“उफ तंग आ गया हूँ मैं इस दिखावे की ज़िंदगी से। कितनी बार कहा है जितनी चादर है उतने ही पैर फैलाना सीखो लेकिन तुम्हें जब भी मायके जाना होता है तुम मेरी दो महीने की तन्ख्वाह जितने पैसे पन्द्रह दिन में उड़ा आती हो। सारी जमापूँजी खत्म होने को आई, आखिर कब तक ऐसे घर चलेगा?”
सुमित ने झल्लाते हुए कहा लेकिन उसके स्वर में झल्लाहट से कहीं ज्यादा भविष्य की चिंता झलक रही थी।
माधवी भी चिल्ला उठी
“ये तो अमीर घर की लड़की से शादी करने से पहले सोचना चाहिए था न? मुझे मायके के स्टैंडर्ड के हिसाब से खर्चा करना पड़ता है वहाँ नहीं तो मेरे भाई बहनों को मुझपर हँसने का मौका मिल जाएगा कि किस निठल्ले से शादी की है मैंने जो मेरा खर्चा भी नहीं उठा सकता। मम्मी पापा को तो वैसे भी तुम कभी पसंद थे ही नहीं।”
“निठल्ला नहीं हूँ मैं, अच्छा खासा कमा लेता हूँ, वो तो तुम्हारी ही आदतें खराब हैं। और जो कुछ है तुमसे कभी छिपाया नहीं था। पहले ही खुलकर बता दिया था कि तुम्हारे खानदान की बराबरी मैं नहीं कर सकता इसलिए अभी ठीक से सोच लो पर तब तो प्यार के आगे कुछ सूझ नहीं रहा था तुम्हें कि मैं हर हाल में तुम्हारे साथ गुजारा कर लूँगी।
अब क्या हुआ, छह महीने में ही तुम्हारा शाही मिजाज़ लौट आया था। दो साल भी नहीं बीते हैं कि मेरा बैंक बैलेंस डूब गया है, उसपर साल में दो बार तुम्हें पन्द्रह दिनों के लिए मायके जाना ही है जबकि इसी शहर में मायका है मिलकर उसी दिन या दो चार दिन में भी वापस आया जा सकता है।”
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“तो तुम मेरा मायके जाना भी बंद करोगे। मेरा मायका इसी शहर में है लेकिन माधुरी दीदी और मानसी दीदी तो बाहर से आती हैं, उनके साथ समय न बिताया करूँ? और इस बार तो मधुप भैया भी ऑस्ट्रेलिया से आ रहे हैं अपनी नई नवेली विदेशी दुल्हन के साथ। तुम्हें तो खुद मेरे साथ आना चाहिए था और तुम मुझे ही रोकना चाहते हो!”
कहते हुए टप टप आँसू गिरने लगे थे माधवी की आँखों से। अंतिम हथियार चल चुका था जो सुमित को पिघलाने के लिए काफी था। वो मनुहार भरे स्वर में बोला
“रोक नहीं रहा मैं तुम्हें बस समझाना चाहता हूँ कि जितनी चादर हो उतने पैर पसारो। अगर हमारे ऊपर कोई मुश्किल आई तो कोई और नहीं हमारी बचत ही काम आएगी। और आऊँगा न मैं मधुप भैया को रिसीव करने एयरपोर्ट, आने तो दो उन्हें लेकिन मैं रिसेप्शन अटैंड करके वापस आ जाऊँगा। उन सबके बीच ज्यादा दिन रहा तो बीमार ही पड़ जाऊँगा। दिखावे की ज़िंदगी से दम घुटता है मेरा।”
अंतिम दो पंक्तियाँ इतने धीरे कही गईं कि माधवी सुन न सकी नहीं तो आग में घी पड़ने में आज कोई कसर बाकी नहीं थी।
अगले ही दिन माधवी मायके चली गई। मधुप अपनी विदेशी पत्नी को लेकर पहली बार भारत आ रहा था। स्वागत की तैयारियाँ जोर शोर से चल रही थीं। माधवी के मम्मी पापा मधुप के इस प्रकार परिवार से छिपाकर विदेशी लड़की से विवाह करने से प्रसन्न तो नहीं थे लेकिन गोरी मेम को बहू के रूप में पा लेने से स्वयं को कहीं
न कहीं धन्य भी समझ रहे थे। शिकायत थी तो बस इतनी कि इकलौते बेटे का विवाह धूमधाम से करने का सपना सपना ही रह गया था। लेकिन बहू के स्वागत में शानदार रिसेप्शन देने की तैयारी पूरी थी। आखिर दुनिया वालों के साथ विदेशी बहू को भी तो दिखाना था कि उनके परिवार की हस्ती क्या है।
मधुप और क्लारा को लेने पूरा परिवार एयरपोर्ट गया था लेकिन इतने लोगों ने बारी बारी फूल मालाओं से उसे इतना लाद दिया कि वह चिड़चिड़ाकर मधुप से कह बैठी
“आई कान्ट हैंडल दिस नॉनसेंस ऐनी मोर। प्लीज़ मेक श्योर दे डोंट बॉदर मी अदरवाइज आई एम गोइंग बैक टू ऑस्ट्रेलिया।
ईवन आई डोंट वांट टू सी ताजमहल।”
हर किसी का मूड उखड़ गया था उसकी इस तुनकमिजाजी से लेकिन मधुप ने उससे कुछ भी नहीं कहा बल्कि परिवार पर भड़क उठा
“क्या है ये सब? साँस तो लेने दो उस बेचारी को। नाजुक है वह ये सब हैंडल नहीं कर सकती। फूलों से एलर्जी हो गई तो कौन जिम्मेदार होगा?”
“पर बेटा ये तो हमारा स्वागत करने का और प्यार दिखाने का तरीका है, तुम तो जानते ही हो….”
पापा की बात पूरी होने से पहले ही मधुप बोला
“हाँ अच्छे से जानता हूँ इसे प्यार नहीं दिखावा कहते हैं। सामने वाले का भी कुछ तो ख्याल करिए।”
सारा उत्साह ठंडा पड़ गया था। घर पहुँचकर माँ को नई बहू की आरती उतारते भी डर लग रहा था। फिर भी रस्म निभाना ही था आरती का थाल घुमाना शुरू किया ही था कि क्लारा ने मधुप का हाथ पकड़कर अपने कमरे में जाकर आराम करने की इच्छा जाहिर की। मधुप भी चुपचाप उसे लेकर कमरे की ओर बढ़ा ही था कि माधवी बोल उठी
“भैया क्या है ये सब नाटक? मम्मी पापा की भावनाओं का ही ख्याल कर लेते। कितने खुश थे बेचारे।”
“तू तो ज्ञान न ही दे माधवी। तूने बड़ा ख्याल किया था जब उनकी मर्जी के खिलाफ सुमित जैसे इस लूजर से शादी की थी। मुझे क्या पता नहीं है हम सबके बराबर खुद को दिखाने के लिए तू क्या क्या नाटक करती है? और नाटक हमलोग नहीं तुम सब कर रहे हो। क्लारा का क्लास ही अलग है तुम लोगों के साथ एडजस्ट नहीं कर पाएगी। मैं तो यहाँ लाना ही नहीं चाहता था लेकिन यह ताजमहल देखना चाहती थी इसलिए ये फालतू का ड्रामा बंद करो हफ्ते भर में हम खुद ही चले जाएँगे तब तक इसे शांति से रहने दो। “
माधवी कुछ उत्तर देती इससे पूर्व ही पापा की दहाड़ती आवाज गूँजी
“सुमित का नाम बीच में मत लाओ मधुप! उसकी बराबरी न तो इस जन्म में तुम खुद कर सकते हो न तुम्हारी नकचढ़ी बीवी क्लारा या कोई और। सुमित से न जाने किस गुरूर में अब तक कह नहीं सका मैं लेकिन सच्चाई यह है कि यही इकलौता हीरा है परिवार का जिसमें इन्सानियत के सारे गुण मौजूद हैं। बड़े छोटे का लिहाज है इसे तभी तुम्हारी बातें सुनकर भी तुम्हारा अपमान नहीं किया। गर्व है मुझे माधवी की पसंद पर। तुम्हारी पसंद भी देख ली हमने। हमारा प्यार आज तुम्हें दिखावा लगने लगा पर तुम्हारी बीवी तो बड़ों के सम्मान का दिखावा तक नहीं कर सकती, यहाँ तक कि तुम भी पूरी तरह से संस्कार भूल गए।”
मधुप पैर पटकता हुआ अपने कमरे में चला गया। माधवी ने अश्रुपूरित नेत्रों से सुमित की ओर देखकर कहा
“सच कहा पापा! दिखावे के चक्कर में मैं ही सुमित को समझने में भूल कर रही थी लेकिन सच तो ये है कि दिखावे की कोई सीमा रेखा कभी होती ही नहीं। मैं बात बात में सुमित पर मायके की अमीरी की धौंस जमाती थी लेकिन आज भैया और भाभी ने तो यही साबित करने की कोशिश की कि मेरा मायका और हम सब लोग उनके सामने कुछ भी नहीं है। कद्र तो अच्छे इंसान की होनी चाहिए न कि उसके पैसे की, और मेरे सुमित से अच्छा इंसान कोई हो ही नहीं सकता।”
वातावरण बोझिल था लेकिन सुमित और माधवी कहीं न कहीं संतुष्टि से भर चुके थे।
लेखिका : अर्चना सक्सेना
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