” स्वार्थी संसार ” – साधना वैष्णव : Moral Stories in Hindi

    एक बार एक व्यक्ति प्रतिदिन   की भांति अपनी फैक्ट्री जा रहा था, रास्ते में वह एक घर के पास पहुँचा ही था कि किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। उसने आस-पास देखा कहीं कोई दिखाई नहीं दिया। जिस घर के पास बच्चे के रोने की आवाज आ रही थी, वह घर तो बाहर से बंद था। वह अपना भ्रम समझ कर आगे बढ़ गया।

        दूसरे दिन भी उसी स्थान    पर उसने बच्चे के रोने की   आवाज सुनी। वह बंद पड़े घर के पास जाकर ध्यान पूर्वक सुनने की कोशिश करता है और उसे यकीन हो जाता है कि बच्चे के रोने की आवाज यहीं से आ रही है। वह तुरंत पुलिस को इस घटना की पूरी जानकारी दे देता है।

     कुछ समय पश्चात पुलिस की पूरी टीम पहुँच जाती है। घर से कुछ दूरी पर बने घरों पर जाकर घर के मालिक के विषय में तहकीकात करते हैं तो पता चलता है कि वे लोग तीन-चार दिन पूर्व ही मकान खाली कर कहीं चले गए हैं। कहां गए हैं? इसकी जानकारी किसी के पास नहीं थी। पुलिस वालों ने

पंचनामा करवाने के बाद मकान का ताला तोड़कर अंदर प्रवेश किया और देखा तो वहां कुछ भी नहीं था। गंदे फर्श पर पड़ी एक छह-सात माह की बच्ची रो रही थी। भूखी-प्यासी होने के कारण उसकी आवाज एकदम धीमी हो गई थी और वह बहुत कमजोर दिखाई दे रही थी।

                   पुलिस वाले उसे उठाकर सीधे अस्पताल ले गए और इलाज के लिए दाखिल करा दिए। धीरे-धीरे उसके स्वास्थ्य मेें सुधार होने लगा। लीना नाम की एक महिला का बेटा भी इसी अस्पताल के उसी वार्ड में था। वह अपने बच्चे के लिए खाना आदि लेकर आती तथा बच्चे के पास बैठी रहती। बच्ची की

देखभाल करने वाली नर्स ने लीना को उसके बारे मेें बताया कि बच्ची का कोई नहीं है। दूसरे दिन से लीना अपने बच्चे के साथ  साथ उस बच्ची की भी देखभाल करने लगी। उसके लिए नए-नए कपड़े और खिलौने लेकर आती। बच्ची भी उससे घुल-मिल गई थी।

      एक दिन लीना घर से खाना लेकर लौटी तो पलंग पर बच्ची को न पाकर सोचने लगी डाॅक्टर के पास नियमित जांच के लिए ले गए होंगे। उसने किसी से कुछ नहीं पूछा। लेकिन दोपहर तक बच्ची अपनी जगह पर नहीं लौटी तो उसे चिंता होने लगी उसने नर्स से पूछा, तब पता चला कि उसे तो अनाथालय भेज दिया गया है।

          लीना को लगा जैसे उससे उसकी कोई सबसे प्यारी चीज छीन ली गई है। वह तुरंत उठी और उस बच्ची को किस अनाथालय मेें भेजा गया है, इसका पता लगाकर अपने बच्चे को नर्स के पास छोड़कर अनाथालय पहुँच गई, उस बच्ची को गोद लेने हेतु आवेदन देकर, वापस अस्पताल लौट आई। उसका बेटा भी अब स्वस्थ हो चुका था। उसे भी अस्पताल से छुट्टी मिल गई। अब वह अनाथालय के फैसले का इंतजार कर रही थी।

      एक सप्ताह बाद अनाथालय से बुलावा आया। वह खुशी-खुशी अपने पति के साथ जाकर सारी औपचारिकताओं को पूरा कर बच्ची को लेकर घर पहुँची। उसके पैर खुशी के कारण जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। उसका चार वर्षीय बेटा रोशन भी उसे देखकर  बेहद खुश था। बार-बार उसकी नन्ही-नन्ही ऊंगलियों को छूता और अपनी खुशी का इजहार करता। लीना और उसके पति ने उसका नाम रोशनी रखा। रोशन की बहन रोशनी।

रोशनी भी अब लगभग एक वर्ष की हो चुकी थी और चलना सीख रही थी लेकिन उसे चलने में परेशानी हो रही थी।यह देखकर लीना उसे एक अच्छे डॉक्टर के पास लेकर गयी।

उन्होंने उसे बताया कि अधिक देर तक ठण्डे स्थान पर रहने के कारण ऐसा हो गया है। यह नियमित दवाई खाने और व्यायाम करने से ठीक हो जाएगी। लीना उसे दवाई तो खिलाती ही थी, समय निकाल कर सुबह शाम व्यायाम भी करवाती थी। ख़ुशनुमा माहौल में कब चार साल बीत गए पता ही नहीं चला।

              लीना रोशनी को डांस क्लास में डांस सीखने भेजने लगी ताकि उसके पैरों में हलचल होने से नसों मेें खून का बहाव निर्बाध गति से होता रहे। लीना का अंदाजा बिल्कुल सही निकला। अब रोशनी का पैर ठीक होने लगा था। सात साल की होते-होते रोशनी का पैर एकदम ठीक हो चुका था और सबसे खुशी की बात तो यह थी कि रोशनी अपने डांस ग्रुप के साथ स्टेज प्रोग्राम भी देने लगी थी।

    डांस के साथ-साथ रोशनी ने मॉडलिंग की दुनिया में भी कदम रख दिया था।समय पंख लगाकर उड़ने लगा। रोशन इंजीनियर बन चुका था। रोशनी कॉलेज की पढ़ाई कर रही थी।

डांस और मॉडलिंग के कारण अब वह ‘एक प्रसिद्ध व्यक्तित्व ‘ बन चुकी थी। टी.वी. के एक साक्षात्कार में उसने अपने जीवन से जुड़ी सारी सच्चाई लोगों के सामने रख दी और ये भी कहा कि कैसे मां-बाप बेटियों को बोझ समझ कर इस “स्वार्थी संसार” मेें मरने के लिए छोड़ देते हैं। 

      लेकिन ईश्वर ने कुछ  फ़रिश्ते भी धरती पर हम जैसे लोगों के लालन-पालन के लिए भेज दिए हैं, जो हमारे लिए माँ-बाप से बढ़ कर हैं। इस साक्षात्कार को देख सुनकर रोशनी के माता-पिता ने उसे पहचान लिया और उससे मिलने के लिए उसके घर आए।

      लीना ने आदर पूर्वक उन्हें बिठाया और रोशनी को उनसे मिलने कहा किन्तु रोशनी ने स्पष्ट शब्दों में उनसे मिलने से इंकार कर दिया बोली- आज इन्हें माता पिता होने का अहसास हो रहा है उस दिन क्यों नहीं हुआ , जिस दिन मुझे फर्श पर तड़पता हुआ छोड़कर,  घर पर ताला लगाकर, मुझे मरने

के लिए छोड़ गए थे। इतने वर्षों तक मैं कहां और किस हाल मेें हूं, यह जानने की भी कोशिश नहीं की। इनके लिए तो मैं मर ही चुकी थी। मेरी प्रसिद्धि मेें भी इनका स्वार्थ दिखाई दे रहा है, दुनिया के सामने एक सफल लड़की के माता-पिता बनने का स्वार्थ। 

      लीना और उसके पति ने उसे बहुत समझाया किन्तु रोशनी अपने जन्म देने वाले माता-पिता से नहीं मिली। उसका कहना था मेरे इस फैसले से किसी भी लड़की के माता-पिता ऐसा दुस्साहस करने के पूर्व हजार बार सोचेंगे कि ” सिर्फ माता-पिता ही बच्ची का त्याग नहीं कर सकते वरन् बच्चियाँ भी ऐसे माता-पिता का परित्याग कर सकती हैं। बेटियाँ सिर्फ ” रोशनी ” होती हैं जो अपने प्रकाश से एक नहीं दो-दो कुल को रौशन करती हैं।” ऐसा कहकर वह लीना से लिपट कर फफक कर रो पड़ी। 

लेखिका- साधना वैष्णव

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