रिश्ते – मधु वशिष्ठ : Moral Stories in Hindi

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यह धन संपत्ति ना अच्छे अच्छों का दिमाग खराब कर देती है, कोई बात नहीं जीजी हम तो आपके साथ ही है ना। बड़ी भाभी गुड़िया को समझा रही थी। 

          चमन और गगन दोनों भाई अपने माता और परिवार के साथ सुख शांति से रह रहे थे। विवाह के बाद गुड़िया जब भी घर आती पूरा परिवार उन पर बहुत प्यार बरसाता। गुड़िया के दोनों बेटे अपने मामा गगन और चमन के चारों बच्चों के साथ आराम से खेलते थे। 

      समय ने करवट बदली। बाबूजी के देहांत के बाद अब उनकी पेंशन इतनी तो न थी कि पूरे घर का खर्च चल सकता और वह थोड़ी सी पेंशन भी मां के नाम पर ही आती थी। चमन पोस्ट ऑफिस में क्लर्क था और अभी गगन नगर निगम में पदोन्नति होकर अफसर बन गया था। तनख्वाह और ऊपरी कमाई दोनों ही बढ़ गए थे पब्लिक डीलिंग ऐसी की हर आदमी गगन से संबंध बनाना चाहता था। बाबूजी के सामने जो घर आराम से चलता था अब उसमें सिर्फ खर्चों का ही रोना रोया जाता था। अचानक ही घर में सामान की कमी हो गई थी।  माताजी को चमन और गगन को ऊपर नीचे ही शिफ्ट करना पड़ा।

        ऊपर जाने के बाद गगन ने तो घर की सीढ़ियां भी बाहर से ही बनवा ली थी ताकि नीचे उतरते हुए भी उसे सबका चेहरा ना देखना पड़े और ना ही मां उससे कुछ मांगे।

         गुड़िया को घर आए तीन दिन हो चुके थे परंतु ना तो उसे गगन भैया मिलने आए और ना ही उनके बच्चे दिखे। गुड़िया दोपहर में अपने बच्चों के साथ ऊपर गगन के घर जब मिलने के लिए गई तो भाभी की किट्टी चल रही थी और उनकी सहेलियां मिलने के लिए आई हुई थी। गुड़िया को देखकर एक बार तो वह हैरान ही रह गई। गुड़िया दूसरे कमरे में गई तो उसे भाभी की आवाज आई जो कि अपनी सहेली को कह रही थी यह मेरी ननद है, आज इसने तुम सबको आते हुए देखा होगा तो इसे लगा होगा कि माल तो ऊपर ही मिलेगा बस इसीलिए चली आई है।

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इसके बाद उसी को ही विषय वस्तु बनाकर गगन की पत्नी अपनी सहेलियों के साथ बहुत सी बातें कर रही थी। गुड़िया चुप करके नीचे आई और अपनी माताजी को जब यह सब बातें बताई तो माताजी ने उसको समझते हुए कहा यह धन संपत्ति अच्छे अच्छों का दिमाग खराब कर देती है कोई बात नहीं, रूआंसी होती गुड़िया को चमन की बहू से मंगवा कर बड़े प्यार से बिठाकर खाना खिलवाया।

       समय तो अपनी अनवरत गति से चलता ही रहता है। बड़े भैया भी अफसर बन चुके थे। मां भी इस दुनिया से जा चुकी थी और गुड़िया के पति जो एक समय केवल छोटे-छोटे ठेके लेते थे अब बहुत बड़े ठेकेदार बन चुके थे। चमन भैया का बेटा भी इंजीनियर बन चुका था और दूसरा बेटा बैंगलोर में था। गुड़िया अब अपनी नई कार में ठाट बाट से आती तो चमन भैया के घर ही रुकती थी। ऐसे ही सारे रिश्तेदार चमन भैया के ही घर आते थे। 

        गगन की पत्नी के व्यवहार के कारण सब उससे कट चुके थे। अबकी गुड़िया अपने बेटे की शादी का न्योता देने और भात के लिए भेली लेकर आई थी , सारे रिश्तेदार नीचे जमा थे। गगन की बहू ने भी नीचे आकर ननद गुड़िया से बोला बहन जी आपके दो भाई हैं, विवाह में तो कम से कम दोनों को एक बराबर समझ लो। भात तो दोनों भाई मिलकर ही देंगे ना? गुड़िया ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया भाभी दोनों भाई तो कभी बराबर हो ही नहीं सकते। बड़े भैया ने तो अमीरी गरीबी को छोड़कर सदा अपने कर्तव्य का ही पालन किया है।

मां की, मेरी और सारी रिश्तेदारी ,भले ही उनकी कमाई कम थी, पर उन्होंने अच्छे से निभाई है। वह तो मेरे पिता के स्थान पर है। आपको कहीं यह तो नहीं लग रहा कि विवाह में माल तो यहां से ही मिलेगा तो क्यों ना अब रिश्तेदारी भी निभा ली जाए। इससे पहले कि गुड़िया सब रिश्तेदारों के सामने कुछ और भी बोलती तभी बड़ी भाभी ने गुड़िया को चुप कराते हुए मां की वही बात दोहराई जीजी यह धन संपत्ति ना अच्छे अच्छों का दिमाग खराब कर देती है

अब तुम अपना दिमाग खराब ना करो। ऐसा कहने के बाद उन्होंने गगन की पत्नी को भी नीचे बैठे हुए और रिश्तेदारों के साथ गाने के लिए आमंत्रित किया। गुड़िया चुप हो गई थी और गगन की बहू अपनी पुरानी सारी बातें याद कर रही थी। उम्र के साथ पैसा तो आ ही जाता है परंतु एक उम्र बाद रिश्ते कमाने बहुत मुश्किल हो जाते हैं।

यह धन संपत्ति ना अच्छे अक्षरों का दिमाग खराब कर देती है प्रतियोगिता के अंतर्गत

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।

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