्त परिवार था। उसके दो मामा और एक मौसी थे। उसकी माँ के चचेरे, ममेरे और फुफेरे  भाई बहन भी थे  शादी विवाह मे खूब रौनक रहती थी। और यहाँ अपने घर मे रत्ना को अकेले रहना होता था,यही उसके दुख का कारण था। रत्ना के ननिहाल मे संयुक्त परिवार होने के कारण उसे संयुक्त परिवार बहुत ही पसंद था। समय अपनी गति से चलता रहा और रत्ना विवाह के लायक उम्र की हो गईं।

एक दिन उसके मामा उसके लिए एक रिश्ता लेकर आए। उन्होंने उसके पापा से कहा – मेहमान जी हमारी रत्ना ने बी ए, बी एड कर लिया है।अब वह विवाह के लायक हो गई है आप कहे तो मेरी जानकारी मे एक लड़का है उससे रत्ना की बात चलाऊ। लड़का के पिता की कपड़े की दुकान है लड़का दो भाई और एक बहन है लड़का इंजीनियर है सरकारी नौकरी मे है।अपने शहर मे ही उसकी पोस्टिंग है। आपको पसंद हो तो मै आगे बढू। रत्ना के पापा को संयुक्त परिवार मे लड़की की शादी करने पर आपत्ति थी। उन्होंने कहा भैया मै अपनी रत्ना की शादी संयुक्त परिवार मे कैसे कर सकता हूँ?

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आपको तो पता ही है मेरा एकल परिवार है वह संयुक्त परिवार मे कैसे रह पाएगी। और आप कह रहे है लड़का दो भाई है और लड़का के पापा भी चार भाई है। सभी साथ मे ही रहते है वह इतने लोगो के साथ कैसे रह पाएगी? अरे! नहीं, मेहमान आपने गलत समझ लिया है। घर एक ही है परन्तु सभी का खाना -पीना और दुकान सब अलग है। जहाँ तक अपने भाई – बहन की बात है तो बहन की शादी हो गईं है वह कभी कभार ही आती है और भाई बाहर नौकरी करता है और उसकी पत्नी भी उसी के साथ रहती है

वे लोग भी पर्व त्यौहार पर ही आते है। घर मे सिर्फ लड़का और उसके माता पिता ही रहते है। वैसे संयुक्त परिवार के फायदे भी है सभी मिलजुल कर काम निपटा लेते है।सास – ससुर के साथ रहने से रत्ना नौकरी भी करना चाहेगी तो आराम से कर लेगी,घर की चिंता नहीं रहेगी। ससुर का दुकान भी अच्छा चलता है तो पैसे रूपये की भी चिंता नहीं रहेगी। रत्ना के पापा उसका विवाह संयुक्त परिवार मे नही करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने टालने के उद्देश्य से कह दिया कि ठीक है भैया रत्ना से पूछकर बताते है। उसकी राय लेनी भी जरूरी है।

रत्ना के मामा ने ठीक है जैसा होगा खबर कीजिएगा कहकर चले गए। दो तीन दिन बाद मामा का फोन आया। उन्होंने पूछा क्या विचार है रत्ना का? आपने कुछ खबर नहीं की। रत्ना वही थी उसने पूछा मामा जी किस विषय मे मेरा विचार जानना चाहते है।माँ ने कहा तेरे लिए रिश्ता लाये है, लड़का अच्छा है, पर संयुक्त परिवार है इसलिए तुम्हारे पापा हिचकिचा रहे है। संयुक्त परिवार होना कोई बुराई तो नहीं है, फिर हिचकिचाहट क्यों। मुझे तो संयुक्त परिवार पसंद है,रत्ना ने अपनी माँ से कहा।

रत्ना की बात सुनकर उसके पापा  उसे समझते हुए बोले बेटा तुम्हारे मामा घर मे लोग साथ मिलकर रहते है इसलिए तुम्हे अच्छा लग रहा है। वहाँ तुम सिर्फ आयोजन मे जाती हो, जब सभी आयोजन मे मस्त रहते है उस समय की बात अलग होती है, पर हमेशा संयुक्त परिवार मे रहना आसान नहीं है।सभी को खुश रखने के लिए बहुत सारे समझौते करने पड़ते है। कभी कभी अपनी खुशियों को दूसरे की ख़ुशी के लिए कुर्बान करना पड़ता है।तुम एकल परिवार मे रही हो यह सब कर पाओगी? पापा मानती हूँ

कि कुछ समझौते होंगे पर प्यार भी तो बहुत लोगो का मिलेगा। दो चार दिन सोच लो, और सोच समझ कर फैसला करना भावनाओं मे बहकर नहीं। फिर  तुम्हारा जो फैसला होगा हम उसे मान लेंगे पापा ने एकबार फिर से रत्ना को समझाने की कोशिश करते हुए कहा।मुझे चुनौतियाँ पसंद है मै सब मैनेज़ कर लुंगी, आप चिंता नहीं करे। रत्ना ने पापा की चिंता दूर करते हुए कहा।इसतरह से रत्ना का विवाह एक संयुक्त परिवार मे हो गया। शादी के बाद कुछ दिन रत्ना के साथ रहकर उसकी जेठानी अपने पति के साथ चली गईं।

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जेठानी के जाने के बाद उसका घर मे मन ही नहीं लगता था उसने जो सोचकर संयुक्त परिवार मे विवाह किया था ऐसा कुछ  भी यहाँ नहीं था। उसकी चचेरे सास – ससुर, जेठ -जेठानी  देवर, ननद सभी समाज के दिखावे के लिए तो उसकी शादी मे आए थे पर अन्य दिनों मे उनका एक दूसरे से मेलजोल  नहीं था।  उसने यह बात अपने पति से कही तो उसने कहा तुम अपने मायके मे भी तो अकेली ही रहती होंगी। वैसे तुम्हे अकेले रहने मे दिक्कत होगी तो नौकरी कर लेना समय अच्छे से कट जाएगा।

रत्ना को नौकरी करने का शौक तो था पर उसने अपने मन मे संकल्प लिया कि पहले मै चारो सासो के मन से मनमुटाव दूर करूंगी और चारो सासो का प्यार पाऊँगी। उसने अपने मन की बात अपने पति को बताई। पहले तो उसके पति ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर रत्ना के बार बार कहने पर उसने पूछा – तुम मुझसे क्या चाहती हो? मै इसमें तुम्हारी किस तरह से मदद कर सकता हूँ? रत्ना ने कहा क्या शुरू से ही माँ चाची का रिश्ता एक दूसरे के साथ ऐसा ही था? नहीं, पहले हम सभी एकसाथ ख़ुशी खुशी  रहते थे पर बाद मे उसके पति ने बहुत ही दुखी आवाज मे कहा। अच्छा पहले मुझे यह बताओ जब साथ मे रहते थे तब घर का माहौल कैसा था? सोमेश ने चहकते हुए कहा – जब हम साथ रहते थे तो कितना आनंद आता था

मै बता नहीं सकता। हम सब भाई बहन साथ मे रहते,एकसाथ खाते, एकसाथ सोते, एकसाथ पढ़ते। बड़ा मज़ा आता। माँ चाची मिलकर खाना बनाती। बड़ी माँ हम सबको स्कूल के लिए तैयार करती। शाम को छोटी चाची पढ़ाने बैठाती और हमारे होमवर्क बनाने मे हमारी मदद करती। सारे लोगो का काम बटा था। बड़े पापा, पापा, दोनों चाचा सभी साथ मे नाश्ता करते और साथ ही मे दुकान के लिए निकल जाते। उनके जाने के बाद दादा- दादी को नाश्ता कराकर सभी माँ चाची एकसाथ खाने बैठती, खूब गप्पे होती, रविवार के दिन हम बच्चे भी उन्ही लोगो के साथ खाते थे।

सही मे वह दिन भी क्या दिन थे। तो फिर क्या हुआ जो सभी अलग हो गए? रत्ना ने पूछा। खास कुछ नहीं। दादाजी की मत्यु हो गईं, फिर सभी भाइयो ने अपने दुकान अलग कर लिया और दादी के जाने के कुछ दिनों बाद जब बड़े पापा के बेटे की शादी हुई तो बड़ी माँ ने अपना रसोई अलग कर लिया। उसके बाद सभी ने एक एक कर अपनी अपनी रसोई अलग कर ली । रसोई क्या अलग हुई जैसे सब का मन भी अलग हो गया। बड़े पापा और बड़े चाचा के बेटों ने अपना अपना दुकान संभाल लिया। मैंने और भैया ने नौकरी करने का फैसला किया। सभी बहनो की शादी हो गईं.

बस अब छोटे चाचा का बेटा कुंवारा है जो बाहर रहकर पढ़ता है। चलो परिचय तो हो गया अब कुछ ऐसा पसंद का खाना बताओ जो माँ चाची को एक दूसरे के हाथ से बना पसंद हो,रत्ना ने कहा। सोमेश से सारी बातो की जानकारी लेंने के बाद  उसने अपने प्लान पर काम शुरू किया।  वह कभी बड़ी माँ के यहाँ तो कभी चाची के यहाँ दोपहर मे जाकर बैठती, सभी के साथ प्यार और सम्मान से बात करती।कुछ दिनों  बाद होली आई। होलिका दहन था। वह अपनी बड़ी सास के यहाँ गईं और जाकर पूछा

– बड़ी माँ आज खाने मे क्या बना है? उसकी बड़ी सास ने कहा आज होलिका है तो सभी के घर मे कढ़ी चावल ही तो बनता है वही बना है। तुम क्यों पूछ रही हो? माँ कहती है कि तुम्हारी बड़ी माँ बहुत ही अच्छा कढ़ी बनाती है बड़ी माँ क्या आप मुझे भी बनाना सिखाएंगी? सीख लेना मै कौन जो कही जा रही हूँ। अभी तो तू मेरे पास से ले जाकर खा लो बड़ी माँ ने मुस्कुराते हुए कहा। रत्ना कढ़ी लेकर आ गईं और घर मे चावल बना लिया। खाने के वक़्त जब उसने कढ़ी दिया तो उसकी सास ने कहा तुमने बनाया है?

वे सच में ‘हैंडसम’ थे 

रत्ना ने पूछा क्या अच्छा नहीं बना है? नहीं बहुत ही अच्छा बना है मुझे तो बनाने नहीं आता है तेरी बड़ी सास बहुत अच्छा बनाती है। तुमने भी उन्ही के जैसा बनाया है। कढ़ी तो खाये एक जमाना हो गया था। अच्छा किया बना लिया उसकी सास ने खुश होते हुए कहा। माँ जी मैंने नहीं बनाया है। बड़ी माँ ने दिया है। दूसरे दिन होली था उसकी सास ने बहुत ही स्वादिष्ट पुआ बनाया। रत्ना ने सभी चाची सासो के यहाँ ले जाकर पुआ दिया और कहा कि माँ ने भेजा है क्योंकि उसकी सास घर मे सबसे अच्छा पुआ बनाती थी।

साथ ही मे सभी को ग़ुलाल लगाकर होली की बधाई दी और अपनी दोनों जेठानियों  को अपनी सास को ग़ुलाल लगाने के लिए बुलाया। इसतरह से उसने धीरे – धीरे चारो देवरानी जेठानी को एकसाथ मिलाया। सभी  ने अपने अपने गिले शिकवे कहे। बड़ी सास ने कहा की सारी गलती मेरी है जब मेरी बहू आई तो मुझे लगा कि मेरी बहू की कमियों को मेरी देवरानी जानेगी तो बाद मे मुझ पर हसेंगी। यह सोचकर मैंने स्वार्थी होकर अपनी रसोई अलग कर लिया।  उसकी सास ने कहा मैंने सोचा बड़ी बहू के तीन बेटियां है

साथ रहने पर उनकी शादी मे मदद करनी होगी इसलिए मै भी अलग हो गईं।बड़ी चाची ने कहा कि छोटी के छोटे छोटे बच्चे है वह उन्हें ही संभालने मे परेशान रहती है घर के कामो मे मदद नहीं करती तो मै क्यों उसके साथ रहुँ यह सोचकर मै भी अलग हो गईं। सभी ने अपने अपने स्वार्थ को रत्ना के सामने स्वीकारा। बड़ी माँ ने कहा पर आज रत्ना ने हमें सिखाया कि हमने अपने स्वार्थ मे पड़कर बच्चो से उनकी खुशियाँ छीन ली। अब साथ रहना तो सम्भव नहीं है पर आगे से हम सारे त्यौहार मिलजुल कर एक साथ मनाएँगे। बड़ी माँ की बात सुनकर रत्ना को इस बात की तसल्ली हो गईं कि जो अकेलापन उसने झेला है वह उसके बच्चो को नहीं झेलनी पड़ेगी। उनके पास अपनी बातो को शेयर करने के लिए अपने भाई बहन होंगे।

 

विषय – संयुक्त परिवार

लतिका पल्लवी

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