मनुष्य की लोलुप इच्छाऍं दिन-प्रतिदन सुरसा की भाॅंति मुॅंह बाए फैलती ही जा रहीं हैं।उन असीमित इच्छाओं की पूर्ति के लिए स्वार्थ उसपर इस कदर हावी होता जा रहा है कि इंसानियत ही दम तोड़ती नजर आने लगी है।इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए वह अनेक अनैतिक हथकंडों को अपनाता रहता है। जल्द -से-जल्द अमीर बनने की होड़ लगी हुई है। इसमें नशे का व्यापार सबसे अधिक फल-फूल रहा है।भले ही इस व्यापार में मनुष्यता मर जाती है, परन्तु व्यक्ति जल्द ही लाखों की कमाई कर लेता है।
किसी भी प्रकार का नशा मौत का सौदागर ही होता है।नशे में डूबा हुआ व्यक्ति अपनी बर्बादी को आमंत्रण देता है, परन्तु उसकी बर्बादी से स्वार्थी लोगों की चाॅंदी हो जाती है।किसी का परिवार तहस-नहस हो जाऍं,इससे स्वार्थी दुनियाॅं पर कोई असर नहीं पड़ता है,बस स्वार्थ-सिद्धि पर उसकी नजरें गिद्ध की भाॅंति लगी रहती हैं।कथा नायिका सुखिया का परिवार भी इन्हीं स्वार्थी लोगों की भेंट चढ़ चुका है।
सुखिया का घर दलितों की बस्ती में है।उस बस्ती में करीब डेढ़ सौ घर हैं।सभी दिन भर मेहनत -मजदूरी करते हैं और सुकून की जिंदगी जीते हैं।कुछ दिनों से गाॅंव का माहौल बिगड़ चुका है, क्योंकि गाॅंव के बाहर देसी शराब की फैक्ट्री लग चुकी है।अब गाॅंव में भी देसी शराब धड़ल्ले से बिकने लगी है।
सुखिया ने कुछ दिनों पहले अपने एकलौते बेटे की शादी की है।उससे पहले उसने कर्ज लेकर जैसे-तैसे दोनों बेटियों की शादी की थी।उसका पति मोहन कर्मठतापूर्वक मेहनत-मजदूरी पकर परिवार का पालन-पोषण करता है।जब से गाॅंव में देसी शराब की बयार बही है,तबसे मोहन भी यदा-कदा शाम में शराब पीने लगा है। आरंभ में तो स्वार्थी ठेकेदार ने लोगों को मुफ्त की शराब पिलाई और उनको उसका आदी बनाया।मोहन भी धीरे-धीरे शराब का आदी होने लगा।पत्नी सुखिया के मना करने पर बहाने बनाते हुए कहता -“अरे सुखिया! चिन्ता मत करो।बस थकावट दूर करने के लिए थोड़ी -सी ले लेता हूॅं।”
सुखिया का जीवन अत्यधिक गरीबी में बीत रहा था। बेटियों की शादी के कारण सिर पर कर्ज का बोझ लादा हुआ था। मुश्किल से बस दो वक्त की रोटी का ही इंतजाम हो पाता।उसके लिए खुशी की बात यह थी कि उसका बेटा गणेश भी अब मजदूरी करने लगा था।उसे भरोसा था कि अब बाप-बेटे की कमाई से घर की माली हालत सुधरेगी।
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कुछ दिनों से सुखिया के पति और पुत्र दोनों कमाने लगते हैं। सुखिया को अब दिन बहुरने का आभास होने लगता है,परन्तु सुखिया की खुशी क्षणिक ही साबित हुई।हाथ में पैसे आने से उसका बेटा गणेश भी दारू पीने लगता है। स्वार्थी ठेकेदार को तो बस अपनी चिंता थी।वह ग्रामीण भोले-भाले लोगों को बीच-बीच में मुफ्त की दारू भी पिलाया करता था। सुखिया पति के दारू पीने से तो त्रस्त थी ही,अब बेटा भी नशे की राह पकड़ चुका था। सुखिया चिंतित रहने लगीं।उसके जीवन का आधार स्तंभ पति और बेटा ही था,मगर दोनों अपनी कमाई और स्वास्थ्य दारू को भेंट करने पर उतारु थे।गाॅंव में अधिकांश लोग नशे की गिरफ्त में जकड़ते जा रहे थे।
काफी सोच-विचार करने के बाद सुखिया बेटे की शादी कर देती है।बेटे की शादी के बाद उसके घर का माहौल बदल जाता है।उसके घर में बहू की चूड़ियों की खनक के साथ पायल की मधुर झंकार सुनाई देने लगती है।मोहन और गणेश दारू पीना लगभग कम कर देते हैं।मोहन नई बहू की झिझक से बाहर ही थोड़ी -सी पीकर घर आता। गणेश भी काम पर से आने के बाद अपनी नवविवाहिता के इर्द-गिर्द ही भौंरे के समान मंडराया करता। सुखिया बेटे-बहू की जोड़ी देखकर हर्ष से फूली न समाती।
कुछ दिनों बाद सुखिया की बस्ती में शराब ठेकेदार की तरफ से भजन-कीर्त्तन का आयोजन था।उस आयोजन में सभी गाॅंववाले शामिल होने जा रहे थे। सुखिया ने पति से कहा -“तुम दोनों बाप-बेटे भजन में शामिल होने चले जाओ। मैं नई बहू को अकेली घर में छोड़कर नहीं जाऊॅंगी।हाॅं!ठेके पर मत चले जाना,सीधे घर आ जाना। “
सुखिया का पति मोहन सहमति में सिर हिलाते हुए बेटे के साथ निकल पड़ा।
ठेकेदार ने भव्य भजन-कीर्तन का आयोजन किया था। गाॅंववाले भक्तिरस में डूबकर भजन का आनंद ले रहे थे।भजन -कीर्त्तन की समाप्ति पर प्रसाद का वितरण हुआ।सभी गाॅंववाले प्रसाद लेकर अपने घरों को लौट रहे थे, परन्तु अपनी चाल चलते हुए स्वार्थी ठेकेदार ने स्थानीय नेता की शह पर बीच रास्ते में मुफ्त दारू की व्यवस्था की थी। मुफ्त का माल मिले,तो भला कौन छोड़ता है?गाॅंववालों के साथ मोहन और गणेश ने भी छककर दारू पी और लड़खड़ाते हुए कदमों से घर पहुॅंच गए। सुखिया उन्हें ऐसी स्थिति में देखकर गुस्साते हुए चुपचाप कमरे में जाकर सोने को कहती हैं।
कुछ ही देर में मोहन और गणेश उल्टियाॅं करने लगते हैं। देखते-देखते बस्ती में मौत का हाहाकार मच जाता है।हरेक घर से चीख-पुकार की आवाजें आने लगतीं हैं।रात के अंधकार में सभी किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो उठते हैं। सुखिया भी बेहाल -सी कभी पति को,कभी बेटे को सॅंभालने की असफल कोशिश करती है।
सुखिया चिल्लाते हुए कभी तो पति को अपनी बाॅंहों में समेटने की कोशिश करती है,तो कभी अपने बेटे को।उसकी बहू दोनों के चेहरे पर पानी छींटती है।उसकी बहू चिल्ला-चिल्लाकर अपने पति को मेंहदी भरे हाथ दिखाकर उठने कहती हैं। परन्तु पलभर में बाप-बेटे की गर्दन दूसरी ओर लुढ़क जाती है।बड़ा ही हृदयविदारक दृश्य उपस्थित हो गया।बस्ती में चीख-पुकार मच गई। चारों तरफ हाहाकार मच चुका था।करीब सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी थी। स्वार्थी ठेकेदार के कारण देखते-देखते जिंदा इंसान लाशों में परिवर्तित हो चुके थे।
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प्रत्येक बार की तरह इस बार भीसाॅंप भागने के बाद लाठी पीटने पुलिस की गाड़ियाॅं सायरन बजाते हुए बस्ती में पहुॅंच गई। पुलिस जल्दी -जल्दी लाशों को गाड़ियों में भरने लगी।इस विपदा की घड़ी में भी पूलिस मीडिया और विपक्षी नेता से आक्रांत नजर आ रही थी। पुलिस खानापूर्ति कर लौट गई। शराब ठेकेदार पलायन कर चुका था।
अचानक से हॅंसते-खेलते गाॅंव में मौत का सन्नाटा पसर चुका था।कितनी ही औरतों की माॅंग और कोख उजड़ चुकी थी! कितनी ही नव-वधूओं के हाथों में मेंहदी की लाली छूटी भी नहीं थीं!बड़ा ही दारुण दृश्य था। महिलाओं के करुण-क्रंदन से धरती का दिल और आसमान का भी कलेजा फट रहा था।अगले दिन पता चल चुका था कि जहरीली शराब पीने के कारण लोगों की मौत हुई थी।ये मौत के स्वार्थी सौदागर कोई बाहरी दुनियाॅं के न होकर इसी स्वार्थी संसार के थे,बस अशिक्षित लोगों को अपने भरोसे में लेकर नशे का आदी बनाकर पैसा लूटना चाहते थे।
भयानक मौत के तांडव के बाद अपनी साख बचाने हेतु पुलिस -प्रशासन और नेताओं की नींद खुलती हैं। लोगों के गुस्से को दबाने के लिए सरकार मुवावजे का ऐलान करती है।मुवावजे की रकम ने लोगों के मुॅंह पर ताला लगा दिया। सुखिया पति और बेटे की मौत से स्तब्ध -सी हो गई। हाथ में मुवावजे की रकम का चेक लिए मानो उसके बदन का पूरा खून जम चुका हो।उसकी लाचारी उसकी ऑंखों से ऑंसू बनकर बह रही थी और उन ऑंसुओं ने उसे बगावत पर मजबूर कर दिया।उसका आक्रोश ज्वालामुखी की तरह फट पड़ा ।उसने चिल्लाते हुए मुवावजा अधिकारी से कहा -“साहब!इस रकम के बदले मेरे पति और बेटे को लौटा दो।मुझे पैसा नहीं चाहिए।”
सुखिया की दर्द भरी चीत्कार से मुवावजा अधिकारी की भी ऑंखें नम हो उठीं।उसने सुखिया को तसल्ली देते हुए कहा -” बहन! मैं मौत से तो लोगों को वापस नहीं ला सकता हूॅं और कुछ कहना है तो कहो।”
सुखिया -“सर! शराब की फैक्ट्री बस्ती से हटवा दो और ठेकेदार को कड़ी से कड़ी सजा दिलवा दो।”
मुहावरा अधिकारी ने वायदा निभाया। तत्काल उसने उस गाॅंव से शराब की फैक्ट्री बंद करवा दी।कुछ दिनों तक हो-हल्ला के बाद स्थिति पूर्ववत् हो गई।अब शराब फैक्ट्री अन्य बस्ती में लग चुकी है। पुलिस और नेताओं की मिली-भगत से अवैध शराब का धंधा खुलेआम फल-फूल रहा है।इस स्वार्थी संसार में किसे चिन्ता है कि दुबारा उस घटना की पुनरावृत्ति न हो जाऍं।सभी अपने-अपने स्वार्थ साधने में मग्न हैं।
समाप्त।
लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)