सुष्मिता प्राइवेट कंपनी में मैनेजर थी और 1 साल पहले ही उसकी शादी हुई थी। शादी के 1 साल बाद ही —–सुष्मिता के एक प्यारा सा बेटा आशु होता है घर में खुशियां ही खुशियां आ जाती हैं सभी लोग बहुत खुश होते हैं!—– सुष्मिता और समर प्यारे से बेटे को पाकर बहुत खुश होते हैं। सुष्मिता और उसके पति समर दोनों ही अपने बेटे को बहुत प्यार करते हैं लेकिन—–
सुष्मिता की नौकरी एक प्राइवेट कंपनी में थी सुबह 7:00 बजे से जाना और शाम को 7:00 बजे घर वापस आना– संयुक्त परिवार था घर पर सास- ससुर और देवर भी थे!—– इसलिए बच्चे को सास के पास छोड़कर जाने में कोई परेशानी नहीं होती थी! सास भी बच्चे का अपने पोते आशू का बहुत ध्यान रखती थीं।
प्राइवेट कंपनी में ज्यादा छुट्टी नहीं मिलती इसलिए आशु के होने पर सुष्मिता को 3 महीने की तो छुट्टी मिल गई लेकिन उसके बाद उसे वापस अपनी नौकरी पर जाना पड़ा अब बच्चे का मोह के कारण उसका मन लगना बंद हो गया! देखते देखते एक महीना और निकल गया आशु चार महीने का हो गया था!———
एक दिन अचानक सुष्मिता जब ऑफिस जा रही थी तो आशु को दूध—— पिलाकर अपनी सास को देने लगी इस छोटे से बच्चे के हाथ के कड़े में मां का पल्लू फंस गया और वह अपने हाथों को चलाता हुआ जोर-जोर से रोने लगा! हालांकि बच्चा इतना छोटा था—– उसके हाथ से पल्लू तो छूट गया लेकिन सुष्मिता को उसका रोता हुआ चेहरा दिनभर ऑफिस में खटकता रहा।
घर आकर सुष्मिता बहुत उदास थी! और अपने बच्चे को सीने से लगाकर अपने कमरे में थोड़ी देर रोती रही फिर उसे दूध पिलाते हुए अपने ख्यालों में खो जाती है——-!
क्या मैं सही कर रही हूं? इतने छोटे से बच्चे को छोड़कर पूरे दिन के लिए ऑफिस चली जाती हूं! जिस समय बच्चे को सबसे ज्यादा मां की देखभाल की जरूरत है हालांकि उसकी सास जैसी मां—— अपने पोते का तो बहुत ध्यान रखती हैं! लेकिन मैं अपने बेटे की हंसी, खुशी और उसका बड़ा होना उसका हंसना- रोना—- अपनी—- मां की गोद में किलकारियां मार कर हंसना, खुश होना,
इस कहानी को भी पढ़ें:
औलाद के मोह के कारण वह सब सह गई! – विजय लक्ष्मी अवस्थी : Moral Stories in Hindi
यह सब चीजों को देखने से वंचित हो जाऊंगी! धीरे-धीरे आशु तो बड़ा हो जाएगा लेकिन यह समय वापस कभी भी नहीं—– आएगा—- बस यही सोच कर वह बहुत उदास हो जाती है थोड़ी देर में—– देखती है—– आशु उससे चिपट कर सो गया बड़ी सुकून की नींद सोता हुआ दिखाई दिया—— मां की गोद होती ही ऐसी है।
समर जब अपने ऑफिस से घर आते हैं समर भी एक बैंक में मैनेजर थे तब सुष्मिता को बहुत उदास देखते हैं पूछते हैं क्या बात हो गई!—— आज कोई ऑफिस में बात हुई क्या? सुष्मिता समर से बोलती है—— मुझसे अब नहीं होगा समर पूछता है क्या?—– क्या–नहीं होगा मैं अपने इतने छोटे से बच्चे को छोड़कर ऑफिस दिनभर के लिए जाती हूं
और पूरे दिन मुझे अपने बच्चे आशू का मासूम सा चेहरा दिखाई देता रहता है—– मैं काम नहीं कर पाती! यही समय है जब एक मां—- अपने बच्चे के बचपन की सारी गतिविधियों को देख सकती है, उसे बड़ा होता हुआ देख सकती है, अपने लाड़- प्यार से उसे पाल सकती है, और यह समय मैं अपना ऐसे——- नहीं गवाना चाहती।
समर बोलता है बस इतनी सी बात——– अरे तुमसे किसने कहा था कि तुम नौकरी करो? मैं तो एक बैंक में मैनेजर हूं! अच्छा खासा कमाता हूं—- तुम्हें तो आराम से अपने बच्चे पर ध्यान देना चाहिए आखिर बच्चा अपन दोनों का है! अपन दोनों ही मिलकर उसका ध्यान नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा? ऐसी कोई मजबूरी हो तब तो ठीक है? चलो कल तुम जाकर रिजाइन देकर आओ और अपने आशू का आराम से ध्यान रखो, उसकी परवरिश करो।
दूसरे दिन जब सुष्मिता अपने ऑफिस जाती है तो कंपनी के डायरेक्टर को रिजाइन लेटर देती है—— कंपनी का डायरेक्टर कहता है आप इतनी अच्छी मैनेजर हैं! क्यों नौकरी छोड़ रही हैं? “नहीं मैं यह नहीं सह पाऊंगी” कि अपने बच्चे को दुखी और रोता बिलखता हुआ अपनी सास के पास छोड़ आऊं वह भी बुजुर्ग हैं! और मेरे देवर भी पढ़ाई करते हैं!——
नौकरानी के भरोसे भी अपने बच्चे को नहीं छोडूंगी——– इसलिए मैंने फैसला कर लिया है! “मैं यह नौकरी छोड़ रही हूं” दिनभर ऑफिस में बैठकर मेरा मन नहीं लगता और मैं काम भी नहीं कर पाऊंगी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
जब अपनी कंपनी में रिजाइन देकर समय से पहले सुष्मिता घर आ जाती है और एक मिठाई का डब्बा भी लाती है यह देखकर—— मां पूछती हैं? अरे बेटा आज– जल्दी कैसे आ गईं क्या बात है? यह मिठाई कैसे लाईं !मां—- मैं तो—– अपनी कंपनी में रिजाइन देकर आ गई! अब मैं अपने आशू का पूरा ध्यान रखूंगी! आप भी बुजुर्ग हो इतना थोड़ी बनता है नहीं बेटा——
मैं उसको रख तो लेती थी और मेरे पास तो वह खुश रहता था! नहीं मां मैं भी मां हूं और मां का पूरा फर्ज निभाना चाहती हूं! अपने बच्चे को बड़े होते हुए देखना चाहती हूं, उसको अपनी गोदी में सुलाना चाहती हूं, और उसकी बचपन की गतिविधियों और शैतानियों से खुश होना चाहती हूं, यह सुनकर उसके सास- ससुर कहते हैं——-
जो तुम्हें ठीक लगे! पर समर को पता है क्या? हां मां मैंने समर को रात को ही बता दिया था उन्हीं ने मुझे यह निर्णय लेने के लिए कहा! अब मैं अपने बच्चे से दूर रहने का दुख “नहीं सह पाऊंगी” मेरे होते हुए मेरा बच्चा अपने मां के लिए तरसता रहे—– नौकरी तो फिर भी मिल जाएगी! समय से पहले अपनी कंपनी में रिजाइन देकर——– इसलिए आ गई।
शाम को जब समर आता है तो—– वह भी बहुत खुश हो जाता है चलो अच्छा हुआ—– अपने बच्चे को अच्छी परवरिश और संस्कार एक मां के द्वारा ही मिल सकते हैं बाकी देखभाल तो पूरा परिवार करता है! घर के सब लोग खुशियां मनाने लगते हैं सुष्मिता के सास- ससुर को भी सुष्मिता का फैसला सही लगता है।
कोई भी मां सब सहन कर लेती है पर अपने बच्चे से दूर होने का गम सहन नहीं कर पाती अगर मजबूरी नहीं हो तो बच्चे का ध्यान मां को जरूर रखना चाहिए नहीं तो मां और बच्चा दोनों ही दुख सहते हैं “अपनी औलाद के मोह के कारण सुष्मिता ने नौकरी छोड़ने का गम भी सहलिया”
सुनीता माथुर
मौलिक अप्रकाशित रचना
पुणे महाराष्ट्र
# औलाद के मोह के कारण वह सब सह गई