रिश्तों की परिभाषा – पूनम सारस्वत : Moral Stories in Hindi

अतुल कई दिन से थका थका सा महसूस कर रहा था  ।ऊपर से यह कोरोना का रोना। इसलिए किसी को बोल भी नहीं रहा था कि उसे कुछ दिक्कत लग रही है ।बेकार ही उसे तो कोरोंटाइन करेंगे ही ,पत्नी और बच्चे को भी कर देंगे । वह अपने परिवार को परेशान नहीं करना चाह रहा था।

लेकिन जब खांसी भी आने लगी तो उसने टेस्टिंग कराना ही उचित समझा। उसने अपनी पत्नी रमा से कहा कि वह टेस्टिंग करा कर  आ जाता है जिससे कि मानसिक रूप से जो उलझन हो  रही है उससे बचा सके।

उसके एक बेटा है जो 2 साल का है अतुल के मां-बाप पास ही के गांव में रहते हैं जो कभी-कभी उन लोगों से मिलने के लिए आते रहते हैं। पर अभी लॉकडाउन की वजह से काफी समय से नहीं आए हैं, नहीं तो लगभग हर रविवार को पिताजी तो आ ही जाते हैं ।अतुल ने अपना टेस्ट कराया तो दुर्भाग्यवश कोरोना पॉजिटिव आया।

रिपोर्ट देखकर न केवल अतुल बल्कि पत्नी भी सन्न रह गई ।उन्होंने ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोचा था क्योंकि जिस दिन से लॉकडाउन हुआ था, वह घर से भी नहीं निकले थे ना उनके घर कोई आया था और ना ही  उन्हें कोई दिक्कत थी, तो कोरोना पोजिटिव होने की संभावना ना के बराबर ही थी। टेस्टिंग हो चुकी थी अब दूसरी रिपोर्ट का इंतजार और उम्मीद थी

कि उसमें रिपोर्ट निगेटिव आ जाए।पर रिपोर्ट पॉजिटिव ही आई।तो उसे और उसकी पत्नी को कोरोंटाइन किया गया ।उसने अपने पिताजी को सूचना पहुंचाई कि उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव होने के कारण पत्नी और बच्चे  दोनों को होम कोरोंटाइन किया गया है , हो सके तो आप लोग पास ही

में चाचा जी के घर आ जाइये क्योंकि वहां पर कोई रोक नहीं है जिससे  सीमा को एक मानसिक संबल मिलेगा।पर जब अतुल के मां-बाप को पता चला कि वह कोरोना पॉजिटिव है तो उन्होंने शहर आने से साफ मना कर दिया और कह दिया कि बेटा हम नहीं आ पाएंगे, हमें कहीं संक्रमण ना हो जाए हमारा बुढ़ापा है हम तो झेल भी नहीं पाएंगे।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

ये धन संपति अच्छों अच्छों का दिमाग खराब कर देती है – राजेश इसरानी : Moral Stories in Hindi

अतुल को एडमिट कर लिया गया पर सौभाग्य वश उसकी तीसरी रिपोर्ट नॉर्मल ही आई।

कुछ सावधानियां समझाकर उसे घर भेज दिया गया।अब कोरोंटाइन के वो चौदह दिन भी बीत गए हैं। अतुल की माँ का फोन रोज शाम को आ जाता है।जो हालचाल तो पूछती हैं पर सिर्फ पाँच किलोमीटर दूर स्थिति गाँव से आने के लिए एक बार भी बेटे से नहीं कहा है ।कल बात – बात में मुँह से निकल गया कि बेटा तेरे पापा कह रहे थे ,

कि ये तो ऐसी बीमारी है कि ठीक होने के बाद कब दुबारा हो जाए कह नहीं सकते , अपना और बच्चों का खयाल रखना । हम लोग तो अभी आ नहीं सकते ,कल को हमें भी बीमारी ने पकड़ लिया तो तुम्हारी मुसीबत और बढ़ जाएगी ,फिर बहू ,बच्चों का देखेगी या हमारा करेगी?

आज जिंदगी में पहली बार अतुल को लगा कि शायद सीमा ने मेरे माँ – पापा को सही पहचाना था जो मैं कभी सोच न सका। सीमा अक्सर गुस्से में कह देती थी कि माँ पिताजी को सिर्फ अपने से मतलब है उन्हे किसी  की भी नहीं पड़ी है आपकी भी नहीं ,वक्त आने पर देख लेना।बस उन्हें सब सुख सुविधाएं उनके अनुसार मिलती रहनी चाहिए, बाकी किसकी क्या समस्या है इससे उन्हें कोई लेना देना नहीं है।

कितना अच्छा तर्क दे दिया माँ ने न आने का, आज तक तो यही सुना था कि माँ कभी स्वार्थी नहीं होती फिर कैसे माँ का मन एक बार भी न किया मुझसे मिलने का ,क्यों माँ को लग रहा है कि उन्हें भी संक्रमण न हो जाए ,जबकि वो अब पूरी तरह स्वस्थ है बल्कि पहले भी था , भूलवश रिपोर्ट गलत थी तो इसमें उसका क्या दोष? अगर ऐसे समय में पत्नी

साथ रहने से मना कर देती तो समाज कितनी हाय- तौबा करता ,कैसी पत्नी है ??कुछ समाचार पत्र तो कलयुगी और न जाने क्या क्या लिख चुके होते। हालांकि कुछ समाचार पत्रों ने इस खबर को भी चटपटा करके छापा है पर समाज के ठेकेदारों का कोई वक्तव्य इस पर नहीं आया है। अतुल सोच रहा है कि अगर माँ – पापा में से कोई बीमार होता और सीमा तीमारदारी को मना कर देती

तो कितना बबाल मचता समाज में ,रिश्तेदारी में । पर अब किसी ने नहीं कहा कि इकलौते पुत्र से ज्यादा मोह अपनी जान का कैसे कर सकते हैं माँ-बाप? आज अतुल अपराधी भाव से खुद को निहार रहा है ,कितनी बार उसने सीमा को क्या- क्या न सुनाया है  ,माँ की बातों में आकर ,फिर भी सीमा हर मुश्किल समय में उसके साथ रही है हमेशा ,परेशानी चाहे वित्तीय रही या शारीरिक उसने कभी साथ नहीं छोड़ा।

अतुल यह सब सोच तो रहा है पर जानता है कि वो मन की पीड़ा किसी से भी न कह पाएगा सीमा से भी नहीं क्योंकि ये उसके अपनों से सम्बंधित है पर वो ये बातें अब कभी भुला भी तो न पाएगा।

एक टीस स्थाई रूप से उसके साथ रहेगी।

लेखिका : पूनम सारस्वत

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!