सुलोचना ताई सोच लो बेटी तो चली हीं गई अब कहीं ये दुधमुंही पोती भी !!!!
तुम इसको भी???
आंखों में बेशर्मी और लहजे में हरामीपन लिए गुड्डी का ज्येष्ठ जब सुलोचना ताई से बोला तो
सुलोचना ने झट से पोती को सीने से लगा लिया।
गुड्डी का ज्येष्ठ होंठों पर कलुषित मुस्कान लिए आगे कहने लगा –
सोच लो ताई कुछ पैसे ले दे कर इस मामले को यहीं खत्म कर दो।
वरना…..
उसने वरना इस अंदाज में कहा कि, सुलोचना के तनबदन में चिंगारी फूट पड़ी।
एक तो दुष्टों ने बेटी को जहर देकर मार डाला और अब पोती को भी….
सुलोचना क्रोध का घूंट पीते हुए बोली -कमीने तूने सोच कैसे लिया कि मैं अपनी बेटी की लाश का सौदा करूंगी तुझसे…
इस कहानी को भी पढ़ें:
तुम सबको जेल की चक्की पिसवा कर रहूंगी।
इतना कहकर सुलोचना ने उसका गिरेबान पकड़ लिया…
गुड्डी का ज्येष्ठ ठहाके लगाते हुए बोला – बुढ़िया तू हमें जेल भेजेगी!!
मैं अभी के अभी तेरी इस पोती का गला घोंट दूंगा….
इतना कहकर वो बच्ची को छीनने लगा..
सुलोचना ताई चीख पड़ी..
इतने में ढेर सारे पुलिस वाले आ गए और ताई को समझाने लगे ताई!!
क्यों व्यर्थ कोशिश कर रही हो..
कुछ पैसे लेकर केस को रफा-दफा कर दो…
सुलोचना ताई को तो जैसे काटो तो खून नहीं…
रक्षक को भक्षक बनते देख सुलोचना दर्द और व्यथा के अथाह सागर में डूबने लगी और वहां रखें पांच लाख रुपए उठाया और एक कागज पर अंगुठा लगा कर पोती को सीने में सटाए भरे कदमों से चल पड़ी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
क्रोध,भय, व्यथा, और आत्मग्लानि के मिले-जुले भाव चेहरे की भंगिमाएं बना और बिगाड़ रहे थे।
आंखों से गरम-गरम आंसू गिर कर उसके गालों को जला रहे थे।
गिरते पड़ते घर पहुंची तो बैठक में लगी गुड्डी की तस्वीर के आगे ठिठक गयी, तस्वीर मानो कह रही थी, मां वस्तु नहीं नारी हूं मैं और तुम मेरा हीं सौदा कर आई ।
सुलोचना तस्वीर को सीने से लगा कर फूट-फूटकर रो पड़ी।
नहीं गुड्डी नहीं ये मेरी विवशता हीं मेरी सबसे बड़ी ताकत बनेगी।
तू देख लेना उन दुष्टों के पैसे और उनके हीं वंश की इस बच्ची के हाथों मैं उनका विध्वंस करवाऊंगी,
और उन्हें बताऊंगी कि कोई भी नारी वस्तु नहीं होती…..
डोली पाठक
पटना बिहार