जैसे हीं जयमाला की रश्म समाप्त हुई मेहमानों को भोजन परोसा जाने लगा।
थाली देख मेहमानों का आपस में खुसर-फुसर शुरू हो गया।
ये कैसा खाना है??
विवाह में कोई ऐसा खाना खिलाता है क्या??
हमें पहले से पता होता तो हम तो आते हीं नहीं…
इतना खर्च कर के हम ये खाने आए थे यहां??
और भी बहुत कुछ…
मेहमानों की थाली में दो रोटियां, थोड़े से चावल, एक सब्जी,आम का अचार,पतला सा दाल और मूली प्याज के कुछ टुकड़े..
ये भोजन अगर विवाह समारोह में मिले तो गुस्सा तो आएगा हीं…
मेहमानों की खुसर-पुसर जैसे हीं गुस्से में बदलने वाला था तुरंत डीजे की आवाज बंद हो गई और
बेहद हीं शालीन स्वर में लड़की के पिता ने बोलना शुरू किया…
मेरी बेटी के विवाह में आए हुए सभी मेहमानों का मैं हार्दिक स्वागत करता हूं..
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मैं जानता हूं कि आप विवाह में मिली इस भोजन की थाली को लेकर बेहद नाराज हैं हमसे और होना भी चाहिए…
लेकिन मैं आप सबसे कुछ बताना चाहता हूं जो कि आपका जानना अत्यंत आवश्यक है…
मेरी बेटी के विवाह में होने वाले इन अनावश्यक खर्चों को जुटाने के अथक प्रयास में मैं और मेरी पत्नी बरसों से यहीं थाली खाते आ रहे हैं।
ताकि हम इस आधुनिक विवाह के फालतू खर्चों के लिए पैसे जुटा सकें।
मेरी पत्नी ने अपने लिए कब एक महंगी साड़ी खरीदी थी उसे स्वयं भी याद नहीं ताकि मेरी बेटी अपनी शादी में आलिया भट्ट की तरह लहंगा पहन सके।
इसमें मेरी बेटी की कोई ग़लती भी तो नहीं है ये आज के समय की मांग है..
मेरे द्वारा बुलाए गए यहां जितने भी मेहमान हैं उनमें से अस्सी प्रतिशत लोग मध्यम वर्गीय हैं,जो
मेरी मनोदशा को सहजता से समझ पा रहे होंगे और वो भी अपनी जिंदगी में इसी अवस्था से गुजर रहे होंगे…
जब आप स्वयं की जिंदगी में ऐसे दौर से गुजर रहे होते हैं तब आप किसी अपने की व्यथा को क्यों नहीं समझ पाते..
अपनी रोज की थाली में सादा भोजन और किसी वैवाहिक समारोह में छप्पन भोग क्यों चाहिए सबको..
सिर्फ इसलिए कि हम अपने पेट से अधिक ले लें और उसे कचरे में फेंके।
ये सारे ताम-झाम सिर्फ एक दिन के लिए क्यों चाहिए हमें…
आप में से जितने भी लोग हैं हमें बताइए कि आपने अंतिम बार अपने विवाह का एल्बम कब देखा था??
कब पूरे परिवार के साथ बैठकर अपने विवाह की सीडी देखी थी आपने??
आपका जवाब होगा शायद याद नहीं..
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फिर बक्से और आलमारियों में भरने के लिए इतनी सारी एचडी तस्वीरें क्यों जरूरी हैं आज कल के विवाह में…
मैं जानता हूं आप सभी इन आधुनिक परंपराओं को बदलना चाहते हैं परंतु पहल नहीं करना चाहते क्योंकि अपने बच्चों के हाथों मजबूर हैं हम..
जब अपना हीं सिक्का खोटा है तो औरों से कैसी शिकायत??
हम माता-पिता तो बच्चों को हर दिन का राजा बनाना चाहते हैं मगर आज के बच्चे बस एक दिन का राजा बन रथ और घोड़ी पर बैठ इतराने को हीं असली सुख समझ बैठे हैं।
आज इस समारोह के लिए जितनी जगह को मैंने लाखों देकर एक रात के लिए किराए पर ले रखा है उतनी जमीन तो हमारी परती पड़ी है गांव में
…
इस होटल का बिल नहीं चुका पाने की स्थिति में शायद मेरे कपड़े भी उतर जाएं मगर इन बातों का विवाह में आए मेहमानों को कुछ फर्क नहीं पड़ता उन्हें फर्क पड़ता है तो भोजन की थाली से…
उन्हें किसी की बेटी की डोली उठने से कोई मतलब नहीं उन्हें तो बस एसी वाला हॉल चाहिए..
एक दौर था जब किसी एक की बेटी पूरे गांव की बेटी थी जब तक बेटी की डोली नहीं उठ जाती थी हमारे बुजुर्ग भोजन ग्रहण नहीं करते थे..
मगर आज तो विवाह में सबसे पहले छप्पन भोग चाहिए हर किसी को…
कोई ये नहीं पूछता कि बेटी का व्याह है पैसे हैं कि नहीं…
क्या दिखावा इतना हावी हो चुका है हम पर हीं हम अपनी संवेदनाएं और मानवीय मूल्यों को हीं को बैठे हैं…
बताईए…
अंतिम पंक्ति कहते कहते पिता
फफक फफक कर रो पड़ा…
पूरा हॉल सिसकियों से गूंज उठा..
डोली पाठक
पटना बिहार