अम्मा बहुत बीमार है, आप आ जाओ, आपको ही दिन-रात याद करती है, मीना ने अपनी ननद को कहा तो शोभा का मन पहले चिंता से फिर कड़वाहट से भर गया, उसे अपनी मां से मिलने का मन था, लेकिन भाभी के व्यवहार से वो परेशान ही रहती थी।
अभी अम्मा बीमार है तो पड़ौसी के कहने से फोन कर दिया होगा, वरना मीना भाभी तो कभी उसके घर जाये पर भी बात नहीं करती थी, बीच में अम्मा की खबर मिली तो उसने वीडीयो कॉल पर बात कर ली, लेकिन इन दिनों तो वो अम्मा से उसकी बात ही नहीं करवा रही थी, और आज अचानक बुला रही है, यही बात शोभा के गले नहीं उतर रही है।
मीना भाभी के घर पर कुछ काम होता तो वो नहीं जाती, लेकिन अम्मा से मिलने को उसका मन आतुर हो रहा था, तो उसने अपने पति उमेश को फोन पर टिकट बनाने को कहा और खुद सामान जमाने लगी, अलमारी खोलते ही अम्मा की दी गई साड़ियों पर नजर पड़ी, जो अम्मा ने अपने लिए खरीदी थी, लेकिन बाबूजी के जाने के बाद सभी रंग-बिरंगी साड़ियां उसे दे दी, वैसे भी बेटी को तो मां की सभी साड़ियां पसंद आती है तो उसने भी रख ली।
अम्मा की लाल साड़ी देखकर शोभा की आंखें भर आई, गौरवर्ण, बड़ी-बड़ी आंखें, लाल चूड़ियों से भरे हाथ, माथे पर बिंदी, पैरों में पायल और ये लाल साड़ी जब भी अम्मा किसी त्योहार या खास अवसर पर पहनती थी, तो खिल जाती थी, और शोभा अपनी मां को निहारती ही रहती थी, कुछ सालों बाद जब बाबूजी का निधन हुआ तो अम्मा ने स्वत:
ही सारे रंग त्याग दिये और साड़ियां उसे दे दी, मीना भाभी से भी कहा था, वो भड़क गई थी, मेरे मायके वालों ने मुझे संदूक भर साड़ी दी है, मै ये उतरी साड़ियां क्यों पहनूंगी? दरअसल उनकी नजर तो बस अम्मा के गहनों पर थी, जो उन्होंने किसी को नहीं दिये थे।
कुछ सालों से वो मायके नहीं गई थी, मीना भाभी को एक ही ननद का आना भारी लगता था, शोभा पहले कभी जाती थी तो वो सीधे मुंह बात तक नहीं करती थी, दिन भर की यात्रा करके शोभा मायके पहुंचती थी, लेकिन उसे पर्याप्त खाना-पीना भी नहीं पूछती थी, जिसे अपनी सास का खाना-पीना भारी लगता था, उसे ननद कहां अच्छी लगेगी?
धीरे-धीरे शोभा ने ही मायके जाना बंद कर दिया, मां से फोन पर बात कर लेती, वीडियो कॉल करके देख लेती।
वो अपनी ही बातों में उलझी थी, तभी घंटी बजती है, उमेश आ जाते हैं, और कहते हैं, मैंने तत्काल में टिकट बनवा लिया है, कल सुबह की ट्रेन है, तुम आराम से अम्मा से मिलकर आना, और उनकी सेवा करना ।
शोभा की आंखें भर आई, अम्मा बहुत बीमार है, अब तो अपने आखिरी दिन गिन रही है, सेवा करने का अवसर तो मीना भाभी ने दिया ही नहीं।
सवेरे शोभा ट्रेन से रवाना हो गई, रास्ते का सफर उसे बहुत ही भारी लग रहा था, मां की बीमारी की खबर से वैसे भी बेटी की सांसे उखड़ सी जाती है।
अपनी सांसे थामकर वो घर पहुंचती है, घर के बाहर लगी भीड़ देखकर वो विश्वास नहीं कर पाती है कि अब अम्मा सच में नहीं रही, ओहहह !! तो भाभी ने अम्मा के जाने के बाद दुनिया को दिखाने के लिए उसे बुलाया है, दो -चार दिन पहले बुला लेती तो मै अम्मा की सेवा कर लेती, अम्मा से आखिरी बार मिल तो लेती।
वो भारी कदमों से अंदर पहुंचती है, लोगों की बातों से पता चलता है कि अम्मा का कल दोपहर को ही निधन हो गया था, अम्मा का शव देखकर वो उससे लिपट जाती है, आंखों से आंसू का सैलाब बहता है, हृदय चीत्कार उठता है, पर अम्मा अपनी आंखें नहीं खोलती।
अम्मा चली जाती है, घर का कोना-कोना उनका अहसास करवाता है, तीन दिन बीतते हैं, तीये की बैठक में उमेश भी आ जाते हैं, शाम तक काफी रिश्तेदार चले जाते हैं, रात को भैया -भाभी कमरे में आते हैं,पर उसके आंसू बहते ही रहते हैं, दोनों कुछ कागज देते हैं, दीदी इन पर हस्ताक्षर कर दो, ताकि आपको दोबारा यहां नहीं आना पड़ेगा।
ये सुनते ही शोभा चौंक जाती है, मतलब…..उसकी जुबान इतनी सी खुलती हैं, दोबारा नहीं आना पड़ेगा, अब से मायका खत्म….. वैसे भी मायका उसका कहां था।
छोटा भाई गुस्से से भरकर धमकाता है,मतलब यह है अब आपको हमारी जायदाद में से कुछ हिस्सा नहीं चाहिए, आप अपनी स्वीकृति दे दो, वरना मुझे और भी तरीके आते हैं, ज्यादा भोली मत बनो, मुझे पता है, आपकी नजर अम्मा की जायदाद घर और दुकान पर है, तभी तो रोज अम्मा से फोन पर और वीडियो कॉल करके मीठी-मीठी बातें करती थी।
शोभा इतनी अभद्र भाषा सुनकर हैरान रह जाती है, जिस भाई को गोद में खिलाया, आज वो ही उसे आंखें दिखा रहा है।
वो अम्मा थी मेरी, बेटी एक मां से बात कर ले तो उसे क्या लालच होता है? मां के प्रति प्रेम तो हर बच्चे के मन में होता है, शोभा ने पलटकर जवाब दिया।
हमारे पास ज्यादा समय नहीं है, चुपचाप से हस्ताक्षर कर दीजिए, कोई चालाकी नहीं चलेगी, भाई निष्ठुरता से बोला तो शोभा की आत्मा सिहर गई।
ओहहह…तो ये बात है…..कितना स्वार्थी संसार है…. स्वार्थी रिश्ते हैं, उसे तो लगा भाई-भाभी उसे कमरे में सांत्वना देने आये है।
तभी मीना बोलती है, मै ना कहती थी, दीदी अम्मा की सारी महंगी साड़ियां पहले ही ले गई थी, क्या पता गहने भी ले गई हो, मुझे तो अम्मा के बक्से में गहने भी नहीं मिलें, और जायदाद पर पहले ही सब अपने नाम करवाकर कहीं हस्ताक्षर तो नहीं करवा लिये??
अगर ये साफ दिल की होती तो तुरंत हस्ताक्षर कर देती।
शोभा का मन उचट गया, ये कैसा स्वार्थी संसार है? अम्मा को गये दो दिन भी नहीं हुये, उसकी आंख के आंसू भी नहीं सूखे, तेरहवीं की रस्म भी नहीं हुई और ये भाई-भाभी अपना ही स्वार्थ साध रहे हैं, उसने तो कभी जायदाद के लिए सोचा भी नहीं, वो तो अम्मा से मिलने आई थी।
भाभी, अम्मा ने साड़ियां आपके सामने मुझे तब दी थी, जब आपने वो साड़ियां लेने से मना कर दिया था, और आपने अम्मा के कान के झूमके, गले में चैन, और हाथ में चूड़ियां तक ना छोड़ी, वो गहने तो आपने तभी हथिया लिये जब अम्मा पहली बार अस्पताल में भर्ती हुई थी, बेकार ही मै झूठा इल्जाम नहीं सहूंगी,
वैसे जायदाद पर कानून के हिसाब से मेरा बराबर का हक तो बनता ही है, पर मै तुम लोगों की तरह स्वार्थी और लालची नहीं हूं, अपने कर्म से डरो, तुम भी एक बेटी हो,
तुम्हारी भी मां है, तुम्हें भी पता होगा कि बेटी मायके सिर्फ मां से मिलने आती है, किसी जायदाद के लालच में नहीं आती है, स्वयं अपने दिल से पूछो, शोभा ने हाथ में कागज लिये और अपने हस्ताक्षर करके दे दिए, ले भाई तेरी जायदाद, मै तेरी तरह स्वार्थी नहीं हूं, फिर उमेश को बुलाकर बोला कि वो अभी इस घर से जायेंगे।
ये सुनते ही शोभा के भाई-भाभी सकते में आ गये, अभी तो मां के बारहवें और तेरहवीं की रस्म बाकी है, आप चले जाओगे तो लोग और रिश्तेदार क्या कहेंगे? मै अम्मा को हृदय से श्रृद्धांजलि दे दूंगी, और वैसे भी तुम लोगों ने हस्ताक्षर तो करवा ही लिये है, अब मुझसे और कुछ काम नहीं है, तुम्हारा स्वार्थ तो पूरा है गया है, अब मेरी जरूरत क्या है? अम्मा तो चली गई, बाकी स्वार्थी संसार में रस्में तो मेरे बिना भी हो जायेगी।
ये कहकर शोभा अपने पति के साथ अपना सामान लेकर तुरंत रात को ही रवाना हो गई।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
# स्वार्थी संसार