दिखावे की जिंदगी – सुनीता माथुर : Moral Stories in Hindi

रश्मि जब देखो तब तुम मुझे छोटी नौकरी का ताना मारती रहती हो—— और मेरे सारे पैसे—- अपनी साड़ियां खरीदने में और दिखावे में उड़ा देती हो! अपनी अमीर सहेलियों की बराबरी करती हो—- उनके घर इतना महंगा सामान है! तो हमारे घर भी होना चाहिए—- तुम्हें मालूम होना चाहिए मैं एक क्लर्क हूं और मध्यम वर्ग के परिवार का हूं मेरी योग्यता और मेरा परिवार यही देखकर तुम्हारे माता-पिता ने मेरे घर में शादी की थी तुम भी एक मध्यम वर्ग के परिवार में पली बड़ी हो पर—— मुझे नहीं पता था तुम इतने अमीर शौक रखती हो! एक ही छोटी सी बेटी है दिव्या उसके लिए कुछ जोड़ के रखो।

रश्मि को अपने पति अभिनव की बातों का कोई फर्क नहीं पड़ता और जब भी तनख्वाह आती  उसमें से घर खर्च तो कम और अपने ऊपर और अपनी सहेलियों के साथ पार्टी मनाने में पैसा उड़ा देती—– कभी नया सामान पसंद कर लेती और ऑर्डर देकर मंगा लेती बस यही रवैया चलता रहा इधर अभिनव कर्जे में आता चला गया। 

जब भी अभिनव के घर उसके रिश्तेदार या कोई मिलने वाले आने वाले होते तभी रश्मि जबरदस्ती जिद्द करके नया सामान लाकर अपने घर को सजाने लगती और जो भी आता——— सबको बड़े शान से दिखाती, बस यही “दिखावे की जिंदगी” उसकी चलती रही और अभिनव कर्जे में आता रहा। देखते देखते इतने खर्चे और कर्जे बड़ गए  अभिनव को समझ में नहीं आया कि अब मैं कैसे इन कर्जों से निकलूंगा।

अभिनव का दोस्त मुकेश बहुत समझदार था अपने दोस्त का दुख उसे साफ दिखाई दे रहा था। एक दिन अभिनव से पूछता है क्या बात है? तुम इतने परेशान क्यों रहते हो! तभी अभिनव अपनी पत्नी रश्मि की—– सारी बातें अपने दोस्त को बताता है अभिनव का दोस्त—– मुकेश उससे बोलता है देखो कभी-कभी संगत का अच्छा असर होता है मेरी पत्नी  बहुत समझदार है तुम एक काम करो अपनी पत्नी रश्मि  को मेरी पत्नी प्रेरणा से मिलवाओ तब देखना क्या असर होता है ?

एक दिन अभिनव रश्मि से बोलता है मेरा दोस्त मुकेश यहीं ट्रांसफर होकर आ गया और उसका प्रमोशन भी हो गया है मेरी ही कंपनी में है—– अपन उनके घर चलते हैं बहुत अच्छा मेरा दोस्त है! रश्मि ने कहा——- हां जरूर चलेंगे रश्मि को मिलने जुलने का तो वैसे ही बहुत शौक था बोलती है चलो चलते हैं! उनकी पत्नी से भी मेरी दोस्ती हो जाएगी!

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  रश्मि और अपनी बच्ची दिव्या को लेकर अभिनव— मुकेश के घर जाता है—– जैसे ही उनके घर जाते हैं! वह देखते हैं मुकेश की पत्नी प्रेरणा बिल्कुल साधारण कपड़े पहने हुए और बिल्कुल सिंपल स्टाइल से घर सजा हुआ लेकिन एक बहुत शांतिपूर्ण वातावरण लग रहा था——– यह देखकर रश्मि और अभिनव को भी बहुत मानसिक शांति का अनुभव होने लगा——– क्योंकि रश्मि भी अपने घर के कर्जों से घबराई हुई थी! उसे पता था…. उसके ही कारण आज अभिनव कर्जों में फस गया है!

मुकेश और प्रेरणा ने रश्मि और अभिनव का स्वागत खुश होकर किया सब ने मिलकर खूब बातें कीं और मुकेश की पत्नी प्रेरणा ने जो अपने हाथ से खाना बनाया था—–वह सबने मिलजुल कर खाना खाया—— खाना बहुत अच्छा बना था! तब मुकेश बोला—- मेरी पत्नी फिजूल खर्ची नहीं करती जब भी मैं ऑफिस से आता हूं तो मेरा पूरा ध्यान रखती है, मेरी पसंद का खाना भी बना कर रखती है, हम लोग तीज त्योहार पर ही नए कपड़े

लाते हैं और जितना पैसा होता है उसी में से महीने में थोड़ा सा बैंक में जमा जरूर करते हैं! यह सब आदत मेरी पत्नी प्रेरणा की है मेरी भी छोटी बेटी सोनल अभी 2 साल की है——-! तुम्हारी बेटी दिव्या के ही बराबर है उसकी भी मुझे कोई चिंता नहीं है! यह देखकर——– रश्मि को लगता है मैंने——– अपने शादी के इतने साल फालतू  दिखावे में ही निकाल दिए!

 रश्मि अपने ख्यालों में खो जाती है——–जब भी कोई हमारे घर पर आता था, तो नया सामान लाना, नए कपड़े सबके लिए लाना, और सबके लिए गिफ्ट देने में— मैं अपनी शान समझती थी! जबकि मेरे पति कर्ज में आते चले जा रहे थे—–

यह सोचकर उसे थोड़ा मन ही मन पश्चाताप होने लगता है और वह मन ही मन निर्णय कर लेती है—-! प्रेरणा से दोस्ती कर अपने आप को बनावटी दिखावे से मुक्त करूंगी? और अपने पति को आगे बढ़ाने में भी सहायता करूंगी! ताकि उन्हें मानसिक तनाव न हो बस फिर क्या था। 

रश्मि और प्रेरणा की दोस्ती बढ़ती गई रश्मि भी धीरे-धीरे प्रेरणा के पद चिन्हों पर चलने लगी और अभिनव के घर का वातावरण सरल होता गया कुछ समय के लिए रश्मि  अपनी सास को बुला लेती है और अपने पति अभिनव से बोलती है मैं भी नौकरी करके तुम्हारा साथ दुंगी और कर्ज से अपन मुक्त हो जाएंगे अब मैं—–

फालतू दिखावा नहीं करुंगी मेरी बच्ची के लिए कुछ जोडूंगी प्रेरणा ने मुझे अच्छा सवक सिखाया है—– यह देखकर अभीनव बहुत खुश होता है और उसका मानसिक तनाव भी कम होने लगता है—– धीरे-धीरे वह इतना अच्छा काम करता है कि ऑफिस में उसका भी प्रमोशन हो जाता है लेकिन अब पैसा जब भी आता था रश्मि भी उस पैसे में से हर महीने कुछ ना कुछ बचा कर रखने की आदत डाल लेती है।

रश्मि और अभिनव का कर्जा धीरे-धीरे उतरने लगता है और उनकी जिंदगी  सुख से बीतने लगती है। अगर संगत अच्छी हो तो जीवन सुखमय हो जाता है इसीलिए कहते हैं सत्संग सुनो भी और—– अच्छी संगत के साथ अपना व्यवहार बनाओ।  “दिखावे की जिंदगी” में कुछ नहीं रखा बस अपनी बर्बादी ही होती है।

लेखिका :  सुनीता माथुर 

 मौलिक, अप्रकाशित रचना 

 पुणे महाराष्ट्र

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