भले ही वह दो कमरों का हमारे जैसा ही सरकारी फ्लैट था परंतु ए.सी से ठंडा हुआ कमरा , गुदगुदा सोफा, इतने सुंदर टी.सैट में लाई हुई चाय, बाथरूम में गीजर, आर ओ, प्रत्येक आधुनिक सामान से सजी हुई रसोई,
खाने के लिए शानदार काजू की नमकीन, महंगे बिस्किट और भी जाने क्या-क्या? यह सब देखकर मैं तो बहुत ही अभिभूत थी। मैंने अपने पति नवीन की और देखा तो वह अपने मित्र राजेश के साथ बहुत शांत होकर बैठे थे। उनके चेहरे पर मेरे जैसा कौतूहल ना था।
आइए पाठकगण आपको मैं अपने पति और उनके मित्र के बारे में बताऊं। मेरे पति नवीन और उनके मित्र राजेश दोनों ही बिहार के मुजफ्फरपुर गांव के बचपन के साथी है। दोनों ने साथ ही पड़ा और सरकारी इम्तिहान पास करने के बाद दोनों ही दिल्ली में क्लर्क की नौकरी करने के लिए आ गए थे। कुछ समय बाद दोनों को ही सरकारी आवास भी मिल गया था।
मेरा विवाह हुए 2 साल हो गए हैं। अक्सर राजेश भी शाम को खाना खाने नवीन के साथ ही आ जाते थे। राजेश मुझे भाभी की जगह दीदी ही बोलना पसंद करते थे और कई बार तो वह शाम को सब्जी और घर का सामान भी लेकर आ जाते थे। वह हमेशा यही कहते थे कि भाई हमेशा बहन के घर कुछ लेकर ही आता है। मैं यहां पर खाना खाने आता हूं तो इतना तो मेरा अधिकार बनता है कि कभी सब्जी वगैरह में लेकर आ जाऊं।
अभी 2 महीने पहले ही राजेश भी विवाह करके लौटे थे। नवीन को छुट्टी नहीं मिली इसलिए हम उनके विवाह में गांव नहीं जा पाए थे परंतु उनके आने के बाद मैंने निशा और राजेश को अपने घर पर खाने के लिए बुलाया था। मैंने उन दोनों के लिए हलवा, पूरी, दही बड़ा और भी बहुत कुछ बनाया था। विवाह के
बाद राजेश भी पहली बार आया था, मैंने भी यही समझा था कि अभी नया-नया विवाह हुआ है अभी वे अपने घर में ही व्यस्त होंगे। निशा ने वापिस जाते हुए हमें भी अगले सप्ताह रविवार अपने घर आने का निमंत्रण दिया था।
हम दोनों तैयार होकर 12:00 बजे उनके घर पहुंच गए थे। निशा के घर में प्रत्येक भौतिक सुख सुविधा मौजूद थी। उसने अपने घर को भी बहुत करीने से सजाया हुआ था। मुझसे बात करते हुए वह गर्व से हमें यही बता रही थी कि यह सब सामान उसकी मां ने उसके विवाह में दहेज में दिया है। जब वह मुझे अपना सामान दिखा रही थी तब मैंने नवीन और राजेश की तरफ देखा वह दोनों शांत बैठे हुए थे।
इतना अच्छा नाश्ता खिलाने के बाद निशा ने कहा हम खाना खाने के लिए बाजार में होटल में जाएंगे। मेरे पिता ने हमें कार भी दी है हम सब उसी में ही बैठकर खाना खाने के लिए जाएंगे।
मैं चलने के लिए उठती इससे पहले ही मेरे पति नवीन ने कहा मुझे अचानक से बहुत जोर से पेट में दर्द हुआ है आज तो मैं कहीं नहीं जा सकूंगा अभी तो मैं घर जाकर आराम करना चाहता हूं। मैं भी बहुत फिक्रमंद होकर नवीन के स्कूटर पर बैठ गई और नवीन से पूछा तुम्हारे को अचानक पेट दर्द क्यों हो गया?
कितना अच्छा नाश्ता था? कितना ठंडा कमरा था? परंतु नवीन ने कोई जवाब नहीं दिया इसके विपरीत वह घर जाने की बजाए सिटी पार्क की ओर मुड़ चले।
सिटी पार्क पर स्कूटर को खड़ा करते हुए वह मुझसे बोले मीनू आज पार्क में घूमते हैं और आज मैं तुम्हें तुम्हारी पसंद के कुलचे छोले और मोठ की दाल वाली कचोरी खिलाऊंगा। मैंने हैरान होते हुए नवीन की और देखा और कहा, क्या तुमको पेट में दर्द नहीं था ?तुम ऐसे ही बहका रहे थे, क्यों भला?
नवीन ने मेरा हाथ पकड़ कर मुस्कुराते हुए कहा क्योंकि तुम बहुत अच्छी और बहुत प्यारी हो? मुझे हैरान होते हुए देखकर वह बोला अरे पगली तूने राजेश का चेहरा देखा था। मैं तो खुद ही हैरान हो रहा था कि जब से राजेश शादी होकर दिल्ली आया है तब से वह दफ्तर में सबसे उधार क्यों मांग रहा है?
फिर मैंने सोचा शायद शादी में उसका ज्यादा खर्च हो गया होगा? अभी परसों ही तो उसने मुझसे हजार रुपया मांगे थे। मुझे तो लग रहा था इतनी महंगी नमकीन बिस्कुट इत्यादि नाश्ता खरीदने में ही उसके हजार रुपए तो खर्च हो गए होंगे वह हमको होटल में खिलाता कैसे? तुमने राजेश का उतरा हुआ मूंह नहीं देखा?
इस दिखावे की जिंदगी की गाड़ी को वह कैसे और कब तक खींच पाएगा मैं तो यही सोच रहा था। मैं राजेश को बचपन से जानता हूं, उसकी चुप्पी को भी समझ रहा था। अब इतना तो मैं उसके लिए कर ही सकता हूं ना!
मैं भी चुप थी और लगभग वही सोच रही थी जो कि नवीन सोच रहे होंगे। नवीन मेरे लिए मोठ की दाल की कचोरी और कुलचे छोले लेकर आए। मुझे वह खाते हुए महसूस हो रहा था कि भले ही हमारे पास इतनी भौतिक सुख सुविधा नहीं है परंतु हम दोनों के बीच का प्रेम और आपसी समझ,कितनी अमूल्य है ना? हमारी जिंदगी कितनी खूबसूरत है ना? पाठकगण आपका क्या ख्याल है?
मधु वशिष्ठ फरीदाबाद हरियाणा
दिखावे की जिंदगी प्रतियोगिता के अंतर्गत