बड़ा घर – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi

     लगभग 21 दिनों पश्चात गीता ने पुनः घर में प्रवेश किया। गीता उनकी घरेलू गृह सहायिका है। वह चेहरे से अवश्य कमजोर दिख रही थी,किंतु काम करने का उसका उत्साह पहले जैसा ही बरकरार था। दरअसल, पिछले माह वह भी ‘कोरोना’ की चपेट में आ गई थी। पहले दिन उसे हल्का बुखार तथा

दूसरे दिन खांसी-जुकाम हुआ जानकर उन्होंने उसके हाथ में कुछ रुपये पकड़ाते हुए उसे तुरंत घर वापिस जाकर डॉ. को दिखाने का निर्देश दिया था और अगले दिन उसने फोन पर अपनी बीमारी की सूचना दे दी थी। तब से लगातार वे फोन पर उसकी तबीयत

की जानकारी लेती रहीं। डॉ. की राय अनुसार अपने को पूर्णतः स्वस्थ मानकर कल उसने पुनः कार्य पर आने की इच्छा प्रकट की और कल उनके घर का हल्का-फुल्का काम करके वह बाकी घरों के कार्य हेतु चली गई ।

     दूसरे दिन उसके मुख पर पहले वाला उत्साह न पाकर वे उसके स्वास्थ्य को ले कर चिंतित हो गईं कि कहीं यह ‘कोरोना’ के कारण हुई शारीरिक कमजोरी से उपजी थकान का प्रभाव तो नहीं ? किंतु, कारण पूृछते ही वह बुझे स्वरों में बोली, ‘नहीं बीबी जी! कल से मन बहुत उदास है। अच्छा,आप तो कॉलेज में पढ़ाती हैं।आप मेरे सवाल का जवाब जरूर जानती होंगी। एक बात बताएं कि यह बीमारी क्या अमीर-गरीब का भेद जानती है ? यह तो कभी भी, किसी को भी लग सकती है न ?’

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      उसकी बात सुनकर वे थोड़ा चौंक गईं। बिना किसी अतिरिक्त लोभ के, सदैव प्रसन्न चित्त रहते हुए अपने कर्म के प्रति समर्पित गीता आज यह कैसा प्रश्न पूछ रही है ! उन्होंने सांत्वना के स्वरों में उससे पूछा,  ‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न गीता ? पैसों की जरूरत है तो बताओ।’

        वह पुनः बोली , ‘मैं बिल्कुल ठीक हूँ बीबीजी, लेकिन आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया ? कल ‘बड़े घर वाली’ बीबी जी ने मुझे काम पर आने से मना कर दिया। इतने ज्यादा दिनों की छुट्टी लेने के कारण उन्होंने एक नई काम वाली रख ली है।’बड़ा घर’ होने से मुझे वहाँ से बड़ी रकम मिलती थी और घर का गुजारा आसानी से हो जाता था। अब एक तो बीमारी में पैसा लगा,दूसरे एक घर का काम भी छूट गया।’ 

    ओह! तो, यह कारण है। वे जानती हैं कि गीता कुल चार घरों में काम करती है, जिसमें तीन,केवल दंपति वाले छोटे और एक,नगर के बड़े उद्योगपति के तीन बहू-बेटों वाला संयुक्त परिवार है। वे नहीं जानतीं कि गीता ने इस परिवार का नाम ‘बड़े घर वाले’ उनके विशाल घर को देखकर रखा या वह उनके बढ़िया आर्थिक स्तर से प्रभावित हुई अथवा इस घर में रहने वाले सदस्यों की अधिक संख्या के कारण वह ऐसा कहने लगी, किंतु उस घर का प्रसंग आने पर वह सदैव उसे इसी नाम से बुलाती है।

       स्थिति की वास्तविकता को समझते हुए भी उन्होंने उसे बहलाने का प्रयास किया, ‘अरे ! इसका तुम्हारी बीमारी से कोई लेना-देना नहीं है। इतने अधिक सदस्यों के परिवार में तुम्हारे बिना उनके घर की व्यवस्था संभल नहीं चल पाती होगी। सो,यह उनकी मजबूरी रही होगी। चलो इसी बहाने तुम्हें थोड़ा आराम मिल जाएगा। तुम चिंता न करो, मैं अपने पड़ोसियों से जिक्र करके तुम्हें और काम दिलवाने की कोशिश करुंगी।’ 

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      लेकिन गीता का अंतर्मन आहत था। वह पुनः बोली, ‘बात काम की नहीं है बीबी जी ! काम तो चलो दूसरी के भाग्य में लिखा होगा। किंतु, मैं पिछले छः सालों से उस घर का काम कर रही थी। मैंने हर सुख-दुख में उनका साथ दिया । मैंने फोन करके उन्हें अपनी बीमारी के बारे में बता दिया था लेकिन इतने दिनों में एक बार भी उन्होंने मेरा हाल नहीं पूछा।

तीन महीने पहले उनकी दोनों छोटी बहुओं को एक साथ ‘करोना’ हो गया था। पंद्रह दिनों तक दोनों घर के ऊपरी कमरों में बंद रहीं। बड़ी बहू के कहने पर उन दिनों, मैं सफाई और बर्तन के साथ-साथ उन सब के लिए दोपहर-रात का खाना भी तैयार करती थी और बदले में अपने पति से झिड़कियां खाती थी। यह कैसी बीमारी है बीबीजी, जो रिश्तों के अहसास को खत्म कर देती है ? यह हम जैसे ‘छोटे लोगों’ को नहीं होनी चाहिए।’

       सहसा, छः माह पूर्व, विदेश से अपनी स्वदेश वापसी के ‘क्वारनटाइम पीरीयड’ के दौरान गीता द्वारा प्राप्त अतिरिक्त सहयोग को याद करके उनके नेत्र नम हो गए।उस भयावह समय में भी वह उनका बाहरी सामान घर के गेट तक पहुंचाने में सदैव तत्पर रहा करती थी। 

        संक्रमण के संदेह से निरंतर क्षीण होती जा रही संवेदनशीलता से वे स्वयं भी बहुत आहत थीं। वे सोच रही थीं कि संसार सचमुच बहुत स्वार्थी है, किंतु अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर जीने वाली गीता की संवेदनाओं को जीवित रखने के लिए उन्होंने उसे ढाढ़स बंधाया ,’गीता,तुम छोटी नहीं हो। इंसान ‘धन’ से नहीं ‘अपनी सोच’ से छोटा-बड़ा होता है और तुम बहुत ‘बड़ी’ हो। इसलिए पहले की भांति हँसते हुए काम आरंभ करो, ईश्वर अवश्य सहायक होंगे।’

      आहत गीता के मुख पर हल्की सी मुस्कान आई और वह तुरंत काम में जुट गई।

   

उमा महाजन 

कपूरथला 

पंजाब।

#स्वार्थी संसार

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