हम इस एनीवरसरी पर बड़ा वाला टीवी ड्राइंग रूम के लिए लेंगे, अतुल ने जैसे ही कहा तो निशा को आश्चर्य हुआ।
अतुल, ‘घर में वैसे ही दो टीवी पहले से है, एक हमारे कमरे में और एक बाबूजी के कमरे में, फिर और एक टीवी लेकर क्या करना है? वैसे भी टीवी इतना देखता भी कौन है? बेकार ही एक डेढ़ लाख रुपए खर्च करने से क्या फायदा? यही रूपया किसी ओर काम में लगा देंगे, हम सोना खरीद लेंगे, जिसके भाव भी बढ़ेंगे और हमारे बुरे समय में ये काम भी आयेगा।’
कर दी ना गरीबों वाली बात, अरे! सोना कौन पहनता है आजकल? सब नकली जेवर पहनते हैं, टीवी बाहर कमरे में लगेगा तो घर की शान बढ़ेगी और हर आने-जाने वाला मेहमान हमारी तारीफ करेगा, सोना तो हमारे पास है, हमारी एनीवरसरी के बाद ही रोहन का जन्मदिन है, शानदार पार्टी देंगे, और घर पर करेंगे तो सब हमारा टीवी देखेंगे,अतुल ने कहा।
अतुल, इस दिखावे की ज़िंदगी से बाहर आओं, किसी को किसी चीज से कोई फर्क नहीं पड़ता है, कोई किसी के सामान और तरक्की देखकर कभी खुश नहीं होता है, अब इन सबसे ऊपर उठो,
मुझे घर में तीसरा टीवी नहीं लाना है, वैसे भी सब-कुछ तो मोबाइल और लैपटॉप में देख लेते हैं, सिर्फ लोगों को दिखाने के लिए, हम इतना पैसा क्यों खर्च करें? निशा ने बराबर उत्तर दिया तो अतुल झल्लाकर पैर पटकते हुए कमरे से बाहर चला गया।
आज फिर निशा के मन में उथल-पुथल मच गई थी, वो एक सामान्य परिवार से थी, जहां उसने गरीबी और पैसों की किल्लत देखी थी तो उसे सोच समझकर पैसा खर्च करने की आदत थी, उसके पापा ने तीनों बच्चों को बहुत ही मेहनत से पाला था, छोटी उम्र में वो ट्युशन लेकर घर में मदद करने लग गई थी, तब से निशा की आदत हो गई थी, वो सोच समझकर ही खर्च करने लगी थी।
अतुल ने उसे एक शादी में देखा था, और उसकी खूबसूरती और सादगी का वो कायल हो गया था,
उसके घर पर उसने रिश्ता भिजवा दिया, माता-पिता ने इतना अच्छा रिश्ता आया देखकर तुरंत हां कर दी, क्योंकि अतुल के परिवार वालों ने दहेज भी नहीं मांगा था।
दोनों की शादी हो गई, शादी के बाद ही अतुल को जानने का मौका मिला क्योंकि अतुल पैसों की परवाह नहीं करता था, उसे सिर्फ हर जगह अपनी शान ही दिखानी होती थी, दिखावे और शान के लिए वो बिना सोचे समझे पैसे खर्च कर देता था, अगर निशा कुछ कहती तो उसे गरीबी का ताना देकर वो उसे चुप करा देता था।
निशा भी संस्कारी थी, वो कभी अतुल से बहस नहीं करती थी, उसके इसी व्यवहार से उसने अपने सास-ससुर का दिल जीत लिया था, वो भी ऐसी समझदार बहू पाकर खुश थे। घर का बिजनस था, जिसे उसके ससुर और पति मिलकर चला रहे थे।
पैसा अच्छा था, पर इतना भी नहीं था कि उसे व्यर्थ लुटाया जाएं, अतुल के पापा भी समझाते थे, लेकिन अतुल अपने पापा की भी नहीं सुनता था। शादी को पांच साल होने को आ गये, शुरू में निशा कुछ नहीं बोलती थी, लेकिन अब रोहन हो चुका था, तीन वर्षीय रोहन घर की जान था, बिजनस था, बिजनेस में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, इससे निशा थोड़ी सी चिंतित रहती थी, बस अपने बच्चे और सास-ससुर सबका सोचकर वो बचत किया करती थी।
सास-ससुर भी अपनी बहू के साथ थे, इसलिए अब निशा भी अतुल को समझाने लगी थी। वो ज्यादा बोलती थी तो अतुल अपने हाथ खींच लेता था।
अभी दो साल पहले की बात है, उसने अपने दोस्त
का स्टेट्स देखा कि वो दुबई घूमने गये है, तो तुरंत अतुल ने भी टिकट बना लिये, निशा हम एक सप्ताह बाद दुबई घूमने जा रहे हैं, तुम तैयारी कर लेना।
निशा सुनकर हैरान थी, अतुल अभी रोहन छोटा है, उसे साथ लेकर जाने में परेशानी होगी, और उसको छोड़कर भी नहीं जा सकती, फिर ये तो कोई जरूरी नहीं है कि आपका दोस्त घूमने गया है तो हम भी जाएं, वो व्हाट्सएप पर स्टेटस लगाकर सबको दिखावा कर रहा है तो हम भी दिखावा करें।
सिर्फ दिखावे के लिए, व्हाट्सएप पर स्टेटस लगाने के लिए मै दुबई नहीं जाऊंगी, बच्चे को पहले बड़ा तो होने दो, फिर अभी बुआ जी की बेटी की शादी भी है, हमें मायरा भी भरना है, उसकी तैयारी करनी है, उसमें भी अच्छा खासा पैसा खर्च हो जायेगा।
अपनी बहू की समझदारी से जहां अतुल के माता-पिता खुश थे, वहीं अतुल नाराज हो गया।
एक दिन अतुल रात को दोस्तों के साथ पार्टी के लिए जा रहा था,
इतनी रात को कहां जा रहे हो? निशा ने टोका तो वो आगबबूला हो गया, तुमसे मतलब, अपने दोस्तों के साथ पार्टी के लिए जा रहा हूं, कल सुबह तक वापस आऊंगा।
आपके ये दोस्त सच्चे नहीं है, सब आपसे पैसे खर्च करवायेंगे, मुफ्त का खायेंगे-पीयेंगे, लेकिन जब तकलीफ के दिन आयेंगे तो इनमें से कोई साथ नहीं देगा, ये दोस्त ही मुंह नहीं दिखायेंगे, अभी रोहन को बुखार आ रहा है, ऐसे में उसे मम्मी -पापा दोनों की ही जरूरत है।
अतुल निशा की बात अनसुनी करके चला गया, उसने अपने झूठे दिखावे के आगे कभी परिवार की भावनाओं की परवाह नहीं की।
अपने चिंतन से बाहर निकलकर वो अपने काम में लग गई, शाम होने को थी, अतुल अभी तक वापस नहीं आये थे, आज बहुत देर कर दी, कल ही उनकी एनीवरसरी थी।
रात को अतुल देर से आये थे तो मुस्करा रहे थे, अपने प्रति प्रेम समझकर निशा भी मुस्करा दी।
अगले दिन उनके विवाह की वर्षगांठ थी, सुबह दोनों ने सबका आशीर्वाद लिया और मंदिर जाकर आ गये, मंदिर से जब निशा में आई तो देखा ड्राइंग रूम में बड़ा सा टीवी लगा था, उसे मन ही मन गुस्सा आया,पर आज एनीवरसरी थी, ये सोचकर वो चुप रही।
अतुल के पापा ने जरूर टोका, पर अतुल ने हमेशा की तरह उन्हें निरूतर कर दिया, अतुल इकलौती संतान रहा है, शुरू से बहुत जिद्दी रहा है, इसलिए उसके माता-पिता भी समझाकर हार गये।
दूसरे दिन सुबह ही चार बजे उसकी मां ने दरवाजा खटखटाया, बेटा ….तेरे बाबूजी बेहोश हो गये है……
ये सुनकर अतुल फटाफट उन्हें अस्पताल ले गया, लेकिन हृदयाघात ने उनकी जान ले ली।
सभी शोकाकुल और परेशान थे, तेरहवीं हुई, फिर जाकर अतुल ऑफिस गया, और बिजनस संभालने लगा, अब अतुल अकेला पड़ गया था, पहले पिताजी उसकी मदद कर दिया करते थे, वो घूमने-फिरने और पैसे उड़ानें में लगा रहता था।
रात को वो घर आया और सो गया, तभी रात की दो बजे मोबाइल बजने लगा, उधर से गार्ड की आवाज थी, ‘साहेब गोदाम में शार्ट सर्किट की वजह से आग लग गई है, सारा माल जल रहा है, मैंने आपसे पहले फायर ब्रिगेड वालों को फोन कर दिया है, पर अभी तक गाड़ी आई नहीं है, आप आ जाइये….।
अतुल की नींद उड़ गई, वो फटाफट गोदाम की तरफ भागा, और तेज स्पीड गाड़ी होने की वजह से उसकी कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई, जब उसे होश आया तो उसने अपने आपको अस्पताल में पाया, उसके हाथ-पैर में फ्रेक्चर था, निशा उसे संभाल रही थी।
अतुल की हालत खराब थी, इधर गोदाम में आग लगने से लाखों का नुकसान हो गया, उधर वो बिस्तर में आ गया।
ये क्या हो गया ! वो बिस्तर पर पड़े हुए सोच रहा था,
इतना नुकसान हो गया, अपने पापा को भी खो दिया, अब घर और बिजनस कौन संभालेगा? मैं ना जाने कब तक ऐसे रहूंगा, बिस्तर पर लेटे हुए जाने कितने महीने निकलेंगे, कब तक ठीक हो पाऊंगा, जब तक वो अस्पताल में रहा, कोई भी दोस्त मिलने नहीं आया, जिन दोस्तों को दिखाने के लिए उसने अपने माता-पिता, पत्नी तक की परवाह नहीं की, उनका दिल दुखाया, आज उन्हीं दोस्तों ने मुंह फेर लिया।
अतुल जितने दिन अस्पताल में रहा, उतने दिन उसकी मम्मी और निशा ने सच्चे मन से उसकी सेवा की।
अब अतुल को समझ आ गया था, जो दिखावे की जिन्दगी वो जी रहा था, वो झूठी थी, जिनके लिए उसने अपने परिवार की उपेक्षा की, वहीं लोग उसके दुःख में सांत्वना देने तक नहीं आये, जिन दोस्तों पर पैसा लुटाया वो ही दोस्त इस डर से नहीं आये कि कहीं मैं उनसे मदद के लिए पैसा नहीं मांग लूं।
कुछ महीनों बाद अतुल चलने-फिरने लगा, अपना बिजनेस ठप्प होने की वजह से अतुल परेशान था, उसे फिर से खड़ा होने के लिए पैसों की जरूरत थी, निशा ने अपनी बचत और जुड़ा हुआ पैसा उसे दिया, तो उसने दोबारा से शुरूआत की, अपनी पत्नी के साथ और मां के आशीर्वाद से जीवन की गाड़ी फिर से पटरी पर दौड़ने लगी।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
# दिखावे की जिन्दगी